“शिवराज सिंह चौहान एक ऐसा नाम। जिन्हें कोई राजनेता
कहता है तो कोई राजनीति के फलक पर ऐसा सितारा मानता है, जिसके आस पास अनिश्चितताओं का घेरा है। शिवराज किसी की नजरों में जनता के दिलों के राजा हैं तो किसी के लिए उनका हमदर्द। लेकिन सच कहूं, तो यह पहचान उन्हें कभी भी वो संतुष्टि नहीं दे सकीं, जो शिवराज जी चाहते हैं। उनकी संतुष्टि तो हमेशा लोगों के बीच रहकर उनकी सेवा करने में है। भारतीय राजनीति के दिव्य पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा स्थापित सिद्धांतों,आदर्शो का अनुसरण करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश की राजनीति में अपना नाम स्वर्णाक्षर में दर्ज कराया है। “
जीवन दर्शन
छात्र जीवन से राजनीति शुरु कर जन नेता के रूप में पहचाने गए शिवराज की लोकप्रियता को कई बार जाँचा गया,परखा गया, लेकिन कहते हैं कि सांच को आंच नहीं। वे उक्त कहावत को हमेशा चरितार्थ करते दिखे। लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीतने से लेकर पंचायत स्तर तक शिवराज सरकार को लोगों ने चुना और पसंद किया। विरोधी सक्रिय रहे, लेकिन शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता का ग्राफ निरन्तर बढ़ता गया। जो लोकप्रियता उन्होंने हासिल की है, उसे नापने में दूसरों को शायद एक युग प्रतीक्षा करना पड़े। शिवराज सिंह फिर चौथी बार मुख्यमंत्री के रुप में प्रदेश की कमान सम्भाल रहे हैं। राजनीति के दिग्गजों में भले ही उनकी उम्र कम है, लेकिन उनमें अनुभवों का भण्डार अपार है। अपने विनम्र स्वभाव, सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति, ठोस निर्णय लेने में कभी कोताही नहीं करने की आदत और समयानुकूल रणनीति बनाने में महारत रखने के बलबूते पर न केवल प्रदेश में चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने का दमखम उन्होंने दिखाया, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी संगठन में अपनी एक अलग पहचान बनायी है। मध्यप्रदेश और शिवराज सिंह चौहान एक पर्याय के रुप में दिखाई दे रहे हैं। मध्यप्रदेश में ब्रांड शिवराज कितना मायने रखता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विगत् वर्ष संपन्न राज्य के बेहद अहम समझे जाने वाले उपचुनावों में पार्टी की अगुवाई करने के लिये उन्हीं को चुना गया। उपचुनावों के परिणामों में उन्नीस सीटें जीतकर उन्होंने यह साबित भी कर दिया था कि पार्टी ने उन पर जो विश्वास जताया उस पर वे शत-प्रतिशत खरे उतरे। आज वे संगठन के साथ-साथ प्रदेश के लोगों की पहली पसंद बन गए हैं।
राजनीतिक पदार्पण
सन् 1977-78 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री बने। सन् 1975 से 1980 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मध्य प्रदेश के संयुक्त मंत्री रहे। सन् 1980 से 1982 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश महासचिव, 1982-83 में परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य, 1984-85 में भारतीय जनता युवा मोर्चा, मध्य प्रदेश के संयुक्त सचिव, 1985 से 1988 तक महासचिव तथा 1988 से 1991 तक युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। मध्यप्रदेश की राजनीति के अतीत में झांके तो पूर्ववती सरकारों के अनेक ऐसे लोगों ने सत्ता की बागडोर सम्भाली जिन्होंने सिर्फ दलगत तथा जातिगत राजनीति की चिंता की। परिणाम यह निकला कि तत्कालीन नेताओं की कुर्सी तो सुरक्षित रही, लेकिन प्रदेश विकास नहीं कर पाया और कई मामलों में पिछड़ता गया। सन् 1956 के बाद सत्ता के नाम पर जिस समय जातिगत राजनीति को आधार बनाया गया था उसी कालखंड में शिवराज सिंह चैहान की प्रारम्भिक राजनीति शुरु हुयी थी। यदि शुरुआती दौर की बात करें, तो शिवराज सिंह ने मजदूरों के हक में आवाज बुलंद कर अपनी क्रांतिकारी