ग्वालियर (देसराग)। चंबल का नाम आते ही लोगों के जहन में डाकूओं के नाम आने लगते हैं। यहां कई ऐसे डाकू हुए जिनके नाम से पुलिस भी कांप जाती थी। डकैतों के बाद चंबल में एक और कलंक नवजात बेटियों की हत्या का भी है। रूढ़िवादी सोच के चलते चम्बल में बेटियों के पैदा होते ही तम्बाकू मुंह में रख कर नवजात की हत्या कर दी जाती थी, लेकिन समय बदला और धीरे धीरे यहां की तस्वीर भी बदल चुकी है। अब लोग बच्चियों को बेटों की तरह प्यार देते हैं, उन्हें पढ़ाते लिखाते हैं। आजादी के मायने का अहसास दिलाते हैं। अंचल में बेटियों को लेकर पुरानी सोच को बदलाने और उनकी स्थिति में बदलाव लाने के लिए युवाओं का एक समूह केएएमपी यानी कीरतपुरा एसोसिएशन मैनेजमेंट पॉवर्टी काम कर रहा है। जिसके प्रयासों का नतीजा है, अब जिन घरों में बेटियां जन्म लेती हैं, वहां इस समूह के लोग पहुंचते हैं और बच्ची के गृहप्रवेश को जलसे और जश्न में बदल देते हैं।
अनोखे अंदाज में कराया जाता है गृह प्रवेश
इस समूह द्वारा बड़े ही अनोखे अंदाज में कन्या जन्म के बाद उसका गृह प्रवेश कराया जाता है। जश्न की शुरुआत में फूलों से रास्ता बनाया जाता है, इस रास्ते पर कन्या का तुलादान होता है। इसके बाद घर आई लक्ष्मी के पैरों की छाप ली जाती है ताकि ये पल यादगार के रूप में हमेशा मौजूद रहें। फिर फूलों से भरे लोटे को बच्ची के पैर से गिराकर गृहप्रवेश कराया जाता है। ये पूरा आयोजन दिल को छू लेने वाला होता ह। आज हर कोई इस प्रयास की तारीफ कर रहा है।
पायल किन्नर पहल से हुईं प्रभावित
केएएमपी समूह अब तक 94 बेटियों का इसी तरह भव्य स्वागत कर चुका है। हाल ही में भिंड के शास्त्री नगर में उन्होंने एक परिवार के लिए बेटी का गृहप्रवेश खास बनाया। यह परिवार था शहर की पायल किन्नर का। पायल ने अपनी नातिन का गृहप्रवेश खास तरीके से कराने के लिए केएएमपी की शुरुआत करने वाले तिलक सिंह भदौरिया से संपर्क किया था। जिन्होंने अपने साथियों के साथ नवजात बच्ची प्रज्ञा का स्वागत कराया। ढोल नगाड़ों से बेटी को अस्पताल से घर तक लाया गया उसके बाद फूलों से सजाए रास्ते में मिठाई से तुलादान किया गया और कन्या के पद चिन्ह लिए गए। जिसके बाद गृह प्रवेश की रस्म सम्पन्न हुई। पायल किन्नर भी मानती हैं कि पहले की अपेक्षा अब लोग बेटियों को ज्यादा सम्मान देने लगे हैं उन्हें भी इस तरह के आयोजन की जानकारी लगी थी वे भी इससे प्रभावित हुईं थीं। वे कहती हैं कि हर घर मे बेटियों का प्रवेश ऐसे ही सम्मान से किया जाना चाहिए।
बदलाव की बयार
पायल किन्नर की तरह ही दीप्ति का परिवार भी बच्ची के पैदा होने पर बहुत खुश है। दीप्ति ने बीते 30 दिसम्बर को एक बेटी को जन्म दिया। उनके भाई खुद इस समूह के सदस्य हैं। दीप्ति की पहले से ही एक बेटी है। वे कहती हैं कि आज भी हमारे समाज में अगर एक बेटी हो जाए तो सब यही चाहते हैं कि दूसरा बच्चा बेटा हो, बेटे से ही परिवार पूरा होता है। इस तरह की धारणा में बदलाव बहुत जरूरी है। इसी सोच को बदलने के लिए उन्होंने अपनी दूसरी बेटी के जन्म के बाद इसका गृहप्रवेश जलसे की तरह कराया।
आज भी होता है बेटा-बेटी में फर्क
केएएमपी समूह के संस्थापक तिलक सिंह भदौरिया ने बताया कि चम्बल इलाके में आज भी बेटा बेटी में फर्क किया जाता है। बेटे के जन्म पर खुशी में मिठाई बांटी जाती है, लेकिन बेटी के पैदा होने पर वह खुशी नजर नहीं आती। ये सब देखकर उनका मन विचलित रहता था। इसी फर्क को दूर करने के लिए उन्होंने समूह की नींव रखी। अब तक वे 94 बेटियों का स्वागत कार्यक्रम कर चुके हैं। इस कार्यक्रमों का धीरे धीरे असर देखने को मिला है। अब लोगों की सोच में वाकई बदलाव आ रहा है। बेटों की तरह अब लोग बेटियों को भी महत्व देते हैं। कार्यक्रम में ज्यादा खर्च नहीं होता, जो परिवार खर्च उठाने के लिए सक्षम नहीं होता तो समूह द्वारा अपने खर्चे पर बच्ची का गृहप्रवेश कराया जाता है।
समूह को नहीं बनाया एनजीओ
तिलक सिंह भदौरिया ने बताया कि उन्होंने आज तक इस समूह को स्वयंसेवी संस्था अर्थात एनजीओ नहीं बनाया। क्योंकि लोग स्वयंसेवी संस्था को अलग नजर से देखने लगे हैं। स्वयंसेवी संस्था बनाने पर उनकी पहल का शायद उतना असर नहीं होता, यही सोचकर उन्होंने साधारण तरीके से अपने काम को आगे बढ़ाया है। वहीं तिलक के सहयोगी प्रभात ने बताया कि शुरुआत में हम सिर्फ 7-8 लोग थे लेकिन देखते ही देखते उनके समूह में 60 से 70 लोग हो चुके हैं। बेटी के पैदा होने पर जितनी खुशी परिवार को होती है उतनी ही हमें भी होती है।