भोपाल(देसराग)। मध्यप्रदेश से राज्यसभा सदस्य और भाजपा नेता एमजे अकबर, संपत्तिया उइके और कांग्रेस के विवेक तन्खा का कार्यकाल 29 जून 2022 को खत्म हो रहा है। इन तीन सीटों में से दो पर भाजपा और एक सीट पर कांग्रेस को मौका मिलना है। राज्यसभा में पहुंचने के लिए दोनों दलों में अभी से जोर-आजमाइश शुरू हो गई है। दोनों दलों से अभी तक तीन-तीन नाम सामने आ रहे हैं लेकिन दावेदार बहुत हैं। इसलिए दोनों दलों के लिए इनके नामों का चयन इतना आसान नहीं है, क्योंकि दोनों दलों को जातिगत समीकरण भी साधना है। भले ही चुनाव आयोग की तरफ से अभी तारीखों का ