पिछले दो साल में कोरोना काल के कारण कर्ज में तेजी से बढ़ोत्तरी
भोपाल (देसराग)। मध्य प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की नीति पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान काम कर रहे हैं। लेकिन आत्मनिर्भर मप्र की राह में कर्ज और उस पर लगने वाला ब्याज सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में स्थिति यह है कि बजट में कुल राजस्व प्राप्तियों यानी आमदनी का हर साल औसत 13 फीसदी केवल कर्ज के ब्याज को चुकाने में चला जाता है। प्रदेश पर कर्ज और उसका ब्याज भारी पड़ता है, लेकिन बावजूद इसके हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है।
जानकारों का कहना है कि इस बार के बजट में प्रदेश सरकार को ऐसे प्रावधान लाने की कोशिश की जानी चाहिए जिससे कर्ज लेने की नौबत कम आए और ब्याज का बोझ भी कम हो सके। वर्ना प्रदेश सरकार पर साल दर साल कर्ज और ब्याज का बोझ बढ़ता जा रहा है। इससे विकास प्रभावित हो रहा है।
लगातार बढ़ रहा कर्ज का बोझ
प्रदेश में आज स्थिति यह है कि सरकार आमदनी का 13 फीसदी तो ब्याज में चुका रही है। वही खास तौर पर पिछले दो साल में कोरोना काल के कारण कर्ज में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। जितनी कर्ज बढ़ोत्तरी 2014 से 2019 तक हुई थी, उतनी तो केवल कोरोना काल के दो सालों में हो गई। कोरोना काल के तहत इस साल भी केंद्र ने मप्र को अतिरिक्त कर्ज लिमिट दी थी, जिसके चलते प्रदेश ने अतिरिक्त कर्ज लिया। इसका असर भी आने वाले सालों में ब्याज का बोझ बढ़ने के रूप में सामने आना है। इस साल जीडीपी का आधा फीसदी अतिरिक्त कर्ज लेने की छूट प्रदेश को मिली थी। इससे करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त कर्ज लेने की सुविधा मिल जाती है। अगले वित्तीय वर्ष में भी प्रदेश के बेहतर प्रदर्शन के कारण अतिरिक्त कर्ज की छूट मिलने की स्थिति है। इसमें करीब आधा फीसदी की छूट मिल सकेगी।
आमदनी का 13 फीसदी तक ब्याज पर खर्च
वित्त विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मौजूदा वित्तीय सत्र में 2.41 लाख करोड़ रुपए का बजट है, जिसमें कुल राजस्व प्राप्तियों में से 12.72 फीसदी को ब्याज के रूप में ही चुकाया जा रहा है। इस साल राजस्व प्राप्ति की आमदनी 1 लाख 64 हजार 699 करोड़ रुपए की अनुमानित है। इसका 12.72 फीसदी ब्याज के रूप में जाना है। अगले 2022-23 के बजट में यह और बढ़ जाएगा। इसमें एक से डेढ़ फीसदी तक की बढ़ोत्तरी संभावित है। वही इस बार 8294 करोड़ का राजस्व घाटा अनुमानित है, लेकिन इस बार राजस्व वसूली बेहतर हुई है। इसलिए इसमें अब कमी भी आ सकती है। फिलहाल स्थिति ये है कि कुल कर्ज देखे तो हर दिन सरकार औसत 48 करोड़ का कर्ज लेती है। जबकि औसत 16 हजार करोड़ रुपए साल का ब्याज में दिया जाता है।
कर्ज की लिमिट बढ़ने से ज्यादा कर्ज
यदि मौजूदा वित्तीय सत्र के बजट अनुमान को देखे तो सकल कर्ज-जीएसडीपी अनुपात में दो साल में बेतहाश वृद्धि हुई है। वर्ष-2014-15 में यह 22.06 फीसदी था, जो 2019-20 तक आते-आते 24.33 फीसदी हुआ। लेकिन, 2020 व 2021 में यह बढ़कर 28.52 प्रतिशत तक चला गया है। इस कारण कोरोना काल में कर्ज की लिमिट बढ़ने से ज्यादा कर्ज लेना रहा। यदि नियमों के हिसाब से बात करें तो सकल घरेलु उत्पाद का साढ़े तीन फीसदी तक कर्ज प्रदेश ले सकता है, लेकिन इसमें कोरोना काल के कारण अतिरिक्त छूट मिली। इस साढ़े तीन फीसदी में आधा प्रतिशत परफार्मेंस बेस्ड रहता है। बेहतर परफार्मेंस से भी इसमें अतिरिक्त कर्ज की लिमिट बढ़ जाती है। इसके तहत प्रदेश में कर्ज ढ़ाई लाख करोड़ तक जा पहुंचा है। राज्य का बजट भी अब लगभग इतना ही है।
2 लाख करोड़ का राजस्व प्राप्ति
आंकड़ों की बाजीगरी के जरिए कर्ज को राज्य के कुल बजट से कम बताया जाता है, क्योंकि यह कुल बजट से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इसी कारण ऑफ बजट कर्ज अलग रख दिया जाता है। उसे बजट के आंकलन में शामिल नहीं करते। इससे कर्ज कम दिखता है। प्रदेश को हर साल 2 लाख करोड़ रूपए से अधिक का राजस्व प्राप्त होता है। प्रदेश के सरकारी खजाने में इस साल 64,994 करोड़ रुपए राज्य से टैक्स के रूप में मिलेगा, 52,247 करोड़ रुपए केंद्र से प्रदेश को राज्यांश के रूप में मिलना है, 49,464 करोड़ रुपए कर्ज के रूप में प्रदेश को मिलना है और 35,775 करोड़ रुपए इस साल केंद्र से सहायता के रूप में मिलना है।