आज अचानक सुबह सुबह एक पुराने साथी मिल गये। उन्होंने प्रश्न किया आजकल क्या हो। मैंने कहा वही हू। वे बोले कल तक तो कम्युनिस्ट थे। सुना है आजकल कांग्रेसी हो गए हो। मैंने कहा मैं जो कल था आज भी वही हूं।वही दो हाथ, दो पैर, दो आंख, एक नाक सब कुछ तो वही है। सिर में कोई सींघ भी तो नहीं निकली। देखो चेहरे पर वही बेतरतीब दाढ़ी है। बस रंग काला से सफेद हो गया है। सिर भी टकला है। कांग्रेसियों की तरह हिजाब नहीं लगाता। पकी मूंछों और बरौनी के बाल भी चिमटी से नहीं उखाड़ता।
काग चेष्टा बकुल ध्यानम से भी दूर हूं। कांग्रेसी ट्रेडमार्का कोई परिधान भी नहीं है। लसड़- फसड़ जिंदगी है। जो मिल जाए खा लेता हूं। जो भी ब्रांड मिल जाए पी लेता हूं। जो कपड़े मिल जाए पहन लेता हूं। ना कोई टीनोंपाल, न कोई कलफयुक्त धवल कुर्ता पायजामा। जिसकी क्रीज चाकू से भी ज्यादा धारदार की टकरा जाएं तो चमड़ी कट जाए। मांसल हाथों में लहराता महंगा मोबाइल। कलाई में करतब दिखाती बड़े डायल की घड़ी। उगलियों में विविध रत्न जड़ित अंगूठियों का समागम। गले में पारदर्शी कुर्ते के भीतर से चमकती, लहराती, लुगाड़ो को चिढ़ाती हुई तीन तोला वजनी सोने की चैन। राजनीति भी व्यवसाय की तरह करते हैं। पाई पाई का हिसाब रखते हैं। बिना पंडित पोथी के कोई शुभ कार्य नहीं करते। उसका परिणाम भले अशुभ हो जाए। पता नहीं किस मुहूर्त में संतान पैदा करते रहे। इन गुणों से मैं परिपूर्ण नहीं हूं ।फिर कैसे मैं तुम्हें कांग्रेसी लग रहा हूं।
वे कहने लगे कि तुम तो तन से कम्युनिष्टी दिखते हो। परंतु तुम्हारा लेखन पढ़कर मुझे लगने लगा रहा है कि तुम मन से कांग्रेसी हो गए हो। मैंने उनसे कहा मित्र- मुझ सरीखे बहुत सारे तन से दिखने वाले वामपंथी मन से दक्षिणपंथी हो गए हैं। अपरोक्ष रूप से सांप्रदायिक शक्तियों की मदद कर रहे हैं। लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जाति आधारित राजनीतिक दलों के साथ साझा तीसरा मोर्चा बना रहे हैं। उन्हें कौन बताए कि हिंदुस्तान में सबसे बड़ी धर्मनिरपेक्ष पार्टी कांग्रेस है। जिसका एक वृहद और गौरवशाली इतिहास है। जिसके नेताओं ने शहादत दी है। एक कहावत है। हर बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। उसी तरह हर बड़ी पूंजी छोटी पूंजी को भी समाहित कर लेती है।
वे बचपन के साथी हैं। सीधे सरल इंसान हैं। लघु कृषक और अल्प वेतनभोगी कर्मचारी हैं। राजनीति का बहुत तिकड़म नहीं समझते। कहने लगे बताओ यह वामपंथ दक्षिण पंथ क्या है मैंने कहा फ्रांस की क्रांति का इतिहास पढ़ो। फ्रांसीसी जनता ने वहां के निरंकुश राजा की हत्या कर दी। और हत्या करने के बाद अपराधग्रस्त होकर रोने लगी। राजा के धड़ से अलग सिर को सिंहासन पर बैठाकर ताजपोशी की ।फ्रांस में उसी के बाद लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव हुआ। संसद में राष्ट्रपति के दाहिने तरफ बहुमत वाले और बाएं तरफ अल्पमत वाले बैठे थे। दाहिने तरफ वालों को कहना था कि राजा के विशेषाधिकार होने चाहिए और बाएं वालों को कहना था कि राजतंत्र पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। वहीं से वामपंथ और दक्षिणपंथ का उदय हुआ।
