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Wednesday, Sep 27, 2023
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शिवराज जी इससे तो “कर्मचारी और सियासत” दोनों आपके मुरीद होंगे!

12 साल तक सरकार पर नहीं आएगा अतिरिक्त बोझ

भोपाल (देसराग)। मध्यप्रदेश में पुरानी पेंशन योजना लागू करने के लिए शिवराज सरकार पर दबाव बढ़ गया है। राजस्थान-झारखंड की सरकारों द्वारा पुरानी पेंशन योजना लागू करने के बाद मध्य प्रदेश का सियासी पारा उफान पर है। कर्मचारी तो चुनौती दे ही रहे हैं, उनके साथ कांग्रेस भी आ खड़ी हुई है। अगर सरकार पुरानी पेंशन योजना लागू करती है, तो आने वाले 10 से 12 साल तक सरकार पर आर्थिक बोझ नहीं आएगा, बल्कि उसकी करोड़ों रुपये की बचत भी होगी।
प्रदेश की सरकार पर पुरानी पेंशन लागू करने के लिए विपक्ष से लेकर कर्मचारी संगठनों ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन लागू करने के लिए आंदोलन की तैयारी कर ली है। वहीं कांग्रेस भी सदन से लेकर सड़क तक सरकार को घेरने की तैयारी में जुट गई है। 2023 के चुनाव से पहले कर्मचारियों से जुड़े इस बड़े मुद्दे को लेकर प्रदेश का सियासी पारा चढ़ गया है। कर्मचारी संगठनों ने पुरानी पेंशन लागू करने को लिए आंदोलन की तैयारी कर ली है। कर्मचारी संगठन राजस्थान की तरह प्रदेश में भी पुरानी पेंशन लागू करने के पक्ष में हैं। इसे लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी की तैयारी में जुट गए हैं। वहीं कांग्रेस ने विधानसभा के बजट सत्र में इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्लान तैयार कर लिया है। पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कांग्रेस पार्टी पुरानी पेंशन बहाल करने का मुद्दा विधानसभा मंय उठाएगी। विपक्ष ने विधानसभा में संकल्प प्रस्ताव दिया है।
12 साल तक सरकार पर बोझ नहीं आएगा
शिवराज सरकार पुरानी पेंशन योजना लागू करतीहै तो 12 साल तक सरकार पर इसका कोई अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं आएगा। उसे प्रदेश के 3.35 लाख कर्मचारियों के अंशदायी पेंशन के तहत हर माह 14 फीसदी की हिस्सेदारी से करीब 344 करोड़ रुपए की फिलहाल बचत होगी, लेकिन इसमें राजनीतिक पेंच भी है। नई पेंशन योजना अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने लागू की थी। हालांकि अटल सरकार की योजना में किसी भी राज्य के लिए यह बाध्यता नहीं थी कि वह अपने राज्य में इस योजना को अनिवार्य रुप से लागू करे। अर्थात राज्य सरकारें इस बात के लिए स्वतंत्र थीं कि जो राज्य सरकार इसे लागू नहीं करना चाहती, तो वह ऐसा कर सकती हैं। यही धर्म संकट पुरानी स्कीम को बहाल करने में शिवराज सरकार के सामने है।
क्या है योजना का गुणा-गणित?
