सोमेश्वर सिंह
इस मुल्क का इतिहास रहा है। लेखक, कवि, साहित्यकार, पत्रकार, वकील, समाजसेवी, सभी को जेल जाना पड़ा है। कुछ आजादी के पहले, कुछ आजादी के बाद। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की अगुवाई इसी प्रबुद्ध वर्ग ने की है। अंग्रेजों ने उन्हें जेल में यातनाएं दी। बिना अपराध के ही सेफ्टी कानून के अंतर्गत जेल में रखा। राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया। आजन्म कारावास से लेकर काला पानी तक की सजा हुई। किसी क्रांतिकारी ने उफ नहीं किया। फांसी के फंदे पर झूल गए लेकिन क्षमा नहीं मांगी। जेल में सजा काटते हुए बाल गंगाधर तिलक ने “गीता रहस्य” पुस्तक लिखी। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जिंदगी के 12 वर्ष जेल में गुजारे। और उन्होंने “भारत एक खोज” और “विश्व इतिहास की झलक” दो विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें लिखी। मेरठ षड्यंत्र केस के बहुचर्चित नायक कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृत डांगे ने जेल में सजा काटते हुए “नर्क की खोज” पुस्तक लिखी। द्वापर में तो भगवान कृष्ण का जन्म ही जेल में हुआ।
स्वतंत्रता आंदोलन के नायक संघर्ष करते हुए जेल जाते। सिलसिला खत्म ना होता। बाद में उनकी पत्नियां, बाल बच्चे भी जेल जाते। संघर्ष करते। न थके, न हारे। आज हम संविधान, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का राग जरूर अलापते हैं। लेकिन इसकी रक्षा के लिए एक रात भी जेल में नहीं रह सकते। जेल में भी हमें कूलर चाहिए, पंखा चाहिए, टीवी चाहिए, घर का बना खाना चाहिए। जेल के बाहर घर में बाल बच्चों के सुरक्षा की गारंटी चाहिए। जी न्यूज के संपादक संदीप चौधरी उद्योगपति जिंदल से 100 करोड़ की फिरौती मामले में एक माह तक तिहाड़ जेल में बंद थे। रिपब्लिकन टीवी के संपादक अर्णव गोस्वामी मां बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में गिरफ्तार हुए थे। यह कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं थे। परंतु इस सरकार में यही स्थापित पत्रकार और सरकारी मेहमान है। एक तड़ीपार देश का गृहमंत्री है। दूसरा गृह राज्य मंत्री ।जिसके बेटे ने खीरी लखीमपुर में गुंडई करते हुए जीप से कुचल कर किसानों को मार डाला। हाई कोर्ट ने उसे जमानत दे दी।खीरी लखीमपुर की आठो विधानसभा सीट भाजपा जीत गई।
पिछले 23 सालों में दुनियाभर के 1928 और भारत में 74 पत्रकारों की हत्या की गई है। 2014 से 2020 तक भारत में 27 पत्रकारों की हत्या हुई। पिछले साल 2021 में भारत में 5 पत्रकार मारे गए। पंजाबी कवि अवतार सिंह पाश, रंगकर्मी सफदर हाशमी, लेखक एम एम कलबुर्गी, पत्रकार गौरी लंकेश, मजदूर नेता गोविंद पंसारे, लेखक नरेंद्र दाभोलकर कि चरमपंथियों ने हत्या कर दी। कुछ अपराधी पकड़े गए। कुछ नहीं पकड़े गए। दुर्भाग्य से अभी तक किसी को सजा नहीं हुई। प्रखर पत्रकार, राष्ट्रवादी नेता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रताप के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी की 1931 में मात्र 40 साल की उम्र में सांप्रदायिक दंगों में हत्या कर दी गई।
