देसराग डेस्क
23मार्च। आज ही के दिन अंग्रेजी हुकूमत ने भगत सिंह और उनके साथ दो और क्रांतिकारी सुखदेव और राजगुरु को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया था। आज का दिन इन तीनों क्रांतिकारियों की शहादत का दिन है। पूरा देश अपने अपने तरीके से इन क्रांतिकारियों को याद कर रहा है। यहां हम अखिल भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष और लोक जतन के संपादक बादल सरोज की फेसबुक वॉल को साझा कर रहे हैं जिसमें उन्होंने भगत सिंह के होने का अर्थ समझाया है-
भगतसिंहः इस असाधारण व्यक्तित्व के बारे में होने को हजार बातें है मगर फिलहाल सिर्फ तीन ;
एक
इतनी कम उम्र में वे हर मामले में समूची समग्रता के साथ स्पष्ट थे। दुनिया के बारे में भी देश के बारे में भी ।
साम्प्रदायिकता (हिन्दू मुस्लिम के नाम पर की जाने वाली राजनीतिक लुच्चयाई) के बारे में एकदम बेबाक थे तब जबकि अंग्रेजो की फूट डालो राज करो नीति उभार पर थी, और उनके पटु सावरकर कूद चुके थे ।
जाति के बारे में पूरी तरह मुखर थे ; उसकी ज्यादतियों के निर्मम आलोचक थे, उसके उन्मूलन के बारे में दृढ़प्रतिज्ञ थे । वह भी तब जब उस दौर के सबसे बड़े नेता गांधी (तब तक कट्टर वर्णाश्रमी) और छुआछूत बरतने वाले तिलक थे । तब जब डॉक्टर आंबेडकर की थीसिस नहीं आयी थी । विकास के रास्ते के बारे में भी साफ़ थे। वैज्ञानिक समाजवाद के हामी थे।
आजादी के स्वरूप और संगठन के रूप के मामले में वे बिलकुल साफ़ थे ; (सिर्फ फिलॉसफी ऑफ़ बम और नौजवानो के नाम चिट्ठी ही पढ़ लें ।)
दो
वे परिपक्व क्रांतिकारी – मैच्योर राजनीतिज्ञ थे । लाला लाजपत राय से असहमति थी मगर बदला उन्हीं की मौत का लिया । गांधी से मतभेद थे किन्तु उनके प्रति उग्रता कभी नहीं दिखाई । नेहरू, सुभाष के साथ गांधी को देश का सबसे बड़ा नेता ही माना । न अहंकार था, न व्यक्तिवाद । न प्रचार लिप्सा न सुविधा की कोई आकांक्षा ।
तीन
इतनी कम उम्र में वे दुनिया के सबसे पढ़े लिखे क्रांतिकारी थे । दुनिया को जानना चाहते थे – ताकि उसे बदल सकें । फांसी के वक़्त भगत सिंह सिर्फ 23 वर्ष, 5 महीने, 25 दिन के थे । मगर इस बीच वे सैकड़ों किताबे पढ़ चुके थे। उनके सहयोगी #शिव_वर्मा के अनुसार वे ;
स्कूल के दिनों में 50
कालेज के दिनों में 200
716 दिन की जेल में 300 किताबें पढ़ चुके थे ।
जंग के बीच आगरा में जब असेम्बली में बम फैंकने की प्लनिंग हो रही थी तब भी उनके पास 70 लेखकों की 175 किताबों की लाइब्रेरी थी । वे हर किताब को पढ़ कर, उसके नोट्स लेते थे, बहस करते थे – अपनी राय और समझ को अपडेट करते थे ।
फांसी के कुछ घंटों पहले उन्हें वकील प्राण मेहता लेनिन की #स्टेट_एंड_रेवोल्यूशन (राज्य और क्रांति) देकर आये थे । वे उसे पढ़ रहे थे और फाँसी का बुलावा लेकर आये जेलर से उन्होंने कहा था ;
“ठहरो – अभी एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल रहा है।”
इस तरह लेनिन से मिलकर वे शहीद हुए ।
कृपया_ध्यान_दें
यही सब करके ही याद किया जा सकता है भगतसिंह को । इसके बिना याद करना पाखण्ड और कर्मकाण्ड होगा ।