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Monday, Sep 25, 2023
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राज्य

कांग्रेस की फूट पर भाजपा का सियासी दांव?

भोपाल/ग्वालियर(देसराग)। गांव देहात में एक कहावत है ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता गया। यह कहावत इन दिनों मध्यप्रदेश कांग्रेस के हालातों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। कांग्रेस की गुटबाजी और आपसी कलह के कारण ही प्रदेश से कांग्रेस का सफाया हो गया है। आपसी खींचतान व गुटबाजी के कारण ही कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा है। लेकिन फिर भी गुटबाजी खत्म नहीं हो रही हैं। प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी लंबे समय से चली आ रही हैं और कांग्रेस आलाकमान भी गुटबाजी को रोक नहीं पाया है।
अब जबकि मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो गया है, प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच सियासी वाक युद्ध शुरू हो गया है। अलबत्ता प्रदेश की विधि विधायी मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सीधे मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पर इस बात को लेकर निशाना साधा है कि तमाम सियासी व्यस्तताओं के कारण वह निर्वहन पूरी ईमानदारी के साथ कर नहीं पा रहे है और विधायकों की मुशानुरुप सदन में नेता प्रतिपक्ष के रुप में किसी दीगर पार्टी विधायक की ताजपोशी भी नहीं होने दे रहे हैं। गाहे-बगाहे ही सही संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस की उस दुःखती रग पर हाथ रख दिया है जिसके शिकार होकर होने की वजह से ही कमलनाथ सरकार के पतन के बाद पूर्व मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ विधायक डॉक्टर गोविंद सिंह नेता प्रतिपक्ष बनते-बनते रह गए थे लेकिन आज नरोत्तम मिश्रा ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दायित्व सौंपे जाने की पैरवी करते हुए कहा कि कमलनाथ के नेतृत्व पर सवाल उठाए।
खुद सेनापति बने रहना चाहते हैं।
दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष भी हैं। उन्होंने एक पत्र भेजकर और एक ट्वीट के जरिए विधानसभा में ना आने की असमर्थता जताई है। इस पर संसदीय कार्य एवं विधि विधायी मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहां की कांग्रेस नई परंपरा शुरू करना चाहती है, वह ट्विटर से ही अपना भाषण भेज दें और ट्विटर से ही विधानसभा का बहिर्गमन कर दें। नरोत्तम मिश्र ने मीडिया से बातचीत में कहा कि कमलनाथ खुद सेनापति बने रहना चाहते हैं और योग्य लोगों को जिम्मेदारी भी देना उन्हें पसंद नहीं है। बेहतर होगा वह डॉक्टर गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बना दें।
अतीत पीछा नहीं छोड़ रहा
प्रदेश में कभी अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, सुभाष यादव के गुट के साथ कमलनाथ व माधवराव सिंधिया की जोड़ी में गुटबाजी हुआ करती थी। अर्जुनसिंह का स्थान दिग्विजय सिंह ने लिया और उसके बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक अलग गुट हुआ करता था लेकिन विधानसभा चुनावों में कमलनाथ को सीएम बनाने में दिग्विजय सिंह ने सहयोग दिय तो कमलनाथ ने सिंधिया का साथ छोड़ दिया। लेकिन कमलनाथ सरकार के पतन की वजह बने दिग्विजय सिंह सरकार गिर जाने और सिंधिया के कांग्रेस को अलविदा कहते ही प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में दो ही धड़े रह गए हैं, एक कमलनाथ और दूसरा दिग्विजय सिंह और अब सत्ता की लड़ाई में कमलनाथ औऱ दिग्विजय सिंह आमने-सामने आ गए हैं। इन दोनो गुटों के बीच आपसी खींचतान इस कदर बढ़ गई है कि इनकी लड़ाई अब सड़क पर आ गई है।
कमलनाथ पद छोड़ने की जता चुके हैं मंशा
