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Monday, Sep 25, 2023
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बिना खर्च बिजली कंपनियों ने सरकार से कमाए 127 अरब

अदूरदर्शी करार बन रहे आम आदमी से लेकर सरकार के
लिए मुसीबत

भोपाल (देसराग)। बिजली का उत्पादन करने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियों की बीती कई सालों से बल्ले-बल्ले की स्थिति बनी हुई है। एक तरफ जहां सरकारी क्षेत्र की कंपनियां लगातार घाटे में जा रही हैं तो वहीं निजी क्षेत्र की कंपनियां दोहरा मुनाफा कमा रही हैं। इसकी वजह बनी है सरकारी की नीतियां।
दरअसल निजी कंपनियों से बिजली खरीदी के लिए अनुबंध करते समय उसमें सरकारी अफसरों ने ऐसा खेल किया की सरकार को तो हर साल अरबों रुपए की चपत लग ही रही है ओर निजी कंपनियां बगैर एक धेला खर्च किए हर साल अरबों रुपए का मुनाफा कमा रही हैं। इसकी वजह से प्रदेश के आम आदमी को मंहगी दर पर बिजली लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। दरअसल मप्र सरकार ने देश की विभिन्न बिजली उत्पादक कंपनियों से विद्युत क्रय अनुबंध (पावर परचेस एग्रीमेंट- पीपीए) किया हुआ है। यह करार उस समय अफसरों ने बगैर किसी दूरगामी योजना के किए हैं। इसके परिणाम स्वरुप हर साल सरकारी खजाने को बगैर बिजली लिए ही निजी कंपनियों को अरबों रुपए का भुगतान करना पड़ रहा है।
हालत यह है कि इस मामले में बीते पांच सालों में सरकारी खजाने को 127 अरब रुपयों की चपत लग चुकी है। दरअसल प्रदेश में इन दिनों जरुरत से अधिक बिजली का उत्पादन होने की वजह से सरकारी बिजली कंपनियों द्वारा करार के मुताबिक एक भी यूनिट बिजली नहीं ली जा रही है लेकिन तय शर्त के मुताबिक हर साल करोड़ों रुपयों का भुगतान करना पड़ रहा है। बीते पांच सालों में ही बिना बिजली लिए 12,731.93 करोड़ का भुगतान किया गया है। यह खुलासा हुआ है कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के सवाल के जवाब में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर द्वारा सदन में दी गई जानकारी से।
बिजली की मांग में कमी
प्रदेश में मांग में कमी बनी हुई है इसके बाद भी प्रदेश की बिजली कंपनियां 20 हजार मेगावाट से ज्यादा बिजली की उपलब्धता का दावा कर रही हैं। रबी सीजन में 15-16 हजार मेगावाट में के आसपास सर्वाधिक बिजली की मांग होती है। सामान्य दिनों में यह मांग औसतन 10 हजार मेगावाट के आसपास रहती है। ऐसे में बिजली खरीदने के लिए किए गए करार का कोई उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। किए गए करारों की सबसे बड़ी कमी यह है कि विद्युत वितरण कंपनियों को बिना बिजली लिए भी तय प्रभार का भुगतान करना पड़ता है। इसकी वजह से भुगतान की गई राशि का भार बढ़ जाता है। इस भार की वसूली कंपनियों द्वारा आम उपभोक्ता से नियत प्रभार के नाम पर वसूली की जाती है। खास बात यह है कि प्रदेश में पीपीए की प्रक्रिया वर्ष 2011 से जारी है।
केंद्रीय उपक्रमों की बिजली का भी उपयोग नहीं
मांग कम और उपलब्धता अधिक होने की वजह से प्रदेश में केंद्रीय उपक्रमों से मिलने वाले हिस्से की बिजली का भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह से पांच सालों में प्रदेश को करीब 4609.79 करोड़ रुपये की बिजली छोड़नी पड़ी है। इधर, पावर मैनेजमेंट कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए विद्युत विनियामक आयोग में याचिका दाखिल कर राजस्व प्राप्ति का अंतर 3919 करोड़ रुपये बताते हुए उसकी भरपाई के लिए बिजली की कीमत में औसत 8.71 प्रतिशत की बढ़ोतरी की मांग की है।

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