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Thursday, Dec 7, 2023
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राजनीति

अमरीश के वाहन “झुंड” पर भारी पड़े रसाल के मानव “मुंड”

ग्वालियर(देसराग)। मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव की बेला आरंभ हो चुकी है। इस बीच भाजपा और कांग्रेस में शह और मात का खेल चरम पर पहुंच चुका है, लेकिन भाजपा के लिए परेशानी का सबव उसके अपने ही क्षत्रप बन रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा ग्वालियर-चम्बल अंचल की लहार विधान सभा सीट पर देखने को मिल रहा है। यूं तो इस विधान सभा सीट की तासीर पूरी तरह से कांग्रेस के लिए मुफीद रही है। इसकी भूमिका भाजपा के अपने ही बागी हर चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में बनाते रहे हैं। इस चुनाव में भी समीकरण कांग्रेस के पक्ष में जाते दिखाई देने लगे हैं।

इस विधान सभा क्षेत्र के सियासी संग्राम पर नजर दौड़ाएं तो पहले भाजपा में टिकट वितरण को लेकर असंतोष की ज्वालामुखी धधक उठी। इसके बाद पार्टी के दिग्गज नेता अपनी ताकत दिखा रहे हैं। कोई टिकट न मिलने से नाराज है तो कोई टिकट मिलने के बाद शक्ति प्रदर्शन के जरिए पार्टी आलाकमान को यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि जो फैसला लिया वही सही है। कुछ ऐसा ही पिछले 24 घंटों में भिण्ड जिले की लहार विधान सभा सीट पर देखने को मिला। लहार विधानसभा सीट से भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी अमरीश शर्मा ने जहां वाहन रैली निकाल कर यह दिखाने की कोशिश की कि जनता उनके साथ है तो वहीं भाजपा के ही मजबूत स्तंभ और इलाके में पितामाह के नाम से विख्यात चार बार विधायक रह चुके रसाल सिंह ने रविवार को भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं का महासम्मेलन आहूत कर भाजपा आलाकमान तक यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब भी समय है, भूल सुधारी जा सकती है।

दरअसल कल केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से आशीर्वाद लेकर ग्वालियर से वाहनों का काफिला लेकर लहार पहुंचे भाजपा प्रत्याशी अमरीश शर्मा ने लहार में एक सभा को संबोधित किया। खास बात यह रही कि भाजपा प्रत्याशी के रुप में आहूत इस सभा में भाजपा संगठन के जिले और मंडल स्तर का एक भी नेता मौजूद नहीं था। अब यह नेता बुलाए नहीं गए या उन्होंने खुद-ब-खुद इस आयोजन से अपनी दूरी बनाई, यह भाजपा नेतृत्व के लिए चिंतनीय और विचारणीय प्रश्न है। अमरीश शर्मा के वाहनों के काफिले में वाहन तो नजर आए, लेकिन इन वाहनों में कार्यकर्ताओं की मौजूदगी का नितांत अभाव नजर आया। यह अल्हदा बात है कि इस काफिले के लिए वाहनों को जुटाने हेतु उन्हें ग्वालियर, मुरैना, दतिया, इटावा और भिंड समेत आसपास के जिलों से किराए पर वाहन लेने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। उनके शनिवार की सुबह करीब 11 बजे भिंड के एमजेएस महाविद्यालय परिसर में पहुंचने के बाद लगभग 2000 वाहनों के काफिले के साथ लहार के लिए रवाना होने का दावा किया गया था, लेकिन सरकार के सीआईडी विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक उनके काफिले में डेढ़ सौ वाहन और साढ़े तीन सौ के करीब कार्यकर्ता शामिल हुए। हालांकि भिण्ड से लहार पहुंचते-पहुंचते भीड़ का यह आंकड़ा ढाई से तीन हजार तक पहुंच गया था। लेकिन इसके मुकाबले रविवार को लहार में पूर्व विधायक रसाल सिंह के आव्हान पर आयोजित भाजपा कार्यकर्ता महासम्मेलन में 15 से 16 हजार लोगों की भीड़ ने रसाल सिंह को न केवल अपना समर्थन दिया, बल्कि भाजपा आलाकमान द्वारा लहार विधानसभा सीट पर प्रत्याशी चयन के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं।