विचारधारा का परिचय दे दिया । मजदूरों के हक के लिये आवाज उठाकर उन्होंने यह संकेत दे दिया कि वर्षो से चली आ रही सामंती प्रथा को अब ठुकराना होगा और आम आदमी के हित की चिंता करना होगी। राजनीतिक सूझबूझ रखने वालों का मानना है कि शिव ने यहीं से अपनी कर्तव्य परायणता की शुरुआत की थी। इसके बाद युवा होने पर सक्रिय राजनीति में उनका पदार्पण हुआ। अपनी अद्भुत कार्यक्षमता, विवेकशील तर्कबुद्धि तथा सरल सौम्य व्यवहार के कारण शिवराज ने काफी कम समय में ही विभिन्न ऊँचाईयों को स्पर्श कर अपने नाम के अनुरुप संगठन तथा समाज में अपनी पृथक प्रतिष्ठा स्थापित कर ली है। सब जानते हैं कि पिछले वर्ष कोरोना महामारी ने मध्यप्रदेश में त्राहि-त्राहि मचा रखी थी। बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता के बीच पहुँचे, उन्हें साहस दिलाया। उन दिनों जिस तरह वे सड़क पर उतरकर आमजन के बीच पहुँचे उससे लोगों को यह अहसास हुआ कि मुख्यमंत्री का दायित्व क्या होता है। सरकार और जनता के बीच की दूरी को मिटाकर नजदीक पहुँचने का प्रयोग संभवतः मध्यप्रदेश में पहली बार हुआ है। कोरोनाकाल में वे दिन रात रणनीति बनाने में जुटे रहे। पुलिस प्रशासन तथा स्वास्थ्य सेवाओं के क्रियान्वयन पर उनकी सतत् निगरानी बनी रही। लगातार परिश्रम और सक्रियता के बाद वे स्वयं कोरोना पीड़ित हो गये, लेकिन स्वस्थ होने के बाद एक बार फिर पहले जैसा सिलसिला आरम्भ हो गया। आज मध्यप्रदेश कोरोना महामारी से लड़कर पहले जैसी स्थिति में लौट रहा है। इसका श्रेय मध्यप्रदेश की जनता के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जाता है जिनकी कार्यकुशलता, बौद्धिक क्षमता तथा साहसिक फैसलों ने स्थिति सामान्य होने में ज्यादा समय नहीं लगाया।
विकास के रास्ते पर अग्रसर
कोरोना संकट अभी खत्म नहीं हुआ है। लॉकडाउन से कमजोर हुई प्रदेश की अर्थव्यवस्था से उभरना बड़ी चुनौती है। ऐसे समय सरकार क्या कदम उठायेगी इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं। मुख्यमंत्री प्रदेश के हर वर्ग के लोगों के साथ खड़े हैं। उम्मीद की जा रही है कि नया वर्ष 2021 मध्यप्रदेश के लिये विकास और समृद्धि लेकर आया है। पिछले वर्ष हुए आर्थिक नुकसान की भरपायी इस वर्ष करना है यह संकल्प प्रदेश की जनता ने लिया है। शिवराज सिंह चौहान से प्रदेशवासियों को अनेक आशायें हैं। उनकी सक्रियता प्रदेश भर में बनी हुई है। हर स्थिति का वे खुद जायजा ले रहे हैं। शिवराज सिंहच चौहान के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि जल्द ही प्रदेश के दो बड़े शहरों भोपाल तथा इंदौर को मेट्रो ट्रेन की सुविधा मिल जायेगी। मेट्रो लाने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने उन सभी कार्यो को अंजाम तक पहुँचाया जिन्हें जरुरी माना गया था। ऐसे अनगिनत काम और योजनायें हैं जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अथक प्रयासों से अपने अंजाम तक पहुँचे हैं। मध्यप्रदेश में चल रहे जनकल्याणकारी कामों का देश भर में प्रचार हुआ है, स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा उठाये गए कदमों को सराहा है। 5 मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का 62 वां जन्मदिन है। इस दिन प्रदेश का हर नागरिक यह संकल्प ले रहा है कि वह प्रदेश को विकास के रास्ते पर अग्रसर करने के लिये सरकार के साथ अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए मध्यप्रदेश को आत्मनिर्भर बनाएगा। देश के मानचित्र पर मध्यप्रदेश सर्व विकसित,समृद्धशाली, शक्तिशाली और धार्मिक सद्भाव की पहचान दिलाने वाला राज्य बनकर उभर सके। यह तय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में जिस प्रकार से समग्र कार्य योजनाओं के तहत् हमारा प्रदेश आगे बढ़ रहा है, अब वह समय दूर नहीं जब मध्यप्रदेश आने वाले दिनों में अन्य राज्यों के लिये रोल मॉडल बनेगा।
