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Thursday, Dec 7, 2023
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राजनीति

फंस गए हैं विंध्य के दोनों सांसद

अरविंद मिश्र
सतना(देसराग)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की‌ भारतीय जनता पार्टी ने‌ तीन केन्द्रीय मंत्री और इतने ही सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतार कर भले ही एकबारगी सभी को चौंका दिया हो मगर पार्टी की यह रणनीति उम्मीदवारों के लिए मुसीबत का सबब बनती जा रही है। कम से कम विंध्य में तो यही हालात हैं। यहां सतना के सांसद गणेश सिंह को सतना शहर और सीधी की सांसद रीती पाठक को सीधी विधानसभा सीट से मैदान में उतारा गया है। दोनों सांसदों को जिनकी टिकट काटकर प्रत्याशी बनाया गया है उनमें से एक केदार नाथ शुक्ल सीधी से भाजपा के मौजूदा विधायक हैं। जाहिर है जिनका हक छीना गया वह पार्टी के इस फैसले से खुश नहीं हैं। उनकी नाराजगी इस हद तक है कि अब वह सार्वजनिक तौर पर बगावत का ऐलान कर रहे हैं।

2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन विधायक केदार नाथ शुक्ल ने रीती पाठक की उम्मीदवारी को ‘पार्टी का अन्याय’ ठहराते हुए सीधी में रायशुमारी के लिए एक सभा की। इसमें बड़ी संख्या में उनके समर्थक जुटे। इस जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने समर्थकों से पूछा क्या वे इस अन्याय के खिलाफ न्याय करेंगे? जवाब में उपस्थित जनसमूह ने एक स्वर में हामी भरी। जनता की ओर से मिले सकारात्मक जवाब से गदगद केदार नाथ शुक्ल ने अगला सवाल दागा- भाजपा का असली प्रत्याशी कौन? पूरे दम खम के साथ समर्थकों ने जवाब दिया- आप। समर्थकों के उत्साहजनक जवाब पर अपनी मुहर लगाते हुए शुक्ल ने मंच से ही सांसद रीती पाठक को नकली प्रत्याशी ठहरा दिया। उन्होंने कहा पार्टी अपने फैसले पर पुनर्विचार करे अन्यथा सीधी विधानसभा क्षेत्र की जनता न्याय करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा वह भाजपा छोड़ कर कहीं नहीं जा रहे हैं। असली भाजपा के असली उम्मीदवार वही हैं। जन समर्थन के लिए गांधी जयंती के दिन बुलाई गई इस सभा से साफ है कि रीती पाठक के खिलाफ केदारनाथ शुक्ल टिकट मिले या ना मिले असली भाजपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में जरुर उतरेंगे। उनका यह दृढ़ इरादा सांसद रीती पाठक के लिए सिरदर्द तो है ही पार्टी की जीत की संभावनाओं पर भी विपरीत असर डालेगा।

सतना सीट पर भी कमोबेश यही तस्वीर बनती दिख रही है। पार्टी के बड़े ब्राह्मण चेहरे कमलाकर चतुर्वेदी के पुत्र रत्नाकर चतुर्वेदी शिवा ने गणेश सिंह की उम्मीदवारी की घोषणा के दूसरे दिन ही बगावती तेवर दिखाते हुए निर्दलीय मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक सतना के अध्यक्ष शिवा सतना से टिकट के प्रबल दावेदार थे। उनके पिता ने एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा था। धक्का सतना सीट से दो बार के विधायक शंकर लाल तिवारी को भी लगा है। लेकिन फिलहाल वह खामोश हैं। उनकी खामोशी क्या गुल खिलायेगी, समझना मुश्किल नहीं है। विधायक चुने जाने से पहले वह टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर चुके हैं। पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी मांगेराम गुप्त के खिलाफ निर्दलीय उतरकर उन्होंने भाजपा की जमानत जब्त करा दी थी। हालांकि शंकर लाल अपना यह पहला चुनाव जीते नहीं मगर उनकी बगावत ने कांग्रेस प्रत्याशी सईद अहमद की जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

दरअसल, विधानसभा चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी से गणेश सिंह ऐसे चक्रव्यूह में फंस गए हैं जिसे भेदकर सुरक्षित बाहर निकलना बहुत आसान नहीं है। कांग्रेस की मौजूदा सीट पर उन्हें मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ही नहीं पार्टी के प्रभावी उन क्षत्रपों से भी लड़ना है जो घात लगाए बैठे हैं। जाहिर है पहले अटल फिर मोदी लहर में सवार इन सांसदों के लिए लोकसभा चुनाव जीतना जितना आसान था, विधानसभा चुनाव का रास्ता उतना ही कठिन दिखाई दे रहा है। इनकी लोकप्रियता की यह परीक्षा भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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