भोपाल (देसराग)। मध्य प्रदेश में डायल-100 के 632 करोड़ का टेंडर एक बार फिर विवाद में फंस गया है। विधानसभा में प्रस्तुत भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कैग) के प्रतिवेदन में कहा गया कि वर्ष 2015 में आमंत्रित इस टेंडर में वरीयता क्रम में पहला बोलीदार (मेसर्स पीडब्ल्यूसी प्राइवेट लिमिटेड) चयनित हुआ था, लेकिन तकनीकी मूल्यांकन को आधार बनाकर इसे चयन से बाहर कर दिया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि डायल-100 योजना की निगरानी और पर्यवेक्षण के लिए सलाहकार कंपनी के चयन में पुलिस महानिदेशक स्तर पर गड़बड़ी की
गई। इससे विवाद एक बार फिर गहरा गया है।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में डायल हंड्रेड का टेंडर शुरू से विवाद में रहा है। अब कैग की रिपोर्ट ने अपनी रिपोर्ट में साफ कर दिया है कि निर्धारित शर्त में बदलाव कर दूसरे बोलीदार को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। डायल-100 परियोजना के 632 करोड़ के टेंडर की प्रक्रिया दोषपूर्ण रही। इसके आधार पर मेसर्स ग्रांट थार्नटन प्राइवेट लिमिटेड पात्र हो गया। कैग ने कहा कि यह सारी प्रक्रिया दोषपूर्ण थी और दूसरे बोलीदार को अनुचित फायदा पहुंचाया गया। कैग ने राज्य सरकार के उस तर्क को भी नामंजूर कर दिया,जिसमें कहा गया था कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने अपनी सूझबूझ से 1.19 करोड़ की बचत की। कैग ने कहा कि डीजीपी को मामले में पुर्नविचार के लिए इसे क्रय समिति को वापस करना था या नया टेंडर कराना था।
बिना डीपीआर के किया कंपनी का चयन
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के इंटरवेशन और उद्यम संसाधन योजना समाधान सहित डायल-100 के प्रोजेक्ट के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) एवं प्रस्ताव के लिए मुंबई की मेसर्स केपीएमजी एडवाइजरी सर्विस लिमिटेड को बतौर कंसल्टेंट 6 महीने के लिए नियुक्त किया गया। इसके लिए 1 करोड़ का भुगतान भी किया गया। इसने आरएफपी का मसौदा जून 2014 में प्रस्तुत किया। लेकिन विभाग ने डीपीआर आने से पहले सिस्टम इंटीग्रेटर के लिए सितंबर 2014 में निविदा जारी की गई। सिस्टम इंटीग्रेटर के चयन में भी अनियमितता पाई गई है। इसमें बीवीपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का चयन किया गया था और मई 2015 में सिस्टम इंटीग्रेटर के लिए ठेका दिया गया। डीपीआर बनाने के लिए तैनात की गई कंसल्टेंट कंपनी 2009-19 के दौरान विभाग द्वारा चयनित कंपनी के लेखा परीक्षक थे। लेकिन केपीएमजी ने इस हित के टकराव की जानकारी नहीं दी। शासन ने भी बात स्वीकार की और कहा कि चयन के समय केपीएमजी विभाग का सलाहकार नहीं था।
कंपनी को पहुंचा अनुचित लाभ
गृह विभाग ने प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट (परियोजना प्रबंधन सलाहकार) के चयन के लिए दोबारा से निविदा जारी की। इसमें चार बिडर शामिल हुए। इसमें से दो योग्य पाए गए। केंद्रीय क्रय समिति ने मेसर्स पीडब्ल्यूसी प्राइवेट लिमिटेड को ठेका दिए जाने की सिफारिश की, लेकिन डीजीपी ने तय मानदंड को स्कोर कार्ड से हटा दिया। ऐसे में 100 के स्कोर को कम कर 85 कर दिया। ऐसा करने से मेसर्स ग्रांट थॉर्नटन को इसका ठेका चला गया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि डीजीपी ने बोलियों के प्राप्त होने के बाद क्वालीफाइंग क्राइटेरिया को कम करने को संदिग्ध बताते हुए दूसरी कंपनी को अनुचित लाभ दिया। वहीं, डीजीपी को महसूस हुआ कि मानदंड वैध नहीं है, तो उन्हें प्रकरण को तकनीकी मूल्यांकन के दौरान ढील देने से वापस भेजना चाहिए था या फिर क्रय समिति को दोबारा विचार करने के लिए भेजना चाहिए था। उधर सरकार द्वारा यह तर्क दिया कि डीजीपी के निर्णय से 1.19 करोड़ की बचत हुई है।
सरकार की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही डायल 100
प्रदेश में किसी भी अपराध या संकट की स्थिति में चंद मिनट के भीतर पुलिस की मदद पहुंचाने की मंशा से शुरू की गई डायल 100 ने सरकार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। कैग की रिपोर्ट में डायल-100 सेवा की पोल खुल गई है। रिपोर्ट के अनुसार दुष्कर्म, घरेलू हिंसा, महिला अपहरण जैसी गंभीर घटनाओं में एफआरवी (फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल) दल घटनास्थल पर 12 घंटे देरी से पहुंची। कैग ने 2016 से 2019 के दौरान की घटनाओं को लेकर असेसमेंट किया था। डायल-100 की परिकल्पना थी की एफआरवी दल डिस्पैचर से घटना की सूचना प्राप्त होने के बाद शहरी क्षेत्रों में 5 मिनट में और ग्रामीण क्षेत्रों में 30 मिनट के अंदर घटनास्थल पर पहुचेंगी।
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