जनसेवक के रुप में शिवराज
शिवराज सिंह चौहान 1990 में पहली बार बुधनी, विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। इसके बाद 1991 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद बने। शिवराज सिंह चौहान 1991-92 में अखिल भारतीय केशरिया वाहिनी के संयोजक तथा 1992 में अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव बने। सन् 1992 से 1994 तक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महासचिव नियुक्त। सन् 1992 से 1996 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 1993 से 1996 तक श्रम और कल्याण समिति तथा 1994 से 1996 तक हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रहे। ये 11 वीं लोक सभा में वर्ष 1996 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से पुन: सांसद चुने गये। सांसद के रूप में 1996-97 में नगरीय एवं ग्रामीण विकास समिति, मानव संसाधन विकास विभाग की परामर्शदात्री समिति तथा नगरीय एवं ग्रामीण विकास समिति के सदस्य रहे। चौहान वर्ष 1998 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से ही तीसरी बार 12वीं लोक सभा के लिए सांसद चुने गये। वह 1998-99 में प्राक्कलन समिति के सदस्य रहे। ये वर्ष 1999 में विदिशा से चौथी बार 13 वीं लोक सभा के लिये सांसद निर्वाचित हुए। वे 1999-2000 में कृषि समिति के सदस्य तथा वर्ष 1999-2001 में सार्वजनिक उपक्रम समिति के सदस्य रहे। सन् 2000 से 2003 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। इस दौरान वे सदन समिति (लोक सभा) के अध्यक्ष तथा भाजपा के राष्ट्रीय सचिव रहे। चौहान 2000 से 2004 तक संचार मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे। शिवराज सिंह चौहान पॉचवी बार विदिशा से 14वीं लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुये। वह वर्ष 2004 में कृषि समिति, लाभ के पदों के विषय में गठित संयुक्त समिति के सदस्य, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, भाजपा संसदीय बोर्ड के सचिव, केन्द्रीय चुनाव समिति के सचिव तथा नैतिकता विषय पर गठित समिति के सदस्य और लोकसभा की आवास समिति के अध्यक्ष रहे।
मुख्यमंत्री के रूप में
चौहान वर्ष 2005 में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये गये। चौहान को 29 नवम्बर 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। प्रदेश की तेरहवीं विधानसभा के निर्वाचन में चौहान ने भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक की भूमिका का बखूबी निर्वहन कर विजयश्री प्राप्त की। चौहान को 10 दिसम्बर 2008 को भारतीय जनता पार्टी के 143 सदस्यीय विधायक दल ने सर्वसम्मति से नेता चुना। चौहान ने 12 दिसम्बर 2008 को भोपाल के जंबूरी मैदान में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ग्रहण की।
मुख्यमंत्री के रूप मे रिकार्ड
शिवराज सिंह जी मध्य प्रदेश मे सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री के रूप मे कार्यभार संभालने वाले पहले मुख्यमंत्री है, शिवराज जी ने 13 वर्ष 17 दिन का मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला है, और वर्तमान मे भी वह 15 महिने के बाद फिर मे मुख्यमंत्री के पद का दुबारा निर्वाह कर रहे है। इसके अलावा मध्य प्रदेशमे सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड भी उन्होंने अपने नाम कर लिया है। 23 मार्च को शिवराज ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके पहले ये रिकार्ड अर्जुन सिंह और श्यामाचरण शुक्ल के पास था। ये मध्य प्रदेश के तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके है। 24 मार्च 2020 शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।