भोपाल (देसराग)। प्रदेश में बड़ी उम्मीद और बड़े दावों के साथ जुलाई 2020 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम को लागू किया गया था। इसके तहत उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिलने वाली थी। उपभोक्ता फोरम से आयोग बनने के बाद किसी भी मामले की सुनवाई 90 दिन में होनी थी, लेकिन अब भी सालों से लंबित मामलों पर निर्णय हो पा रहा है। इसकी वजह यह है कि कई जिले के उपभोक्ता आयोगों में अध्यक्ष व सदस्यों के पद खाली हैं। इस कारण बेंच नहीं लग रही है, जिससे लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है।
वर्तमान में प्रदेश के 51 जिलों के उपभोक्ता आयोगों में सदस्यों के 102 में से करीब 70 पद तो अध्यक्ष के 25 में से 13 पद खाली हैं। इस कारण विदिशा, मुरैना, मंदसौर, दमोह, भिंड, इंदौर सहित अन्य कई जिलों में बेंच नहीं लग पा रही है। इससे उपभोक्ताओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है। उपभोक्ता मामले के वकील अशोक श्रीवास्तव रूमी कहते हैं कि नए प्रावधान के आने से उपभोक्ताओं को राहत मिलनी थी लेकिन कई सालों से जिला उपभोक्ता आयोग में पद खाली होने से मामले अधिक लंबित हो रहे हैं।
आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति नहीं
20 जुलाई 2020 को जब प्रदेश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू किया गया तो शिकायतों के निराकरण 90 दिन में करने का प्रावधान किया गया था। लेकिन करीब तीन साल से आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों की भर्ती नहीं हो पाई है। इस कारण राज्य उपभोक्ता आयोग में साल दर साल मामले बढ़ते जा रहे हैं। आयोगों में हर माह करीब 70 से 80 प्रकरण दर्ज होते हैं। इससे राज्य उपभोक्ता आयोग में 10 हजार 812 तो जिला आयोग में 39 हजार 163 प्रकरण लंबित हो गए हैं। कई मामलों में तो नौ से दस साल बाद भी सुनवाई पूरी नहीं हो पाई है। लिहाजा उपभोक्ता जल्द न्याय नहीं मिलने से परेशान हैं। कई मामलों में तो उपभोक्ता सुनवाई की आस तक छोड़ चुके हैं।
न्याय के लिए सालों से भटक रहे
प्रदेश के उपभोक्ता आयोगों में शिकायतों की सुनवाई की स्थिति क्या है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शिकायतकर्ता न्याय के लिए सालों से भटक रहे हैं। जबलपुर निवासी प्रभा खरे शिक्षा विभाग में पदस्थ थीं। उन्हें विभाग से ग्रेच्युटी नहीं मिली तो उन्होंने आयोग में 2009 में केस लगाया। वहां सुनवाई के बाद राज्य उपभोक्ता आयोग में मामला लंबित है। होशंगाबाद निवासी छगनलाल मालवीय ने बिड़ला संस से बीमा लिया था। कंपनी के खिलाफ 2014 में जिला आयोग में केस लगाया था लेकिन अब तक निराकरण नहीं हुआ। वे बार-बार आयोग के कार्यालय जाकर परेशान हो चुके हैं। बैतूल निवासी विक्रम ब्राह्मने ने 2016 में एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस के खिलाफ आवेदन दिया था। बीमा राशि की एक-दो किस्त जमा नहीं की थी, इससे उन्हें राशि नहीं मिली। अब तक उनके मामले का निराकरण नहीं हो सका है। इससे वे परेशान हैं।
साल दर साल बढ़ रहे मामले
एक तरफ पुराने मामलों का निराकरण नहीं हो पा रहा है वहीं साल दर साल शिकायतें बढ़ रही हैं। इसका बोझ लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2017 में जहां आयोग में 10,372 मामले दर्ज थे वे वर्ष 2021 में बढ़कर 10,812 हो गए हैं। वहीं जिला उपभोक्ता आयोग में वर्तमान समय में 39,163 मामले लंबित हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि पद खाली होने से उपभोक्ता किस कदर प्रभावित हो रहे हैं। राज्य उपभोक्ता आयोग के रजिस्ट्रार राजीव आप्टे बताते हैं कि जिला आयोग में 13 अध्यक्ष और 70 सदस्यों के पद खाली हैं। इन पदों को भरने के लिए जनवरी में परीक्षा ले ली गई है। जल्द ही भर्ती प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। वहीं प्रमुख सचिव, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग फैज अहमद किदवई का कहना है कि एक महीने में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। सभी जिलों में अध्यक्ष व सदस्यों की भर्ती के बाद उपभोक्ताओं के मामलों का निराकरण जल्द होने लगेगा।
जल्द भरे जाएंगे पद: बिसाहूलाल सिंह
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री बिसाहूलाल सिंह ने बताया कि राज्य उपभोक्ता आयोग में सदस्य और जिला उपभोक्ता आयोगों में अध्यक्ष और सदस्य के रिक्त पदों की पूर्ति की कार्यवाही प्रारंभ हो चुकी है और शीघ्र ही नियुक्तियां होने के बाद प्रकरणों के निराकरण में गति आने की संभावना है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में किए गए नवीन प्रावधानों से उपभोक्ता और अधिक सशक्त हुए हैं। उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में प्रदेश में उपभोक्ता परिवादों के निराकरण का कार्य राज्य उपभोक्ता आयोग और जिला उपभोक्ता आयोगों द्वारा किया जा रहा है। पिछले वर्ष राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के अवसर पर ई-फाइलिंग सिस्टम का शुभारंभ किया गया था। एक वर्ष की अवधि में ई-फाइलिंग सिस्टम के माध्यम से प्रकरण दर्ज किए गए। उपभोक्ताओं को अपने प्रकरणों की स्थिति ज्ञात करने के लिए पोर्टल उपलब्ध है।
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