सोमेश्वर सिंह
एक जमाना था जब मंहगी दाल, मंहगी प्याज के कारण सरकारें बदल जाती थी। मनमोहन सिंह की सरकार में भारतीय जनता पार्टी ने मंहगाई को मुद्दा बनाते हुए उस जमाने के चर्चित फिल्मी गीत “सखी सैंया तो खूब कमात है, महंगाई डायन खाए जात है” को आंदोलन बना लिया था। परिणाम स्वरूप भाजपा कांग्रेस सरकार को खा गयी। लेकिन पिछले दिनों संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में महंगाई मुद्दा क्यों नहीं बन पाया। बकौल राहुल गांधी यदि कांग्रेस कोई पार्टी अथवा संगठन नहीं, एक विचार है तो इस मुद्दे पर कांग्रेस को विचार जरूर करना चाहिए।
भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। भारत कांग्रेस मुक्त होगा या नहीं यह एक अलग विषय है। परंतु भाजपा आहिस्ता आहिस्ता कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ रही है। भाजपा के पास जंबो जेट आरएसएस के नेटवर्क सहित तकरीबन 40 अनुषांगिक संगठन है। जिनके तथाकथित राष्ट्रवादी और समर्पित स्वयंसेवक दिन रात काम कर रहे हैं। जो फुलटाइम वैतनिक होल टाइमर है। जिनका पूरे हिंदुस्तान में गांव गांव ,गली गली नेटवर्क फैला हुआ है। वे चुपचाप अपना काम कर रहे हैं। संघ के कार्यकर्ताओं को भाजपा शासित सरकारों ने उपकृत कर रखा है। चाहे वह स्वयंसेवी , समाजसेवी संगठन में हों में हो या आउटसोर्स वर्क में। सरकारी धन से पोषित हो रहे हैं। उनकी शिक्षण संस्थाएं संचालित हो रही हैं। संघ द्वारा शिक्षित, प्रशिक्षित, संस्कारित पीढ़ियां संवैधानिक संस्थाओं में काबिज है।
हिंदुस्तान की आजादी के बाद अभी तक विरोधी पार्टियों के द्वारा सिर्फ महंगाई को नियंत्रित करने की ही मांग होती रही है। चाहे वह कोई भी दल रहा हो। किसी जमाने में वामपंथी नारा लगाया करते थे। “रोको महंगाई बांधो दाम, वर्ना होगी नींद हराम” आज न तो सरकारों की नींद हराम है और ना ही आम जनता की। सरकारे चैन की बंसी बजा रही है। कांग्रेस प्रलाप कर रही है। फिर भी गांधी जी के दांडी यात्रा के बाद पहली मर्तबा कांग्रेस ने “महंगाई मुक्त भारत अभियान” चलाया है। यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है। परंतु यह कांग्रेस का यह अभियान फ्लाप होता दिखाई दे रहा है। वजह साफ है ऊपर से नीचे तक कांग्रेस का लुंज पुंज संगठन।
किसी भी बड़े आंदोलन का इतिहास रहा है। उसका स्वभाव और उसकी परंपरा रही है। कोई भी जन आंदोलन बिना जनता की भागीदारी के सफल नहीं हो सकता। कोई भी जन आंदोलन बिना जन जागरण के खड़ा नहीं किया जा सकता। संगठन कमजोर हो तो भी चलेगा। लेकिन नेतृत्व की दृढ़ इच्छाशक्ति, उसका आत्मविश्वास और समर्पण ही किसी भी जन आंदोलन को गति देता है। निर्णायक दौर तक पहुंचाता है। इस संदर्भ में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा को जानना समझना चाहिए।
गैस, डीजल, पेट्रोल की बात तो छोड़िए। आज हिंदुस्तान में नमक की कीमत क्या आप जानते हैं। जिस नमक के लिए गांधी जी ने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया। जिससे अंग्रेजी हुकूमत हिल गई। अंग्रेजों ने नमक पर सिर्फ टैक्स लगाया था। महत्वपूर्ण टैक्स नहीं था। महत्वपूर्ण था नमक के नाम पर गांधीजी द्वारा हिंदुस्तान के आम गरीब, मजदूर, किसान को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जागृत करना। वह दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से शुरू हुई थी जो 24 दिनों की पैदल यात्रा के बाद 358 किलो मीटर का फासला तय करने के बाद 6 अप्रैल 1930 को दांडी गांव के समुद्र तट पर पहुंची थी। उस यात्रा की शुरुआत गांधीजी ने मात्र 78 स्वयंसेवकों के साथ प्रारंभ की थी। जिसका समापन लाखों की संख्या में हुआ था। वह आंदोलन पूरे एक साल चला था। अंग्रेजों को मजबूर होकर का 1931 में गांधी इरविन समझौता करना पड़ा।
वायुमंडल के हवा के ऑक्सीजन की तरह समुद्र के खारे पानी से नमक बनता है। ऑक्सीजन का हाल तो आप देख ही चुके हैं। परंतु नमक की कीमत जानकर आप चौक जायेंगे। नमक के सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी टाटा है। जिनके नमक की कीमत ₹20 किलो से लेकर 1300 सौ रुपए किलो तक है। साधारण सफेद ,आयोडीन युक्त, काला, पीला, नीला, हरे रंग का नमक आपको मिलेगा। सबसे महंगा पीले रंग वाला साल्ट रॉक नमक है। जिसके 100 ग्राम नमक की कीमत ₹130 है।
महंगाई मुक्त भारत अभियान को दांडी यात्रा की तरह चलाया जाना चाहिए। चाहे उसमें सालों साल लग जाए। दुर्भाग्य से देश, प्रदेश की राजधानी के अलावा कहीं-कहीं जिला मुख्यालयों को छोड़कर यह समूचे देश में अभियान का रूप नहीं ले सका। दिल्ली के विजय चौक में राहुल गांधी ने गैस सिलेंडर और मोटरसाइकिल पर फूल माला चढ़ाकर अभियान की शुरुआत की। कुल मिलाकर यह आंदोलन रस्म अदायगी बनकर रह गया। हमारे सीधी में तो जिला कांग्रेस के पदाधिकारियों ने किसी तरह से जिला प्रशासन को महंगाई के विरोध में चुपचाप ज्ञापन दिया। कागज के बमुश्किल 10 ग्राम वजनी ज्ञापन का बोझ दर्जनभर कांग्रेसियों ने उठा रखा था।
इन दिनों पता नहीं क्यों मैं देश, दुनिया, समाज को देखकर राममय तो नहीं तुलसीमय जरूर होता जा रहा हूं। जब कभी कुछ लिखने बैठता हूं, तो पता नहीं कहां से तुलसी बाबा की चौपाई टपक पड़ती है। कांग्रेस और कांग्रेसियों के महगाई मुक्त भारत अभियान को समर्पित तुलसी बाबा कि यह चौपाई-
बिनु पद चलइ सुनय बिनु काना, कर बिनु करम करई विधि नाना। आनन रहित सकल रस भोगी, बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)