1 जनवरी 2005 के बाद प्रदेश में 3.35 लाख से ज्यादा कर्मचारी सेवा में आ चुके हैं, जो पेंशन नियम-1972 के दायरे में नहीं आते। 2.87 लाख अध्यापक संवर्ग से हैं, जो 2008 में टीचर बन गए। बचे हुए 48 हजार पर नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) लागू है।
1 जनवरी 2005 से सरकारी सेवा में आए कर्मचारियों का कहना है कि उनके लिए अंशदायी पेंशन (वर्तमान में लागू) में कर्मचारी के मूल वेतन से 10 फीसदी राशि काटकर पेंशन खाते में जमा कराई जाती है और 14 फीसदी राशि सरकार मिलाती है। सेवानिवृत्त होने पर 50 फीसदी राशि एकमुश्त दे दी जाती है। शेष 50 फीसदी से पेंशन बनती है। यह राशि अधिकतम 7 हजार रुपए से ज्यादा नहीं होती। इसकी वजह से कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग कर रहे हैं।
2005 के बाद 3.35 लाख कर्मचारी नौकरी में आए
आजाद अध्यापक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष भरत पटेल कहते हैं कि 1 जनवरी 2005 के बाद 3.35 लाख अधिकारी-कर्मचारी सरकारी नौकरी में आए हैं। इसमें सबसे ज्यादा टीचर हैं, जिनकी संख्या 2.87 लाख है। सरकार हर महीने उनके मूल वेतन का 14 फीसदी अंशदान राशि (करीब 7 हजार रुपए) खाते में जमा करती है। यानी सरकार को हर माह 210 करोड़ रुपए वहन करना पड़ रहे हैं। इसी तरह, 48 हजार स्थाई कर्मचारियों पर सरकार को 3 हजार रुपए के हिसाब से 134 करोड़ रुपए अपनी हिस्सेदारी है। यानी दोनों मिलाकर सरकार पर हर महीने 344 करोड़ रुपए का बोझ है। पटेल कहते हैं कि इन कर्मचारियों और अधिकारियों की 30 साल की नौकरी 2035 में पूरी होगी। यदि पुरानी पेंशन योजना बहाल होती है, तो सरकार पर आर्थिक बोझ 12 साल बाद आएगा, जबकि इन 12 सालों में सरकार को हर महीने 344 करोड़ रुपए बचते रहेंगे।
सरकारी सेवाओं में आने के लिए पेंशन आकर्षण
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव कृपाशंकर शर्मा कहते हैं कि सरकारी सेवाओं में 1 अप्रैल 2004 से फैमिली पेंशन खत्म कर दी गई थी। सरकार का यह कदम ठीक नहीं था। पेंशन ही एक ऐसा आकर्षण है, जो लोगों को सरकारी सेवाओं में आने के लिए आकर्षित करता है। सातवें वेतन आयोग में इसकी अनुशंसा है। सरकार इसे मानती है तो कर्मचारियों के हित में फायदेमंद होगा।
लागू पेंशन स्कीम का विरोध क्यों?
वर्तमान में लागू पेंशन योजना के तहत कर्मचारी अपने मासिक वेतन का 10 फीसदी भुगतान करते हैं। सरकार भी इतना ही मिलाती थी, लेकिन मई 2021 से सरकार ने अपना हिस्सा 4 फीसदी बढ़ा दिया है। अब कर्मचारी के वेतन का 24 फीसदी (10 फीसदी कर्मचारी+14 फीसदी सरकार) पेंशन के नाम पर लिया जाता है। बाद में इसे इक्विटी शेयरों में निवेश किया जाता है। सेवानिवृत्ति पेंशन उस निवेश के रिटर्न पर आश्रित है।
पुरानी पेंशन योजना में पूरी पेंशन राशि सरकार ही देती थी। इसमें पगार से राशि नहीं काटी जाती थी। कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद हर महीने मिलने वाली पेंशन उसके वेतन से आधी राशि होती थी।
सालाना चार हजार करोड़ की बचत
