भोपाल/ नई दिल्ली (देसराग)। दिल्ली के बाद अब पंजाब सूबे में चुनावी सुनामी लाने वाली आप की नजर अब मध्यप्रदेश जैसे भाजपा के मजबूत गढ़ पर लग गई है। माना जा रहा है कि आप मप्र में तीसरी ताकत के रुप में उभरने की गुपचुप रुप से तैयारी में लगी हुई है। उधर दिल्ली के बाद पंजाब के जिस तरह से आप के पक्ष में चुनाव परिणाम आए है उससे भाजपा के सामने आप को नई चुनौती के रुप में देखा जाने लगा है। इसकी झलक भाजपा के बड़े नेता और पंजाब सहित कई राज्यों में राज्यपाल रहे कप्तान सिंह सोलंकी द्वारा किए गए ट्वीट में दिखाई देती है। उनका कहना है कि आम आदमी पार्टी जब जीतती है तो सभी का सूपड़ा साफ कर देती है। उसकी कार्यशैली का अनुकरण करने की जरूरत है। इसे उनकी आप की तारीफ के रुप में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
उधर, दिल्ली के बाद पंजाब में जिस तरह से आप का प्रदर्शन रहा है, उससे आप के अलावा भाजपा व कांग्रेस के उन नेताओं को जरुर नई आशा की किरण दिखनी शुरू हो गई है जो अपने-अपने दलों से नाराज चल रहे हैं लेकिन उनके पास अच्छे विकल्प का अभाव बना हुआ था। चुनाव परिणामों के बाद आए सोलंकी के ट्वीट के राजनैतिक गलियारों में मायने निकाले जाने लगे हैं। हालांकि माना जा रहा है कि इस तरह का ट्वीट किए जाने के पीछे उनकी मंशा यह भी हो सकती है कि पार्टी में दरी बिछाने वाले और बर्षों से संघर्ष करने वालों पर जोर देना चाहिए। यही नहीं बल्कि जिस तरह से भाजपा में दलबदलुओं की संस्कृति का तेजी से प्रार्दुभाव हुआ है उसे समाप्त किया जाना चाहिए। फिलहाल इस ट्वीट के पीछे उनकी मंशा क्या है यह तो वही बता सकते हैं लेकिन यह भी सच है कि इन दिनों भाजपा में भी कांग्रेसी संस्कृति का प्रभाव तेजी से फैल रहा है। यही नहीं देवता तुल्य कहे जाने वाले कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का और दलबदलुओं को सर माथे पर बैठाने का दौर भाजपा में जारी है जिसका फायदा आप जैसी पार्टी को मिलने पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
दरअसल आप द्वारा जिस तरह से अपने पंचर बनाने वाले से लेकर मोबाइल सुधारने वाले कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देकर चुनावी मैदान में उतारा गया उससे आप में कार्यकर्ताओं का महत्व समझा जा सकता है। यह आप के वे कार्यकर्ता हैं जिन्होंने पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल के प्रमुख चेहरों को चारो खाने चित्त कर दिया है। यह बात अलग है कि पहले ट्वीट के बाद सोलंकी द्वारा दूसरा ट्वीट भी किया गया , जिसमें उनके द्वारा लिखा गया है कि पांच राज्यों के चुनावों में जनता ने जातिवाद और परिवारवाद से परे होकर राष्ट्रवाद पर वोट दिया है। जनता-जनार्दन की जय।
सोंलकी के ट्वीट को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि वे भाजपा संगठन से लेकर राज्यपाल तक के पदों पर काम कर चुके हैं। इसके पहले वे न केवल प्रोफेसर रहे हैं बल्कि बतौर संघ के प्रचारक के रुप में भी मैदानी स्तर पर बहुत सक्रिय रहे हैं , जिसकी वजह से वे कार्यकर्ताओं की पीड़ा तक को जानते हैं।
आप बन रही है बड़ी चुनौती
दिल्ली के बाद पंजाब में कब्जे से आप पार्टी कांग्रेस के विकल्प के रूप में खड़े होने का सपना देखने लगी है। इसकी वजह भी है पार्टी का दायरा बढ़ने पर मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के असंतुष्ट नेता आगे के चुनावों में आप की झाड़ू थाम सकते हैं। इसका सफल प्रयोग पंजाब में आम आदमी पार्टी 40 सीटों पर दूसरे नेताओं को टिकट देकर कर चुकी है। यह वे नेता हैं, जो दूसरी पार्टी से असंतुष्ट होकर आए थे। मध्यप्रदेश में भी चुनाव के समय भाजपा व कांग्रेस दूसरी पार्टी के असंतुष्टों को टिकट देने की सियासत करती रही हैं। इसी फॉर्मूले से आप मध्यप्रदेश में बड़ा दांव चल सकती है। दोनों पार्टियों में असंतुष्ठों की कमी नहीं है। अपनी पार्टी में हाशिए पर भेजे गए या अलग-थलग महसूस करने वाले नेता आप का दामन थाम सकते हैं। मध्यप्रदेश में आप ने संभाग व जिला स्तर पर संगठन खड़ा किया है। 122 विधानसभा व ब्लॉक लेवल टीम तैयार है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने प्रदेश में एंट्री की थी। चुनिंदा सीटों पर प्रत्याशी भी खड़े किए थे। यह बात अलग है कि इन चुनावों में आप कोई छाप नहीं छोड़ सकी थी।
श्रीमंत समर्थक असंतुष्टों के लिए खुली नई सियासी राह
श्रीमंत के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए कुछ नेता ऐसे हैं जो अब तक भाजपा की रीति- नीति में खुद को नहीं ढाल पाए हैं। यह नेता भाजपा में असहज महसूस कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो श्रीमंत समर्थक होते हुए भी भाजपा में नहीं गए और अब वे पार्टी में हाशिए पर हैं। ऐसे में इनके लिए भी आम आदमी पार्टी एक बेहतर विकल्प बन सकती है। माना जा रहा है कि मप्र के मामले में पहले जो गलती आप में संगठन स्तर पर हुई हैं उनसे अब सबक ले लिया होगा। अन्ना आंदोलन के समय आम आदमी पार्टी से प्रदेश की जनता को ढेरों उम्मीदें थी, लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी अच्छा नहीं कर पाई। इसकी वजह पार्टी में कई धड़े हो जाना रहा। बाद में पार्टी बिखरती चली गई। शुरूआत में जुड़े लोगों में अधिकतर अब पार्टी से बाहर हैं। तत्कालीन सचिव अक्षय हुंका काफी पहले ही अलग हो गए थे। आम आदमी पार्टी प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में 200 सीट पर लड़ी थी, पर खास महत्व नहीं मिला। मात्र 0.7 प्रतिशत वोट से ही संतोष करना पड़ा।