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Sunday, Sep 24, 2023
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विचार

भिण्ड के महानायक को सादर नमन

चम्बल अंचल का भिंड जिला वीरता और शौर्य गाथाओं का साक्षी रहा है। इसी जिले की माटी में एक ऐसे सपूत को जन्म दिया है, जो आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है। 4 मार्च 1917 को भिंड जिले के पांडरी गांव के एक गरीब किसान परिवार में जन्मे स्व.रघुवीर सिंह कुशवाह “बाबूजी” ने असाधारण कार्य कर चंबल अंचल की माटी को ना सिर्फ मान दिया, बल्कि इसे एक अलग पहचान भी दिलाई। चम्बल के पानी की बगावती ठसक उनकी बोलचाल की भाषा में स्पष्ट झलकती थी। यही वजह रही कि छात्र जीवन के दौरान ही अन्याय कि खिलाफ विभिन्न आन्दोलनों के जरिए मुखर होकर आवाज बुलन्द करते देखे गए। स्व.रघुवीर सिंह कुशवाह चंबल अंचल के ऐसे सपूत हैं, जिन पर पूरे अंचल को गर्व है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सच्चे जनसेवक और गरीब हितैषी रघुवीर सिंह कुशवाह छात्र जीवन के दौरान ही 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन का हिस्सा बन गए थे। यह अलग बात है कि उन्होंने जो असाधारण कार्य किया, उसका उतना मूल्यांकन नहीं किया गया, जिसके कि वे हकदार थे। समाजवादी विचारधारा के जनक “बाबूजी” की खूबी यही थी कि उन्होंने अपना सारा जीवन एक साधारण व्यक्तित्व के रुप में जीया। उनके द्वारा महात्मा गांधी के 1942-43 के आंदोलन के दौरान रेल की पटरी उखाड़ कर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जो असाधारण कार्य किया, वह स्वतंत्रता आंदोलन के स्वर्णिम इतिहास में दर्ज है। हालांकि इसके एवज में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें 17 वर्षों की कठोर कारावास की सजा सुनाई। संघर्षों में जीवन बिताने वाले “बाबूजी” ने जीवन पर्यंत शोषित और वंचितों के लिए संघर्ष किया। ग्वालियर-चंबल अंचल के लिए वह ऐसे सपने थे, जिन्होंने इस अंचल में समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाया, बल्कि समाजवादी आंदोलन की एक पीढ़ी तैयार की। जेल से रिहा होने के बाद वह चुपचाप घर नहीं बैठे, बल्कि खारिका कांड आंदोलन, अलापुर जौरा आंदोलन, ताजोरी टैक्स विरोधी आंदोलन और बंजर भूमि पर कब्जा करने जैसे आंदोलनों में बढ़ चढ़कर भाग लिया। यह आंदोलन उनके उस संघर्ष की याद दिलाते हैं, जो उन्होंने गरीब और शोषितों के लिए किए। “बाबूजी” आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी संघर्ष गाथा इस अंचल के लोगों के मानस पटल पर अभी भी अंकित हैं।
वह भले ही कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने हों, लेकिन समाजवादी विचारधारा ने उन्हें इस तरह आकर्षित किया कि वह हमेशा के लिए सच्चे समाजवादी हो गए। समाजवादी चिंतन उनके राजनीतिक जीवन का प्राण था। यह उनकी डायरी में दर्ज है। 1954 में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था कि “समाजवाद की सफलता के लिए पूरी शक्ति से संघर्ष करना आवश्यक है।” त्याग और बलिदान उनके राजनीतिक जीवन का मूल तत्व रहा। व्यावहारिक रूप से वह इसी मार्ग पर आजीवन चलते रहे। वह हमेशा जनहित की बात करते थे। “बाबूजी” अक्सर कहा करते थे कि दिल्ली और भोपाल में बैठकर जो कानून बनाया जाता है, अगर वह जनता को पसंद नहीं है, तो उसे जबरन नहीं थोपा जाना चाहिए। अमीरी और गरीबी के बीच भेद तथा जातीय भेदभाव उन्हें कभी रास नहीं आया। लोगों के बीच समानता का भाव उन्होंने आत्मसात किया और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित किया।
यह हमारे लिए गौरव का विषय है कि आज हम ऐसे महान व्यक्तित्व को याद कर रहे हैं, जिन्होंने इस अंचल को जन संघर्ष की पहचान दी। यह हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम उनके संघर्षों को याद रखें और जनहित के लिए अपना भी योगदान दें। खासतौर पर युवा वर्ग और नई पीढ़ी “बाबूजी” के विचारों पर मनन करें और उनके संघर्षों से प्रेरणा लें।
“बाबूजी” ने अन्याय के खिलाफ अत्याचार के खिलाफ जो संघर्ष किया वह समतामूलक समाज की दिशा में आगे बढ़ने का एक कदम है। अगर हम उनके विचारों और उनके कार्यों को आत्मसात करेंगे, तभी हम समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं। समतामूलक समाज की स्थापना आज की आवश्यकता है। स्व.रघुवीर सिंह कुशवाह “बाबूजी” को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके कार्यों को आगे बढ़ाएं।

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