पुरानी पेंशन बहाली को लेकर मध्य प्रदेश सरकार का जो भी रुख हो पर जानकार बताते हैं कि इससे कर्मचारी ही नहीं सरकार को भी फायदा है। वह पुरानी पेंशन लागू कर मौजूदा स्थिति में सालाना चार हजार 128 करोड़ रुपये से अधिक राशि बचा सकती है और परिवार के भरण पोषण की गारंटी होने से कर्मचारी भी खुश हो जाएगा। जिसका सियासी लाभ भी मिल सकता है। तभी तो कांग्रेस ने इस मुद्दे को हाथोंहाथ ले लिया है। कांग्रेस व भाजपा मिलाकर आधा सदन (विधानसभा का सदन) पुरानी पेंशन बहाली पर सहमत है। बस अब सरकार को निर्णय लेना है। ज्ञात हो कि प्रदेश में करीब तीन लाख 35 हजार कर्मचारी पुरानी पेंशन की पात्रता रखते हैं। प्रदेश में अंशदाई पेंशन योजना के दायरे में आने वाले कर्मचारियों में सबसे बड़ी संख्या (2.87 लाख) शिक्षकों की है। इनकी नियुक्ति 1995 से 2013 तक हुई है पर 2018 में सरकार ने इन्हें नियमित कर्मचारी माना। इनमें से 85 प्रतिशत शिक्षक वर्ष 2032 के बाद 60 साल के होंगे। तब उन्हें पेंशन देना पड़ेगी। शेष 15 प्रतिशत शिक्षक अगले 10 साल में (हर माह औसतन दो सौ) सेवानिवृत्त होंगे।
सरकार को हर माह उनकी पेंशन पर महज पांच करोड़ (60 करोड़ सालाना) रुपये खर्च करने होंगे। वहीं स्थाईकर्मी 60 साल की उम्र पूरी कर रहे हैं। उनकी सेवानिवृत्ति लगातार होना है, पर उनका वेतन कम है। इसलिए पेंशन नौ से 15 हजार रुपये मासिक बनेगी। यदि सभी 48 हजार स्थाई कर्मियों को भी पेंशन देनी पड़ी, तो छह करोड़ रुपये मासिक खर्च होंगे।
पुरानी पेंशन लागू हुई तो नफा-नुक्सान?
अधिकारी-कर्मचारी को नफा-नुक्सान: अंशदायी योजना में अभी अधिकारी-कर्मचारियों को 10 फीसदी अंशदान देना होता है, इसकी बचत होगी। भविष्य में राजकोष से पेंशन मिलेगी और नियमित पेंशन की गारण्टी भी रहेगी।
सरकार को नफा-नुक्सान: तत्काल वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा। अमूमन 30 साल की नौकरी पूरी होने पर सेवानिवृत्ति के वक्त साल 2035 से सरकार पर पेंशन का बोझ बढ़ेगा। अभी अंशदायी के तहत हर महीने 344 करोड़ खर्च होते हैं।
कर्मचारियों की भी बल्ले-बल्ले : यदि पुरानी पेंशन दे दी जाती है, तो सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी को मिलने वाले वेतन की 50 प्रतिशत राशि पेंशन के रूप में मिलेगी। उसे अपने वेतन से राशि भी नहीं कटवाना पड़ेगी। इतना ही नहीं, ग्रेच्युटी (लगभग 20 लाख रुपये), जीपीएफ और प्रत्येक छह माह में बढ़ने वाले महंगाई भत्ते का भी लाभ मिलेगा। पेंशनर की मौत होने पर परिजनों को परिवार पेंशन मिलेगी।
सियासी को नफा-नुक्सान: मध्य प्रदेश में अगले साल यानि 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने से सत्तापक्ष यानि भाजपा को लाभ मिलेगा। अर्थात यह सरकार के मजबूत बोट बैंक बनाने की रणनीति में कारगर साबित होगा।
इनका कहना है
पुरानी पेंशन बहाल किए जाने से कर्मचारी को लाभ होगा, तो सरकार भी फायदे में रहेगी। जहां अभी हर माह 344 करोड़ रुपये पेंशन के अंशदान के रूप में खर्च करने पड़ रहे हैं, वहां 14 साल तक सेवानिवृत्त होने वालों पर सिर्फ 15 करोड़ रुपये सालाना में काम चल जाएगा।
भरत पटेल,
अध्यक्ष, आजाद अध्यापक-शिक्षक संघ
नई अंशदायी पेंशन लागू होने के बाद कुछ लोग सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उन्हें मात्र दो हजार पेंशन मिल रही है। ऐसे में पेंश्नर कैसे जिएगा। सरकार को भी अभी पुरानी पेंशन देने में ही फायदा है।
सुधीर नायक,
कर्मचारी नेता

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