आजकल कुछ खबरें बनती हैं, कुछ बनाई जाती हैं। मसलन अभी रीवा में श्री राम जन्म भूमि न्यास के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष वेदांती महाराज जो रीवा के मूल निवासी है। उनके शिष्य और पोते सीताराम दास ने अफसरों और राजनेताओं के संरक्षण में सरकारी सर्किट हाउस राज निवास में एक नाबालिक बाला के साथ दुष्कर्म किया। यह राष्ट्रीय स्तर की खबर नहीं बन पाई और यदि छुटपुट बनी भी तो वेदांती जी का नाम गायब कर दिया गया। क्योंकि भगवा वस्त्रों के नीचे की नग्नता मीडिया को दिखाई नहीं देती। वस्त्र मात्र एक आवरण है। जिससे मनुष्य और पशुओं के बीच अंतर समझ में आता है। नग्नता मनुष्य के विचारों, आचरण और कर्म में होती है। आज मुल्क में कहने के लिए पहला, दूसरा ,तीसरा , तथाकथित चौथा स्तंभ है । सच्चाई तो यह है की स्तंभ सिर्फ एक है। वह भी सत्ता के अहंकार का। जो पूरे समाज की ऐसी तैसी कर रहा है।
सत्ता ने चतुराई के साथ समाज को खंड खंड में बांट दिया है। जाति ,धर्म, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र के नाम पर सभी बंटे हुए हैं। जाति, प्रजाति, उपजाति, गोत्र ,वर्ण ,ऊंच-नीच, लिंग भेद, के आधार पर न्याय को तौला जा रहा है। यह बंटवारा लेखकों, कवियों, साहित्यकारों, पत्रकारों,वकीलों सहित बुद्धिजीवियों में भी है। सभी के अपने अपने झंडे और पंडे हैं। जगह जगह इनकी दुकानें और खाते खुल गए हैं। बेरोजगारी के चलते पत्रकारिता सबसे महफूज रोजगार का साधन बन गया है। जिसकी जनक भ्रष्ट व्यवस्था और उसकी नौकरशाही है। राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। महानगरीय कारपोरेट घरानों के खबरिया चैनल और सीधी शहर के स्थानीय चैनलों में फर्क है। कारपोरेट घरानों के महानगरीय चैनल सरकार बनाने बिगाड़ने, उन्हें महिमामंडित करने और अपना धंधा चलाने का काम करते हैं। आंचलिक पत्रकारिता पेट पर्दा चलाने तक सीमित है।
आंचलिक पत्रकारिता में जब महत्वकांक्षी लोग पेट पर्दा चलाने के बजाय राजनेताओं, जनप्रतिनिधियों को बेपर्दा करने मे जुट जाते हैं तो वही होता है, जो सीधी में हुआ है। सीधी की घटना 2 अप्रैल की है। 5 दिन बाद 7 अप्रैल को वह राष्ट्रीय खबर बन गई। वह भी तब जब कोतवाली की अभिरक्षा में अर्धनग्न अवस्था की फोटो सोशल मीडिया में वायरल हुई। जो अति निंदनीय और अशोभनीय थी। और इसी आपत्तिजनक वायरल फोटो के चलते पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने मामले पर संज्ञान लेते हुए अपना बयान जारी किया। मैं भी अपने जीवन में 40 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। 20 साल तक पूर्णकालिक, वैतनिक पत्रकारिता तथा बाद के 20 साल से स्वतंत्र रूप से लेखन कर रहा हूं। छात्र जीवन से लेकर युवावस्था तक में कुल 6 महीने जेल में रहा। जेल किसी आपराधिक कारणों से नहीं बल्कि राजनीतिक आंदोलन के कारण जाना पड़ा। कोतवाली सीधी, लॉकअप सीधी से लेकर सेंट्रल जेल रीवा तक ऐसा नहीं हुआ जो अब पुलिस कस्टडी में हो रहा है।
आखिर वजह क्या है कि हमारे घर, परिवार, समाज के ही लोग जब सफेद ,खाकी, भगवा वस्त्र धारण कर लेते हैं तो बदल क्यों जाते हैं। वह कौन सी अदृश्य शक्ति है जो इन्हें आदमी से कुछ और बना देती है। कभी-कभी अमानवीय, क्रूर, शैतान बना देती है। जब तक उस अदृश्य शक्ति को चिन्हित करके, एकजुट होकर हम-आप संघर्ष नहीं करेंगे तब तक यह सिलसिला चलता ही रहेगा…. चलता ही रहेगा……।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)