पार्टी के अतिविश्वसनीय सूत्रों की मानें तो कमलनाथ की हाल ही में 18 दिसंबर को राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात हुई थी। इस दौरान नाथ ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने की मंशा की जानकारी दे दी थी। इसके बाद से ही इस पद पर नए नेता की ताजपोशी को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। यह बात अलग है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने के बाद वे प्रदेशाध्यक्ष पद छोड़ने की भी मंशा जाहिर करते रहे लेकिन सरकार जाने के बाद भी पार्टी हाईकमान कोई फैसला नहीं ले सका।
क्यों है कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष पर बवाल?
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी और तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सरकार को गंवाने के बावजूद पार्टी के बड़े क्षत्रपों की समझ में यह एक बात नहीं आ पा रही है कि बिना आपसी तालमेल के साल 2023 में भाजपा से सत्ता का फाइनल जीतना तो दूर एक विपक्षी दल की भूमिका हासिल करना भी मुश्किल हो जाएगा। हाल में कमलनाथ द्वारा प्रदेश कांग्रेस मुखिया और नेता प्रतिपक्ष में से एक पद छोड़ने की कवायदों के बीच यह चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं कि कमलनाथ नहीं तो विधानसभा के अन्दर नेता प्रतिपक्ष की भूमिका कौन निभाएगा। इन चर्चाओं के बीच सरकार के संसदीय कार्य मंत्री का अपरोक्ष रुप से कांग्रेस को आइना दिखाना कहीं न कहीं कांग्रेस के अन्दर चल रही सियासी उठापटक की ओर इशारा करता है।
पहले भी बनी थी गोविन्द पर सहमति
उल्लेखनीय है कि मार्च 2020 में जब कमलनाथ सरकार का पतन हुआ और सदन के अन्दर विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का चयन करना था, तब भी डॉ.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के पार्टी के विधायक लामबन्द हुए थे। तब नेता प्रतिपक्ष के लिए डॉ.गोविंद सिंह को आगे किया तो कमलनाथ ने उनके नाम पर अपनी सहमति की मुहर भी लगा दी। यही नहीं नाथ ने डॉ.गोविंद सिंह को फोन कर भोपाल आने को कहा और बताया कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की औपचारिक घोषणा कर विधानसभा सचिवालय को विधिवत पत्र भेजना है। डॉ.गोविंद सिंह भी खुशी-खुशी राजधानी के लिए कूच कर गए। लेकिन यहां आने से पहले ही कमलनाथ की एक कूटरचित योजना ने डॉ.गोविंद सिंह के अरमानों पर पानी फेर दिया। नाथ की यह कूटरचित योजना थी, डॉ.गोविंद सिंह के खास मित्र कांग्रेस विधायक केपी सिंह के जरिए डॉ.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के फैसले का विरोध कराना। इस विरोध के जरिए नाथ ने एक तीर से दो निशाने किए, एक तो नेता प्रतिपक्ष के नाम का ऐलान जो 25 अप्रैल को किया जाना था, टाल दिया गया। दूसरा बिना कहे डॉ.गोविंद सिंह को यह संदेश दे दिया गया कि उनके नेता प्रतिपक्ष न बन पाने के लिए केवल और केवल दिग्विजय सिंह जिम्मेदार हैं। दिग्विजय नहीं चाहते, कि वह नेता प्रतिपक्ष बनें।
अगली पीढ़ी है इस तकरार का कारण !
कांग्रेस में सिंधिया के रहते कमलनाथ व दिग्विजय सिंह एक साथ दिख रहे थे। सिंधिया के रहते इनके बेटे प्रदेश में आगे नहीं बढ़ सकते थे। लेकिन अब सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया तो अब कांग्रेस में कमलनाथ व दिग्विजय सिंह ही बचे जो अपने बेटों को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इन दोनों के बीच प्रतिस्पर्द्धा चल रही है। एक ओर दिग्गी अजय सिंह को दरकिनार कर बेटे जयवर्द्धन के लिए प्रदेश कांग्रेस में वर्चस्व कायम करने के लिए तैयार है। वहीं कमलनाथ भी अपने बेटे व छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ को प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते हैं।

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