तीन राज्यों की 18 सीटों पर किया प्रचार, 8 जीती भाजपा
प्रदीप भटनागर
भोपाल (देसराग)। पांच राज्यों में से 4 में बंपर जीत के बाद भाजपा में जोश और उत्साह का माहौल है। हाल ही में उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, मणिपुर और गोवा राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मणिपुर और गोवा में भाजपा ने एकतरफा विजय पताका फहराकर विपक्षी दलों के होश फाख्ता कर दिए हैं। मध्यप्रदेश भाजपा के दिग्गज नेताओं ने भी इन चुनावों में जमकर प्रचार किया। विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के अलावा गोवा में चुनाव प्रचार किया। इन तीन राज्यों की कुल 18 विधानसभा सीटों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रचार किया। इनमें से भाजपा को केवल 8 सीटों पर जीत मिली। इसको लेकर मध्यप्रदेश में विपक्षी दल कांग्रेस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर हमलावर हो गई है।
यहां हम बताएंगे कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रचार वाली एक-एक सीट में क्या परिदृश्य रहा। इसका मध्यप्रदेश की सियासत पर कितना असर होगा।
भाजपा अब लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को अपनी झोली में करने की तैयारी में जुट गई। लोकसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात आदि राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा काफी हद तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर निर्भर है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में 15 से अधिक सालों से सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। वहीं इस बार भी मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से मुख्य चेहरा होंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल के विधासनभा चुनावों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के अलावा गोवा में चुनाव प्रचार किया। उन्होंने कुल 18 विधानसभा सीटों पर प्रचार किया। लेकिन भाजपा की एकतरफा जीत के बाद भी इन 18 में से केवल 8 सीटों पर जीत हासिल कर सकी।
शिवराज जिन सीटों पर गए, वहां चुनाव परिणाम
उत्तर प्रदेशः मधुबन में भाजपा, देवरिया में भाजपा, जखरिया में अन्य, अकबरपुर में सपा, धोसी में सपा, सिकंदरपुर में सपा, हाटा में भाजपा, मुंगरा बादशाहपुर में भाजपा तथा जफराबाद में अन्य दल के उम्मीदवार ने जीत हासिल की।
उत्तराखंडः लालकुआ में भाजपा, लोहाघाट में भाजपा, काशीपुर में भाजपा, बाजपुर में कांग्रेस, हरिद्वार ग्रामीण में कांग्रेस, ज्वालापुर में कांग्रेस तथा हल्दवानी में कांग्रेस के उम्मीदवार ने जीत हासिल की। जबकि गोवा की दो विधान सभा सीटों डाबेलिम में भाजपा और कार्टलिम अन्य दल के उम्मीदवार ने जीत हासिल की।
अगले साल शिवराज की साख दांव पर
मध्यप्रदेश में बीते 15 से अधिक सालों से मुख्यमंत्री पद संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान की अगले साल अग्निपरीक्षा होगी। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सीएम शिवराज ही भाजपा का मुख्य चेहरा होंगे। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने पस्त हुई भाजपा सरकार बनाने में नाकाम रही थी। करीब डेढ़ साल बाद ही भाजपा नेताओं ने कांग्रेस में तोड़-फोड़ कर फिर से अपनी सरकार बना ली थी। कांग्रेस से नाराज चल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी टीम लेकर भाजपा में शामिल हो गए थे। तब से मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार काबिज है। अगले साल होने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की साख दांव पर होगी।
मध्यप्रदेश में कितनी टक्कर देगी कांग्रेस?
