राकेश अचल
आज से नव सम्वतसर और रमजान एक साथ शुरू हो रहे हैं। अब ये संयोग है या साजिश मै नहीं जानता। इस संयोग के पीछे नेहरू जी तो बिलकुल नहीं हो सकते ,क्योंकि उन्हें पंचांग बनाना आता ही नहीं था । वे पांच वर्षीय योजनाएं बनाना जानते थे,जो आजकल के नेहरू नहीं जानते। बहरहाल नवसम्वतसर है तो आप अपने घर पर गुड़ी लगाइये,घट स्थापना कीजिये और बाक़ी लोगों को रमजान के रोजे रखने दीजिये। सब अपना-अपना काम मन से करें तो मुल्क की प्रतिष्ठा बढ़ती है।
मुल्क की प्रतिष्ठा सौहार्द से बढ़ती है न की बुलडोजर चलने से ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि अब लोकतंत्र में बुलडोजर को प्रतिष्ठित किया जा रहा ह। अरे भाई प्रतिष्ठा करो तो आदि शक्तिरूपा की करो,ये बुलडोजर,सोजर कहाँ से आ गए बीच में। ये बुलडोजर खराब क़ानून और व्यवस्था को सुधरने के बजाय हमारी न्याय व्यवस्था की कनपटी पर रोज चपत जमा रहे हैं। बुलडोजरों के आने के बाद लगता है कि हमारी सरकारों का भारत की न्याय व्यवस्था पर कोई भरोसा ही नहीं रह गया।
भरोसे का संकट सब दूर है भारत के मुख्य न्यायधीश रमान सर सीबीआई की गिरती साख से परेशान हैं। वे कहते हैं कि पहले पुलिस के पक्षपात से दुखी लोग अदालतों के पास मामलों की जांच सीबीआई से करने का आग्रह करते आते थे किन्तु अब लोग सीबीआई से कतराते है। क्योंकि सरकार ने एक निष्पक्ष और रसूखदार जांच एजेंसी को अपना तोता बना दिया। जब सीबीआई जैसी संस्थाओं का रसूख जाता रहेगा तब आदमी इन्साफ के लिए कहाँ जाएगा ?
देश की सबसे पड़ी अदालत में हलफनामा देकर बताया था की उनके पास दो साल पहले तक लंबित मामलों की संख्या 9757 थी इनमें से भी 3 हजार से अधिक मामले ऐसे थे जो दस साल से भी ज्यादा लंबित थे। जाहिर है कि सीबीआई की दक्षता प्रभावित हो रही ह। सीबीआई 65 फीसदी से ज्यादा मामलों में आरोपियों को सजा दिला ही नहीं पाती अब सीबीआई वालों का हिन्दू-मुसलमान तो होता नहीं है,उनका काम तो संवैधानिक तरिके से चलता है लेकिन कोई काम करने दे तब न।
आज मै कुछ-कुछ बहका-बहका सा हू। समझ नहीं पा रहा की नव सम्वतसर की बात करूँ या रमजान की। सीबीआई की बात करूँ या सरकार की ?एक की बात करो तो दूसरे के खफा होने के खतरे हैं। हम मिलजुलकर रहने के हामी नहीं रहे। हम साफ़ तौर पर विभक्त दिखाई दे रहे हैं यानि एक तरफ भक्त हैं तो दूसरी तरह अभक्त हैं। देशभक्त कम ही है। जब देश और नेता एक हो जाये तो ये धर्मसंकट पैदा होता ही है। हमारा अनुभव इस मामले में अच्छा नहीं है । देश में एक बार ‘इंडिया इज इंदिरा’ हो चूका है ,अब देश ‘मोदी इज इंडिया’ हो रहा है। ‘इंडिया इज इंडिया’ नहीं पा रहा,जबकि जरूरत इसी की है
बहरहाल मजा तब आये जब इस बार रमजान पर मोदी हाउस में रोजा इफ्तार की पार्टियां होती दिखाई दें,लेकिन मन होंसिया और कर्म घटिया हो तो ये ख्वाब कभी साकार नहीं हो सकते। मोदी जी सबका साथ सबका साथ चाहते हैं लेकिन उनका धर्म आड़े आ जाता है। वे हिंदू पहले हैं प्रधानमंत्री बाद में। वे जब सर पर जालीदार टोपी धारण नहीं कर सकते तो उनके यहां रोजा इफ्तार की कल्पना करना ही बेकार है । देश से पहले धर्म के बारे में सोचने वाले आज के नेहरू नए साल में कुछ नया कर दिखाएँ।नवसंतसर और रमजान का संयोग मुझे तो बड़ा सुखद लगता ह। ऐसे त्यौहार आदमी को आदमी बनाने में मदद करते हैं ,आज की सबसे बड़ी जरूरत आदमीयत ही है। हिन्दू-मुसलमान नहीं। क्योंकि आज अकेले सीबीआई की साख ही खतरे में नहीं है बल्कि इंसानियत की साख भी खतरे में हैं। आइये इसे मिलजुलकर बचाएं। बिना साख के न संस्था की पूछ परख होती है और न इंसान की।
आज दो अप्रैल है,एक नहीं इसलिए ऊपर वाला सभी को सद्बुद्धि दे को हम सब बुलडोजर के सहारे नहीं क़ानून और व्यवस्था के सहारे लोकतंत्र को ,सामाजिक ताने-बाने को मजबूर करेंगे। देश अगर तोड़फोड़ से बनता -बिगड़ता तो फिर औरंगजेब कामयाब नहीं हो जात। तोड़फोड़ से उसे कुछ भी हासिल नहीं है हासिल निर्माण से होता है ,निर्माण कीजिय। समाज में टूटते पुलों को जोड़िये, तभी नवदुर्गा उत्सव और रमजान की सार्थकता है। बाक़ी आप सब समझदार है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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