भोपाल (देसराग)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ शब्दों में कह दिया है कि पार्टी में परिवारवाद नहीं चलेगा। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि मेरे कहने पर सांसदों के बेटों का टिकट कटा है और आगे भी वंशवाद की राजनीति नहीं चलेगी। मोदी के दो-टूक तेवर देखकर मप्र में भी नेता-पुत्रों की नींद उड़ी हुई है। वैसे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने भी संगठन से नेता पुत्रों को दूर रखकर पहले ही संकेत दे दिया है कि पार्टी में परिवारवाद नहीं, बल्कि काम को महत्व दिया जाएगा। इसके बावजूद कई नेतापुत्र आगामी विधानसभा चुनाव में किस्मत अजमाने की कवायद में जुटे हुए हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में पिछले एक दशक से नेतापुत्रों की एक बड़ी फौज राजनीति में सक्रिय है। कांग्रेस में तो नेतापुत्रों को बराबर महत्व दिया जा रहा है लेकिन भाजपा में जब से विष्णुदत्त शर्मा प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, नेता पुत्र हांशिए पर चले गए हैं। इसकी वजह यह है कि वे “नाम और शोहरत” के भरोसे पद चाहते हैं जबकि टीम “वीडी” में सक्रिय नेताओं को जगह मिली है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद पर प्रहार कर नेता पुत्रों के लिए राजनीति का द्वार बंद कर दिए हैं। इससे भाजपा के कई दिग्गज नेताओं के पुत्रों के सामने भविष्य की चिंता खड़ी हो गई है।
नई पीढ़ी के लांचिंग की तैयारी
सियासी गलियारों की फिजाओं पर मजबूत पकड़ रखने वाले जानकार मानते हैं कि मिशन 2023 के मद्देनजर भाजपा में कई दिग्गज नेताओं की नई पीढ़ी के सियासी मैदान में जोर-शोर से लांचिंग की तैयारी है। पार्टी में एक-दो नहीं ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है जिनके बेटे-बेटी उनकी सियासी विरासत संभालने को आतुर हैं लेकिन पीएम मोदी ने परिवारवाद को लोकतंत्र का दुश्मन बताते जिस अंदाज में प्रतिक्रिया दी है उससे कई नेताओं की भावी प्लानिंग पर आशंकाएं गहरा गई हैं। भाजपा ही एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी है जिसमें बड़े नेता बनने का रास्ता भाजयुमो से होकर ही गुजरता है। पार्टी में आज जितने भी बड़े नेता हैं वे भाजयुमो के पदाधिकारी रहे हैं। ऐसे में दिग्गज नेताओं के बेटा-बेटा राजनीति में आने के लिए भाजयुमो में एंट्री पाने को लालायित रहते हैं।
अगर यह कहा जाए कि भाजयुमो नेतापुत्रों का लॉन्चिंग पैड है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। लेकिन इस बार भाजयुमो में एक भी नेता पुत्र को जगह नहीं दी गई है। यानी प्रदेश संगठन ने नेता पुत्रों की सियासी तरक्की पर रोक लगा दी है। जबकि एक दर्जन से ज्यादा नेताओं के पुत्र अपने पिता की राजनीतिक पिच पर सियासी प्रैक्टिस कर रहे थे। लेकिन वीडी के बाद अब मोदी ने भी परिवाद पर अंकुश लगा दिया है।
तो इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा रह जाएगी अधूरी?
पार्टी के इस कदम से भाजपा के दिग्गज नेताओं को अपने पुत्रों के लिए नई राह तलाशनी होगी। गौरतलब है कि पिछले एक दशक से प्रदेश की राजनीति में भाजपा के दिग्गज नेताओं के पुत्र अपनी जगह बना रहे थे। इनमें से कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय और मंत्री हर्ष सिंह के बेटे विक्रम सिंह की राजनीतिक लॉन्चिंग 2018 में हो चुकी है और वे विधायक भी बन चुके हैं। लेकिन इनके अलावा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र सिंह तोमर, राज्यसभा सदस्य प्रभात झा के बेटे तृष्मुल झा, स्व.नंदकुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह, मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव, जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया, सुमित्रा महाजन के बेटे मंदार महाजन, पूर्व मंत्री करणसिंह वर्मा के बेटे विष्णु वर्मा, गौरीशंकर बिसेन के बेटी मौसमी बिसेन, गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार, सत्यनारायण जटिया के बेटे राजकुमार जटिया, माया सिंह के बेटे पीताम्बर सिंह, मालिनी गौड़ के पुत्र एकलव्य गौड़, यशोधरा राजे सिंधिया के पुत्र अक्षय भंसाली, विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के पुत्र राहुल गौतम, दीपक जोशी के बेटे जयवर्धन जोशी, अर्चना चिटनीस के बेटे समर्थ चिटनीस सहित कई नेता पुत्र राजनीति में अवतरित होने को बेताब हैं।
पिता की सियासी विरासत को संभाल रहे पुत्र
मप्र की सियासत में कई नेता पुत्र ऐसे हैं जो सियासी पदार्पण की आस में अपने पिता की सियासी विरासत को संभाल रहे हैं और अपने के क्षेत्र में सक्रिय हैं। दिग्गज नेताओं की सियासी विरासत संभालने के लिए आतुर उनकी युवा पीढ़ी अपनी मैदानी तैयारी कर चुकी है। कुछ नेता-पुत्र वर्ष 2018 के विधानसभा, लोकसभा और उपचुनावों के दौरान प्रचार और मंचीय सभाओं की नेट प्रेक्टिस कर चुके हैं, हालांकि इनमें कई युवा तुर्क पिछले कई वर्षों से अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र में कामकाज से लेकर अन्य जवाबदारियां भी संभाल रहे हैं। इसके पीछे यह भी प्लानिंग है कि आगे चलकर टिकट का दावा भी पुख्ता हो जाएगा।
2013 से तलाश रहे जमीन
भाजपा नेताओं के पुत्र 2013 से प्रदेश की राजनीति में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। इनमें से कुछ नेता पुत्रों को भाजयुमो के रास्ते राजनीति में प्रवेश दिया गया था। वहीं कुछ अपनी पिता की विरासत संभालने के लिए तैयारी कर रहे थे। 2018 में जहां दो नेता पुत्रों ने विधानसभा के लॉन्चिंग पैड से उड़ान भरी, वहीं अन्य नेता पुत्रों को उम्मीद थी कि 2023 में उन्हें विधानसभा का टिकट मिल जाएगा। लेकिन उपचुनाव में भाजपा ने दिवंगत नेताओं के पुत्रों को टिकट न देकर यह संदेश दे दिया है कि प्रदेश भाजपा में परिवारवाद नहीं चलेगा।
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