मध्यप्रदेश में साल 2023 में होने वाले चुनाव को लेकर भाजपा व कांग्रेस अपने-अपने दावे करती रहती हैं। गत विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने से कांग्रेस का उत्साहित होना स्वाभाविक है। उस समय कमलनाथ व सिंधिया की जोड़ी ने कमाल दिखाकर भाजपा को सत्ता से हटा दिया था। लेकिन अब सियासी हालात बदले हुए हैं। सिंधिया अब प्रदेश भाजपा का प्रमुख चेहरा हैं। सिंधिया गुट के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस की ताकत कमजोर पड़ चुकी है। यही नहीं 15 साल का सत्ता का वनवास काटकर साल 2018 में सत्ता के शिखर पर पहुंची कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का जिस तरह से पतन हुआ उसके बाद से अब तक पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के रिश्तों में जो तल्खी आई है उसके बाद वैसे भी कांग्रेस एक ऐसे मुहाने पर खड़ी है, जहां से जाने वाले सभी रास्ते उसे विखराव की ओर ले जा रहे हैं। इसके साथ ही प्रदेश में कांग्रेस संगठन मृत्यु शैय्या पर पड़ा है। सभी जिलों में कांग्रेस संगठन नाम के लिए है। कांग्रेस कार्यकर्ता हताश और निराश हैं। कमलनाथ अपने पास विपक्ष के नेता का पद रखे हैं और वही प्रदेशाध्यक्ष भी हैं। पार्टी में सामंजस्य नाम की चीज नहीं है। ऊपर से गुटबाजी व असंतोष व्यापक स्तर पर है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार ने नेताओं को और हताश कर दिया है। इन हालात में बड़ा सवाल यह है कि बेहद मजबूत संगठन वाली भाजपा से वह कैसे मुकाबला करेगी।
राह में रोड़ा बन सकते हैं सिंधिया
इसमें कोई शक नहीं कि मध्य प्रदेश के चुनावी संग्राम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सियासी पटकनी देना कांग्रेस के के लिए बेहद कठिन है। हालांकि साल 2018 के विधासनभा चुनाव में कांग्रेस से पराजित होने के बाद भाजपा भाजपा के सियासी गलियारों में इस तरह की हवाएं हिचकोले लेने लगी थीं कि अब शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा नहीं होंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस को अलविदा कहकर अपने विधायकों के साथ भाजपा में आने के बाद भी कुछ दिन तक यही अटकलें लगाई जाती रहीं थीं कि अब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। लेकिन सारे कयासों को किनारे कर मुख्यमंत्री का पद शिवराज के खाते में ही आया। तब से अब तक हरेक दो माह में खबर उड़ती है कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा बदलेगा। लेकिन हर बार ये अफवाह साबित होती है। भाजपा के सियासी गुणा-गणित में शिवराज के लिए सबसे बड़ा खतरा केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बनते जा रहे हैं। सियासी गलियारों में अक्सर ये बात तैरकर आती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ही नहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत की भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में आने वाले समय में पहली पसंद ज्योतिरादित्य सिंधिया ही हैं। संभव है कि मध्यप्रदेश में साल 2023 के चुनावी संग्राम में ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा का मुख्य मुख्य चेहरा होंगे। अर्थात सीधे और सपाट शब्दों में कहें तो यदि साल 2023 में भाजपा की सरकार बनती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ही मुख्यमंत्री होंगे। हालांकि सियासत के जानकार यह भी कहते हैं कि इसके बावजूद मोदी व शाह के लिए शिवराज सिंह चौहान से इतनी आसानी से पार पाना आसान नहीं है।
कांग्रेस का तंज
मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भाजपा की जीत पर “मामाजी” यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान काफी खुश दिखाई दे रहे हैं। लेकिन उन्हें यह भी बताना चाहिए कि जिन सीटों पर वे प्रचार करने गए थे, उनका परिणाम क्या रहे। सलूजा ने कहा कि 2023 में मध्यप्रदेश में यही इतिहास दोहराया जाएगा। सलूजा ने तंज कसते हुए कहा कि जहाँ-जहाँ पैर पड़े संतन के, तहाँ-तहाँ बँटाधार। आगामी विधानसभा चुनावों का ज़िक्र करते हुए सलूजा ने कहा कि 2023 में मध्यप्रदेश में भी यही इतिहास दोहराया जायेगा जहाँ-जहाँ मामाजी जाएँगे, वहाँ-वहाँ भाजपा की हार होगी।