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Wednesday, Sep 27, 2023
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सरकार के बिजली करार उपभोक्ताओं पर तीन दशक तक पड़ेंगे भारी!

ऊर्जा प्रभार के नाम पर नियम विरुद्ध जारी है बिजली कंपनियों की वसूली

देसराग डेस्क।
प्रदेश में बिजली की कमी के बहाने अफसरों ने निजी बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों को उपकृत करने के लिए अदूरदर्शी व बगैर योजना के सैकड़ों करार किए। अब वह करार बिजली उपभोक्ताओंं की न केवल जेब काटने वाले साबित हो रहे हैं बल्कि सरकार के लिए भी मुश्किल भरे बन रहे हैं। हालत यह है कि अब इन करारों का खामियाजा प्रदेश के उभोक्ताओं को दो से साढ़े तीन दशक तक भुगतना होगा।
यही नहीं कंपनियों की फिजूलखर्ची का खामियाजा उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदकर भरना पड़ रहा है। उधर बिजली कंपनियों की मनमानी भी जारी है। हालत यह है कि बिजली चोरी और लाइन लॉस कम करने में अक्षम साबित हो रहे बिजली कंपनी के अफसर ईमानदार उपभोक्ताओं की जेब काटने के बहाने तलाशने में लगे रहते हैं। हालात यह है कि अवैध रुप से बिजली कंपनियों द्वारा ऊर्जा प्रभार के नाम पर उपभोक्ताओं से हर साल करीब एक हजार करोड़ रुपए की वसूली की जा रही है। सरकार भी इस तरह के मामलों में आंखे बंद किए हुए है जिसकी वजह से संबधित अफसरों की मनमानी जारी है। हालात यह हैं कि निजी कंपनियों से मनमाने ढंग से किए गए बिजली खरीदी का करारों की वजह से बीते पांच साल में सरकार को न केवल निजी पॉवर प्लांट संचालकों को 2,767 करोड़ का भुगतान करना पड़ा बल्कि 4,609 करोड़ की बिजली भी छोड़नी पड़ी है। इसी तरह से पांच साल में मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने निजी, सरकारी उपक्रमों को करीब 12,731 करोड़ रुपए का भुगतान किया हैं।
अगर अफसर चाहते तो करार के मुताबिक बिजली लेकर दूसरे राज्यों को बेच कर होने वाले नुकसान की बड़ी भरपाई कर सकते थे लेकिन उपकृत करने के चक्कर में इस तरह का कदम ही नहीं उठाया जाता है। प्रदेश में उत्पादन अधिक और मांग कम बनी होने की वजह से करार के अनुसार बिजली का उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। दरअसल सरकार ने करीब 274 निजी कंपनियों से बिजली खरीदी के लिए करार कर रखा है। यह करार भी 20 से लेकर 35 साल की अवधि के लिए किए गए हैं।
इस तरह की शर्त बन रही मुसीबत
प्रदेश के उपभोक्ताओं को 24 घंटे बिजली प्रदाय करने के लिए बगैर किसी योजना के विद्युत क्रेताओं से दीर्घकालिक क्रय अनुबंध करते समय उसमें ऐसी शर्त शामिल कर दी गई जिसकी वजह से दीर्घकालिक विद्युत क्रय अनुबंध को अनुबंधित अवधि में सरकार की ओर से निरस्त तक नहीं किया जा सकता है।
हर माह देना होगा ऊर्जा प्रभार
भले ही किसी घरेलू उपभोक्ता ने माह में एक भी यूनिट बिजली का उपयोग न किया हो लेकिन उसे हर माह 140 रुपए प्रति माह न्यूनतम ऊर्जा प्रभार देना होगा। इस प्रभार की वसूली के लिए तैयारी की जा रही है। खास बात यह है कि इसकी वसूली की तैयारी ऐसे समय की जा रही है जब मप्र विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 45 (3) क के तहत न्यूनतम ऊर्जा प्रभार का प्रावधान पूरी तरह से समाप्त किया जा चुका है। इसके लिए मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने मप्र ऊर्जा नियामक आयोग को टैरिफ पिटीशन सौंपी है। आयोग द्वारा की गई जनसुनवाई में न्यूनतम ऊर्जा प्रभार वसूलने का विरोध करते हुए कहा गया है कि मप्र में नए इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में भी इसे हटा दिया गया है, तो इसकी वसूली का क्या औचित्य है।
किस कंपनी से कितने सालों का करार
सरकार द्वारा जिन कंपनियों से करार किए गए हैं, उनमें अम्हाटा हायड्रो एनर्जी प्राइवेट से 35 वर्ष के लिए तीन करार किए गए हैं। जबकि एसएएस हाइडल प्रोजेक्टस 35 वर्ष, मेसर्स जेपी निगरी 20 वर्ष, मेसर्स लैंको अमरकंटक 25 वर्ष, मेसर्स एमबी पॉवर 20 वर्ष, मेसर्स एस्सार पॉवर 25 वर्ष, झाबुआ पॉवर 20 वर्ष, मेसर्स जेपी बीना 25 वर्ष, मेसर्स बीएलए पॉवर 20 वर्ष, मेसर्स टोरेंट पॉवर 25 वर्ष, प्रज्ञा एनर्जी पॉवर 20 वर्ष, जबलपुर एमएसडब्ल्यू प्राइवेट 25 वर्ष, आर्या एनर्जी, 20 वर्ष, डीबी कार्प लिमिटेड भोपाल से 16 अप्रैल 2007 में 20 साल के लिए एग्रीमेंट किया था। इस तरह कुल 274 कंपनियों से सरकार ने करार किया है। सरकार ने निजी पावर प्लांट से बिजली खरीदी के लिए पहला एग्रीमेंट 11 अप्रैल 2006 में विंड वर्ल्ड इंडिया एनकॉन लिमिटेड से 20 वर्ष के लिए किया था। इसके बाद 2007 में 10 कंपनियों से करार किया। 2008 में 7 कंपनियों से, 2009 में 7 कंपनियों से किया है।
इस तरह से हो सकती है बचत
करार के अनुसार प्रदेश सरकार को जब निजी कंपनियों को तय राशि का भुगतान करना ही पड़ता है तो सरकार अपने कोयले से बिजली पैदा करने वाले प्लांटो को बंद कर उनमें हर दिन खपत होने वाले कोयले के खर्च की बचत कर सकती है। बिजली उत्पादन के लिए सरकार को कोयला की खरीदी करनी पड़ती है। इसके एवज में हर माह करोड़ों रुपए का भुगतान करना होता है। इसके अलावा जिन प्रदेशों में बिजली की मांग है,उन्हें भी सरकार बिजली बेचकर आय में वृद्धि कर सकती है। सरकार द्वारा करार के अनसार बिजली नहीं लेने की वजह से निजी कंपनियां दोगुना कमाई कर रही हैं। मप्र सरकार से बगैर बिजली लिए अनुबंध के अनुसार उन्हें राशि तो मिल ही रही है साथ ही वे इस बिजली को दूसरों को बेचकर भी कमाई कर रही हैं। इधर, प्रदेश की पॉवर मैनेजमेंट कंपनी 20 हजार मेगावाट से ज्यादा बिजली की उपलब्धता का दावा कर रही है। जबकि प्रदेश में बिजली की मांग बढ़ती नहीं दिख रही है। रबी सीजन में 15-16 हजार मेगावाट के आसपास सर्वाधिक बिजली की मांग होती है।

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