कांग्रेस मध्य मार्गी पार्टी है। उसमें दोनों पंथ हैं। जब वामपंथियों का दबाव पड़ता है तो कांग्रेस पार्टी ठोस आर्थिक, सामाजिक फैसले लेती है। मसलन राजा महाराजाओं का पृवीपर्स बंद करना, उनका विशेषाधिकार छीनना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण, सीलिंग एक्ट, औद्योगिकीकरण, वनाधिकार, सूचना का अधिकार, भू अधिग्रहण कानून, खाद्य सुरक्षा गारंटी, रोजगार गारंटी योजना और जब दक्षिणपंथी ताकतों का दबाव पड़ता है तो वह धर्म के नाम पर मंदिर और मस्जिद में उलझ जाती है। उस तरह के फैसले लेती है। अभी हाल में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम में यह देख चुके हैं। दुर्भाग्य से वामपंथी दल संसदीय भटकाव के शिकार हैं। अतीत के अनुभवों से सबक नहीं लेते। आत्मघाती फैसले ले रहे हैं। यही वजह है कि पांच राज्यों में एक भी वामपंथी दल के विधायक चुनाव नहीं जीते।
मेरी बात सुनकर वह कहने लगे और बोले कि कांग्रेस में कमाई करने गए हो। तुम्हारी दो दो किताबें छप चुकी हैं। अजय सिंह राहुल भैया ने लोकार्पण किया है। खूब बिक्री हुई हो होगी। मालामाल हो जाओगे। मैंने कहा हां आज ही मैंने बुक सेलर सहित एक लड़के को बस का किराया और लगेज का पैसा देकर मैहर भेजा था। कांग्रेसियों का धरना प्रदर्शन था। बेचारा तपती धूप में जमीन पर मेरी प्रकाशित दूसरी पुस्तक “नेहरू गांधी युगीन राजनीति के अंतिम योद्धा अर्जुन सिंह” लेकर भूखा प्यासा बैठा रहा। एक भी किताब बिकना तो दूर किसी ने देखा भी। मुझे हजार रुपए की चपत लगी।
स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी के नाम पर धंधा रोजगार करके राजनीति चमकाने वाले कांग्रेसी नेता कुर्ते की जेब में काजल तथा फेवीकोल की डिबिया लेकर चलते हैं। नेता के बगल में बैठने के पहले कुर्सी में फेविकोल लगा देते हैं। सत्ता के शिखर पर पहुंचते हैं। अपने कुकर्मों के कारण सत्ता से बाहर होते ही दूसरे जेब से काजल की डिबिया निकाल कर मुंह में कालिख पोत लेते हैं। सोचते हैं कि दुबारा जनता उन्हें पहचानेगी नहीं।
यह सुनते ही साथी भड़क गए, मुझे गरियाने लगे। बोले तुम बहुत बकचोद हो। मैंने कहा ठीक कहते हो तुम तो होशियार हो 25-50 हजार रुपल्ली महीने के लिए अफसर से लेकर विधायक मंत्री के चरण में नाक रगड़ते रहे। तुम खाओ, पियो, सोओ और बच्चे पैदा करो। अंत में राम नाम सत्य करते हुए चले जाओ। हमारे शुभचिंतक साथी की तरह इस मुल्क में करोड़ों लोग हैं। जो इतने आत्मगत हैं कि उनकी दुनिया उनके बीवी, बच्चे और घर तक सीमित है । देश दुनिया से उन्हें कोई सरोकार नहीं। कीड़े मकोड़ों की तरह आए हैं और चले जाएंगे। यह समाज देश और दुनिया फिर भी रहेगी। अंत में मुझे कबीर का पद याद आता है:-
कबीरा हम पैदा हुए जग हंसे हम रोए ।
ऐसी करनी कर चलो हम हंसे जग रोए।।
(लेखक जाने माने पत्रकार हैं)