पौधरोपण के लिए नियम विरुद्ध खोद डाले हजारों गड्ढे
भोपाल (देसराग)। राजधानी परियोजना प्रशासन (सीपीए) 31 मार्च को हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। इसको देखते हुए सीपीए की वन डिवीजन के हुक्मरानों ने विभाग के बजट को बंद होने से पहले खपाने के लिए नियमों को ताक पर रखकर शहर की सीमा और आसपास जेसीबी से 40 हजार से अधिक गड्ढे करा लिए हैं। यही नहीं अब भुगतान करने की भी तैयारी कर ली गई है। इससे विभाग में बड़े स्तर पर अनियमितता की आशंका जताई जा रही है।
गौरतलब है कि सीपीए को बंद करने की प्रक्रिया चल रही है। वित्तीय वर्ष के अंत के साथ 31 मार्च के बाद सीपीए का बजट न तो अगले वर्ष में स्थानांतरित होगा ना ही नया बजट आएगा। इसलिए अधिकारी मार्च तक ही इसे निपटाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसके लिए नियमों को ताक पर रखकर काम कराया जा रहा है। पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान का कहना है कि एक कुदरती जंगल में कई दशकों में जैव विविधता विकसित होती है, लेकिन यहां पौधरोपण के नाम पर ना सिर्फ जंगल में मशीनें चलाई गईं, बल्कि जंगल को मिटाकर पार्क बनाया जा रहा है। जल्दबाजी में किया जा रहा सारा काम बजट ठिकाने लगाने के लिए किया जा रहा है, ऐसे समय में सीपीए को कोई काम करने या किसी भी तरह के भुगतान की अनुमति ही नहीं मिलनी चाहिए।
जो काम मई में होना था वो फरवरी में किया
सीपीए की वन डिवीजन के हुक्मरानों की बजट खपाने की जल्दबाजी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पौधरोपण की शुरुआत जुलाई से की जाती है, अमूमन इसके लिए अप्रैल और मई में गड्ढे किए जाते हैं लेकिन सीपीए की वन डिवीजन ने इस वर्ष फरवरी के महीने में ही पौधरोपण के लिए गड्ढे करा दिए। इतना ही नहीं आनन-फानन में 40 हजार से अधिक गड्ढे नियम विरुद्ध तरीके से मशीन से करा दिए गए जबकि नियमानुसार गड्ढे श्रमिकों से कराए जाने चाहिए। अब इन गड्ढों का भुगतान जेसीबी ठेकेदारों को करने की तैयारी है। डीएफओ एचएस मिश्रा का कहना है कि यह बात सही है कि गड्ढे मशीन से कराए हैं, जहां श्रमिक नहीं मिलते वहां मशीनों से कराए जा सकते हैं। यह इलाका पथरीला है, इसके चलते ऐसा किया गया है।
लाखों रुपए की गड़बड़ी
अधिकारियों और पर्यावरण कार्यकतार्ओं का आरोप है कि मशीन से कराए गए गड्ढों का भुगतान श्रमिकों से कराए जाने की दर पर करके लाखों रुपए की गड़बड़ी किए जाने की तैयारी है। सीपीए की वन डिवीजन ने नियमों को ताक पर रखकर शहर की सीमा और आसपास 40 हजार से अधिक गड्ढे करा लिए हैं, इनमें से भेल में 22 हजार से अधिक, राजीव गांधी विवि परिसर में लगभग 10 हजार तो चंदनपुरा और इससे लगे छोटे झाड़ के जंगल इलाके में भी 10 हजार से अधिक गड्ढे कराए जा चुके हैं। सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक केसी मल्ल का कहना है कि मैं एक दशक से अधिक समय तक सीपीए की वन डिवीजन में रहा। गड्ढे मैन्युल कराने का नियम है, लोगों को रोजगार मिले और वे पौधरोपण से जुडें। इसलिए श्रमिकों से ही गड्ढे कराना अनिवार्य है जबकि मशीन से कराने में गड्ढे सस्ते पड़ते हैं। ऐसे में यह आर्थिक अपराध भी है। ऐसा काम करने वाले अधिकारियों को केवल नोटिस ही नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि उनकी सीआर में यह दर्ज होना चाहिए कि उन्होंने किस तरह काम कराया।