भोपाल (देसराग)। आर्थिक संकट की मार झेल रहा मध्य प्रदेश का बिजली विभाग सरकारी महकमों द्वारा बिजली बिलों की राशि का भुगतान नहीं किए जाने से हलकान बना हुआ है। सरकारी महकमों ने बिजली बिलों की करीब डेढ़ हजार करोड़ की राशि दबा रखी है। तमाम प्रयासों के बाद भी विभागों द्वारा बिलों की राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है।
इस राशि की वसूली के लिए अब ऊर्जा विभाग द्वारा वित्त विभाग से मदद ली जा रही है। इसका फायदा यह हुआ कि अब वित्त विभाग ने सभी विभागों से बिजली विभाग की बकाया राशि भुगतान करने के निर्देश दिए हैं। इनमें सर्वाधिक बकाया राशि वाले विभाग हैं नगरीय विकास एवं प्रशासन और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग। इन दोनों विभागों से अब वित्त विभाग ने बजार से कर्ज उठाकर बकाया भुगतान करने तक को कह दिया है। खास बात यह है कि इस मामले में वित्त विभाग ने इन विभागों को कर्ज के लिए जरुरी गारंटी राज्य सरकार की ओर से देने की भी बात कही है। वित्त विभाग के इन प्रयासों की वजह से बिजली महकमे को अपनी बकाया राशि मिलने की उम्मीद जाग गई है। सरकारी महकमों पर अगर तीनों बिजली कंपनियों का अलग-अलग बकाया देखा जाए तो इसमें सर्वाधिक राशि पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी की 908 करोड़ रुपए, मध्यक्षेत्र का 387 और पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी का कुल 212.76 करोड़ रुपए है।
किस महकमे पर कितनी लेनदारी?
अगर विभिन्न सरकारी महकमों पर बिजली कंपनियों की बकाया राशि के आंकड़ों को देखे तों इनमें नगरीय विकास एवं आवास 690.26, पंचायत एवं ग्रामीण विकास पर 591.79, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग पर 24.93, जल संसाधन पर 15 .37, नर्मदा घाटी विकास पर 57.52, गृह पर 29.6, स्कूल शिक्षा पर 52.09, किसान कल्याण एवं कृषि पर 2.62 ,वन पर 4.79 , स्वास्थ्य विभाग पर 13.21, आदिम जाति कल्याण विभाग पर 10.94 , राजस्व पर 6.87, लोक निर्माण पर 6.87, उच्च शिक्षा पर 2.04 करोड़ रुपए का बकाया है।
जनता पर धारा 135 और 138 के तहत कार्रवाई
बिजली कंपनियां जनता पर कार्रवाई में नहीं हिचकतीं। वर्ष 2020-21 में धारा 135 व 138 (बिजली की सीधे चोरी, उपकरण लगाकर मीटर से छेड़छाड़, कनेक्शन काटना और बिल नहीं देने पर पैनल्टी लगाना) के तहत एक लाख 80 हजार लोगों पर कार्रवाई कर 361 करोड़ रुपए के चालान काटे गए। इसकी एवज में 222 करोड़ की वसूली हुई। उधर सरकारी महकमों के जिम्मेदार लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं करती है। इसकी वजह से सरकारी अमला इस मामले में पूरी तरह से लापरवाह बना रहता है।
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