कौन हैं रसाल सिंह?
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक रसाल सिंह लहार विधानसभा से दो विधानसभा का चुनाव लड़ चुके है। वर्ष 2018 में भाजपा ने रसाल सिंह को लहार के कांग्रेस विधायक डॉ.गोविंद सिंह के खिलाफ मैदान में उतारते हुए उम्मीदवार बनाया था। इससे पहले रौन विधान सभा से रसाल सिंह चार बार विधायक चुने गए। यही नहीं उन्होंने भिण्ड नगर पालिका अध्यक्ष के रुप में भी अपना सियासी सफर तय किया है।

क्या बोले रसाल सिंह?
पूर्व विधायक रसाल सिंह ने साफ किया कि हम कभी नहीं चाहते कि संगठन में किसी तरह का बिखराव हो। लेकिन हमारे केन्द्रीय नेतृत्व ने हमें उस मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से सभी रास्ते विभाजन की ओर जाते हैं। उन्होंने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को 5 दिन का अल्टीमेटम दिया और साफ और सटीक शब्दों में कहा कि कोई वजह नहीं कि बिना किन्तु और परन्तु किए आप अपना फैसला बदल नहीं सकते। जब आप फैसला सुना सकते हैं तो बदल भी सकते हैं। लहार में कार्यकर्ता सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी में तानाशाही की कोशिश हो रही है। अगर यही हालात रहे तो पार्टी टूट जाएगी। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और अगर ज़मीनी कार्यकर्ता की भावनाओं का सम्मान नहीं किया और संभावित बगावत को नहीं थामा गया, तो लहार समेत जिले की मेहगांव और गोहद सीटों को भी गंवाना पड़ सकता है। रसाल सिंह की नाराजगी प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान या प्रदेश नेतृत्व से नहीं है। उन्हें इस बात का मलाल है कि टिकटों के वितरण के मामले में जिला, मंडल और यहां तक की मुख्यमंत्री तक को भी भरोसे में नहीं लिया गया। उन्होंने अमरीश शर्मा पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जो पिछले 5 सालों में पार्टी में सक्रिय नहीं रहे उन्हें टिकट दे दिया गया। मैं अपने कार्यकर्ताओं को किसी के भरोसे नहीं छोड़ सकता हूं। भाजपा के दिग्गज नेता ने दो टूक कह दिया कि अगर 5 दिनों के भीतर टिकट पर पुनर्विचार नहीं हुआ तो वह अपने कार्यकर्ताओं के हित में अगला कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होंगे।

क्या रहा है लहार का मिजाज?
ग्वालियर-चम्बल संभाग की सियासत में लहार एक मात्र ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां भाजपा उम्मीदवार की पराजय की पटकथा भाजपा के अपने बागी नेता ही लिखते रहे हैं। लेकिन इस बार भाजपा आलाकमान ने कुछ अलग ही ठान ली है। अलबत्ता लहार विधान सभा को भाजपा आलाकमान ने उस फेहरिस्त में शामिल किया है जिसे हर सूरत में जीतने के लिए नई इबारत लिखी। खास दिलचस्प बात तो यह है कि अब तक लहार में भाजपा की हार खुद घर के विभीषणों के कारण होती रही है। इन विभीषणों को भाजपा के बड़े क्षत्रपों का वरदहस्त प्राप्त रहा है। हालांकि सियासी लिहाज से लहार विधानसभा क्षेत्र की अपनी अलग पहचान है। क्योंकि यह इलाका मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविन्द सिंह की सियासी विरासत का अभेद्य दुर्ग माना जाता रहा, जहां डॉक्टर गोविन्द सिंह को चुनौती देना सियासत के किसी भी महारथी के लिए अब तक टेड़ी खीर सिर्फ इसलिए बना रहा, क्योंकि डाक्टर गोविन्द सिंह के पक्ष में भाजपा,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोग ही सहयोग करते रहे।

लहार में क्यों हार जाती है भाजपा?
साल 2003 से लेकर साल 2018 तक हुए चार विधानसभा चुनाव इस बात के साक्षी हैं कि डॉक्टर गोविन्द सिंह की राजनीतिक विरासत में सेंध लगाकर चुनौतियां खड़ी करने का सामर्थ्य भाजपा केवल और केवल साल 2013 और साल 2018 में अपने पूर्व विधायक रसाल सिंह के दम पर ही दिखा सकी। इससे पहले भाजपा के उम्मीदवारों को जो वोट मिले वह भाजपा जैसे संगठन की क्षमताओं के अनुरूप तो रहे ही नहीं, साथ ही यह बात भी सामने आई कि भाजपा को हराने के लिए भाजपा के बागियों ने ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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