स्व.अर्जुन सिंह के जन्मदिवस पर विशेष
सोमेश्वर सिंह
भारत को जानना है तो प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू को पढ़ना पड़ेगा और चुरहट सीधी को जानना है तो स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी को। जिस पीढ़ी ने 1980 के पहले का चुरहट नहीं देखा वह अर्जुन सिंह के योगदान को नहीं जानेगा। खासतौर से युवा पीढ़ी। मुझे दुख तो तब होता है जब जानकार लोग भी कहते हैं अर्जुन सिंह ने क्या किया। जिसने 1967 का अकाल देखा-भोगा होगा वही अर्जुन सिंह को जानेगा। राजनीतिक दुराग्रह और वैचारिक मतभेद त्याग कर सही मूल्यांकन करेंगे, तब अर्जुन सिंह के योगदान का पता चलेगा। 15 अगस्त 1948 को नेहरू जी ने लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए सबसे पहले अपने आप को राष्ट्र का प्रथम सेवक कहा था। आगे उन्होंने यह भी कहा था कश्मीर समस्या और सांप्रदायिकता से भी बड़ी समस्या है देश के 36 करोड लोगों का पेट भरने की। इतना अन्न पैदा नहीं होता कि सबका पेट भरा जा सके। इसलिए गेहूं चावल खाना कम कर दे। खाना और दावत की बर्बादी रोकें।
आजादी के बाद हिंदुस्तान गरीबी, बेकारी, बीमारी, अकाल और भुखमरी से जूझ रहा था। देश में अन्न संकट को देखते हुए नेहरू जी ने लॉर्ड माउंटबेटन से कहा था कि अमेरिका पाकिस्तान के राष्ट्रपति को भारत के खिलाफ युद्ध करने के लिए बंदूकें देता है लेकिन हमें खाने के लिए गेहूं तक नहीं मिलता। इसीलिए उन्होंने योजना आयोग का गठन कर पंचवर्षीय योजना लागू की। प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही कृषि, सिंचाई, बिजली के उत्पादन पर जोर दिया।
आज अन्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर है। कृषि उत्पादन इतना बढ़ गया है की भंडारण के लिए गोदाम नहीं है अनाज सड़ रहा है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून इसीलिए बनाया था। जिसके कारण आज बीपीएल कार्डधारकों को मुफ्त अनाज मिल रहा है। यह सब एक दिन में नहीं हुआ। यह नेहरू जी के दूरदर्शिता का परिणाम है। राजनीतिक चश्मा उतार कर देखेंगे तब पता चलेगा की 70 सालों में क्या हुआ है। स्वनामधन्य प्रधान सेवक कहना सरल है, लेकिन बनना कठिन। एक जमाना था जब किसानों से अनाज की जबरिया लेव्ही ली जाती थी। अनाज परिवहन की नाकेबंदी थी। आज किसान को उपज का बाजार भाव नहीं मिल रहा है। साल भर किसानों को आंदोलन करना पड़ा।
जिसने 1962 से 1967 के बीच का दौर देखा होगा उन्हें मालुम है अकाल भुखमरी क्या है। इस अवधि में स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी मध्य प्रदेश सरकार में कृषि राज्य मंत्री और फिर बाद में योजना विकास मंत्री थे। सूखा अकाल के कारण मजदूरों के पास काम नहीं था। किसानों ने बीज खा लिया था। बोनी के लिए बीज तक नहीं बचा था, भुखमरी की स्थिति थी। जिन्होंने सस्ते गल्ले की राशन दुकानों से लाल रंग का गेहूं, ज्वार, मिलो खाया होगा उन्हें अकाल की पीड़ा मालूम होगी। चुरहट से गुढ़ रोड मोहनिया घाटी में चुरहट क्षेत्र के अच्छे-अच्छे फन्ने खां मजदूरी करके पेट पालते थे।
जगह-जगह राहत कार्य, सस्ते गल्ले, मोटे कपड़े की दुकानें खोली गई। किसानों को समिति के माध्यम से सस्ते दर पर तकाबी के रूप में कृषि बीज व खाद उपलब्ध कराई गई। कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई बिजली कृषि उपकरण को बढ़ावा दिया गया। चुरहट धान उत्पादक क्षेत्र था। समिति के माध्यम से धान खरीदी गई। दराई के लिए राइस मिल खोली गई। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी की ही देन है। अवर्षा के कारण सीधी जिले में लगातार 1980 तक सूखे की स्थिति बनी रही। गड्डी तथा कमर्जी घाट का निर्माण उसी अवधि में मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कराया गया था। जनता पार्टी के शासनकाल में राहत कार्य के मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा था। जनता पार्टी सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री रामहित गुप्ता का कम्युनिस्ट पार्टी ने चुरहट में घेराव किया था और उन्हें कार छोड़कर पैदल भागना पड़ा। तब स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे।
1980 में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद ही सीधी जिले के विकास को पंख लगे। सिंचाई, बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, रोजगार, औद्योगिकीकरण, संचार के क्षेत्र में चहुमुंखी प्रगति हुई। समाज के कमजोर वर्ग, अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, हरिजन आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक उत्थान के लिए अनेक महत्वपूर्ण नीतियां बनाई गई। उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए अर्जुन सिंह सदैव प्रयत्नशील रहे। इसीलिए वे जीवन के अंतिम सांस तक अपने आप को कांग्रेस का एक साधारण सिपाही तथा जनता का सेवक कहते रहे। समाजवादी समाज के उन्नयन, स्थापना और संरचना के लिए वे समर्पित और संघर्षशील रहे। नेहरू गांधी को वे सदैव अपना आदर्श मानते रहे। उन्होंने कभी आत्मगत राजनीति नहीं की। सिद्धांतों और मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया। आज उस महान् आत्मा को उनके जन्म जयंती पर सादर नमन।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)