भोपाल (देसराग)। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य हैं जहां पर सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए आमजन को बेहद जूझना पड़ता है। इसके बाद भी सरकार से लेकर अफसरशाही तक स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर पूरी तरह से लापरवाह साबित होने में पीछे नही रहती है। यह बात अलग है कि इस क्षेत्र के लिए सरकार द्वारा वादे और दावे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन उन्हें जमीन पर उतारने के मामले में हर स्तर पर लापरवाही बरतने से कोई गुरेज नहीं किया जाता है। यही वजह है कि प्रदेश में स्वास्थ्य के नाम पर प्रदेश में सब-कुछ आधा -अधूरा ही पड़ा हुआ है।
हालत यह हैं कि बीते बजट में घोषित किए गए ग्वालियर में कैंसर इंस्टीट्यूट की स्थापना नहीं हो सकी तो ,जबलपुर में भी कैंसर इंस्टीट्यूट का सिर्फ भवन बन सका है। भोपाल में राजधानी होने के बाद भी दो हजार बिस्तरों का अस्पताल आधा अधूरा पड़ा हुआ है। अब एक बार फिर प्रदेश का बजट कल पेश किया जाने वाला है। बीते साल के बजट में मप्र में दो अत्याधुनिक कैंसर इंस्टीट्यूट बनाए जाने का प्रावधान किया गया था। जबलपुर में कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए करीब 40 करोड़ रुपए का बजट आवंटन भी किया गया था। जबकि ग्वालियर में भी इतनी ही राशि दी गई। लेकिन एक साल बाद भी उक्त दोनों शहरों में कैंसर इंस्टीट्यूट शुरू नहीं हो सके हैं।
बजट में 9 नए मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए भी 300 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई थी लेकिन उनमें से भी एक भी कॉलेज इस साल शुरू नहीं हो सका है।
ग्वालियर में तो न जमीन का पता और न ही डीपीआर बनी
हद तो यह है कि पूरे एक साल बाद भी विभाग व जिला प्रशासन मिलकर अब तक ग्वालियर में बनाए जाने वाले कैंसर इंस्टीट्यूट खोलने की योजना पर काम तक शुरू नहीं कर सका है। लापरवाही की हद तो यह है कि यहां पर डीपीआर तक तैयारी नहीं की गई है। यही नहीं अब तक शहर में इसका निर्माण कहां किया जाएगा इसके लिए जमीन तक तय नहीं की जा सकी है। वहीं दूसरी ओर पिछले तीन साल से जिस एक हजार बिस्तर के अस्पताल का निर्माण चल रहा है वह भी आधा-अधूरा ही है। यह काम भी बीते तीन सालों में महज 50 फीसदी ही पूरा हो पाया है। इस शहर की स्थिति यह तब है जबकि यहां से सरकार के कई दिग्गज नेता आते हैं। कोविड को देखते हुए यहां 500 बिस्तर के साथ अस्पताल शुरू करने की योजना बनाई गई थी, लेकिन नई बिल्डिंग में इंफ्रास्ट्रक्चर न होने के कारण यह भी नहीं किया जा सका था।
भोपाल में भी नहीं दिख रही गंभीरता
राजधानी के हमीदिया अस्पताल में दो हजार बिस्तर का अस्पताल का काम जारी है। बीते बजट में इसके निर्माण कार्यों के लिए बजट में 100 करोड़ का प्रावधान था। इसके निर्माण के पहले चरण का काम भी अधूरा ही है। ब्लॉक ए और ब्लॉक बी में अंतिम चरण का काम अभी होना है। हालांकि पिछले वर्ष बजट में यह उम्मीद जताई गई थी कि यहां सुलतानिया अस्पताल की शिफ्टिंग के साथ अन्य विभागों में इलाज शुरू कर दिया जाएगा, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका। माना जा रहा है कि अभी इसमें काफी समय लग सकता है।
चार साल बाद भी शुरू नहीं हो पाया जबलपुर में इंस्टीट्यूट
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्रदेश का पहला टर्सरी कैंसर केयर इंस्टीट्यूट जबलपुर में स्थापित किया है। पिछले चार साल से यहां निर्माण कार्य चल रहा है, जो कि अब भी पूरा नहीं हो सका है। पीआईयू इस बिल्डिंग को बना रहा है, सूत्रों के अनुसार अगले माह बिल्डिंग हैंड ओवर की जा सकती है। इसके बाद यहां उपकरणों की शिफ्टिंग और स्टाफ रिक्रूटमेंट किया जाएगा। पिछले बजट में इस इंस्टीट्यूट के लिए 40 करोड़ रुपए दिए गए थे।
नहीं हो सका मेडिकल कॉलेजों का उन्नयन
वित्तीय वर्ष 2021-22 में प्रदेश के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों के उन्नयन के लिए सरकार ने एक हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया था। इस राशि से चार मेडिकल कॉलेजों में लीनियर एस्केलेटर की स्थापना, टीबी एवं चेस्ट संस्थान बनाना और वायरोलॉजी लैब में हाइटेक मशीनों से जांचे करना शामिल था। लेकिन यह काम नहीं हो पाने के लिए कोविड काल का बहाना बनाया जा रहा है। के कारण किसी भी मेडिकल कॉलेज या उससे जुड़े अस्पताल में डेवलपमेंट के काम नहीं हो सके।
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