महंगाई के खिलाफ अभियान से बड़े क्षत्रपों ने किया किनारा
भोपाल(देसराग)। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को गए हुए 2 साल से अधिक का समय हो गया है, लेकिन पिछले 2 सालों में मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया कमलनाथ पूरे प्रदेश में कोई भी बड़ा आंदोलन खड़ा करने में नाकामयाब ही रहे हैं। हाल ही में महंगाई को लेकर हुआ कांग्रेस का आंदोलन कमलनाथ के बंगले तक सीमित रहा, वहीं कमलनाथ अपने बंगले और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी दफ्तर तक सिमट कर रह गए हैं। अब जब आगामी विधानसभा चुनाव को करीब डेढ़ साल का समय बचा है, तो ऐसे में असंतोष और गुटबाजी से जूझ रही कांग्रेस को एकजुट रख पाना और महंगाई और अपराध जैसे ज्वलंत मुद्दों को जन आंदोलन बनाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है।
सरकार पतन के बाद भी जस के तस हैं हालात
साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ के मैनेजमेंट, दिग्विजय सिंह के मैदानी स्तर पर कार्यकर्ताओं को एकजुट करने और ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा प्रचार-प्रसार की कमान हाथ में लेने के चलते कांग्रेस ने 15 साल से सत्ता के सिंहासन पर बैठी भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से बेदखल किया था, लेकिन कांग्रेस के सत्ता में आने dके बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच अपने-अपने पुत्रों को सियासत रंग मंच पर स्थापित करने के लिए चली शह और मात की जंग ने बमुश्किल सत्ता के सिंहासन तक पहुंची कांग्रेस सरकार का 15 महीने में ही पतन करा दिया और सरकार गिरने के बाद अभी भी कांग्रेस के हालात जस के तस बने हुए हैं।
रस्म अदायगी बनकर रह गया महंगाई पर आंदोलन
कमलनाथ के मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया बनने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस में आपसी गुटबाजी और असंतोष की आवाज लगातार सुनाई दे रही है। यह नजारा हाल ही में तब देखने को मिला, जब महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दों पर कांग्रेस का आंदोलन कमलनाथ के निवास तक सिमट कर रह गया। यहां पर मात्र 7 मिनट में कांग्रेस का यह आंदोलन समाप्त हो गया। इतना ही नहीं, इस आंदोलन में कमलनाथ के अलावा कोई भी बड़ा नेता जैसे दिग्विजय सिंह, अजय सिंह राहुल और अरुण यादव शामिल नहीं हुआ।
क्षत्रपों की कार्यशैली पर सवाल
कांग्रेस में कमलनाथ को लेकर असंतोष थमा नहीं है, प्रदेश के कांग्रेस नेताओं की सोनिया गांधी से मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व मुखिया अरुण यादव और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने कमलनाथ की कार्यशैली को लेकर हाईकमान से अपनी बात रखी है। मध्य प्रदेश से राज्यसभा की एक सीट को लेकर भी दावेदारी शुरू हो गई है इसके लिए भी अरुण यादव और अजय सिंह राहुल के अलावा राज्यसभा सांसद विवेक तंखा भी लॉबिंग में जुट गए हैं।
क्षत्रपों में बढ़ती दूरियां
कांग्रेस ने जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को संगठित करने के लिए घर चलो घर चलो अभियान शुरू किया, लेकिन अरुण यादव, अजय सिंह सुरेश पचौरी इससे दूर रहे। उसके बाद जब अरुण यादव ने भोपाल में होली मिलन कार्यक्रम आयोजित किया तो कमलनाथ और उनके करीबी नेता इसमें शामिल नहीं हुए। पार्टी ने मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी दफ्तर में सुभाष यादव की जयंती पर पुष्पांजलि कार्यक्रम आयोजित किया, तो इस कार्यक्रम में अरुण यादव और दिग्विजय सिंह शामिल नहीं हुए।
तवज्जो नहीं देते कमलनाथ
पार्टी के असंतुष्ट नेताओं का आरोप है कि कमलनाथ उन्हें तवज्जो नहीं देते। बात केवल कमलनाथ के तवज्जो न देने तक ही सीमित नहीं है कमलनाथ को लेकर पार्टी में आम कार्यकर्ता की राय अहंकारी नेता की बन गई है। जो सत्ता के जाने के बाद भी अपने आपको मुख्यमंत्री के रुप में प्रदर्शित कर रहे हैं। विधानसभा के अंदर भी पार्टी एकजुट नहीं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच मनमुटाव की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनी। अब सड़क पर ही नहीं बल्कि विधानसभा के अंदर भी कांग्रेस पार्टी में एकजुटता दिखाई नहीं दे रही है, हाल के बजट सत्र में पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने राज्यपाल के अभिभाषण का सोशल मीडिया के जरिए बहिष्कार कर दिया था। इस मामले में पार्टी ने अपने हाथ खींच लिए थे और इसे जीतू पटवारी का व्यक्तिगत मामला करार दिया था, वहीं उत्कृष्ट विधायकों के पुरस्कार वितरण कार्यक्रम के कार्ड में कमलनाथ का नाम नहीं होने पर कांग्रेस पार्टी ने उसका बहिष्कार किया था जिसके बाद भी कांग्रेस के दो विधायक कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
समर्थक कम लेकिन गुटबाजी बराबर
राजनीतिक विश्लेषकों कहना है कि भले ही कांग्रेस के बड़े नेताओं के गुट में समर्थकों की संख्या कम हो लेकिन गुटबाजी बराबर बनी हुई है। कमलनाथ भी इस गुटबाजी और असंतोष को कम नहीं कर पाए हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी अपने संगठन को तो मजबूत कर ही रही है और कार्यकर्ता जनता के बीच जाकर सरकार के पक्ष में माहौल बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
कमलनाथ कांग्रेस के विफल नेता
भाजपा प्रवक्ता दुर्गेश केसवानी का कहना है कि मध्यप्रदेश में जब ‘वक्त है बदलाव का’ की बात हुई तो कांग्रेस के लोगों ने कमलनाथ को अनुभवी नेता बताया था, लेकिन 15 महीने में ही उनकी सरकार को संभाल नहीं पाए। प्रदेश में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। केसवानी का कहना है कि कमलनाथ वह विफल नेता हैं जिनके पार्टी अध्यक्ष रहते हुए 30 से अधिक कांग्रेस विधायक पार्टी छोड़ कर चले गए। केसवानी ने कहा कि कमलनाथ ने ना केवल दिग्विजय सिंह जिन्होंने मध्य प्रदेश का बंटाधार किया था, उनका रिकॉर्ड तोड़ा है, बल्कि उन्होंने 15 महीने में ही मध्य प्रदेश को गर्त में धकेल दिया है।
कोरोना के चलते नहीं हो पाए बड़े आंदोलन
कांग्रेस प्रवक्ता और कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा का कहना है कि पिछले 2 साल कोरोना महामारी के बीच बीते हैं, राजनीतिक रैलियों, धरना प्रदर्शन पर रोक लगी थी, जिसके चलते बड़े आंदोलन नहीं हो पाए। इसके बाद भी हमने सरकार के खिलाफ लगातार प्रदर्शन किए हैं, प्रदेश की भाजपा सरकार ने विधानसभा का सत्र भी नहीं चलने दिया। अब जब कोरोना से संबंधित लगे प्रतिबंध हट गए हैं, तो कांग्रेस के बड़े आंदोलन सड़क पर देखने को मिलेंगे।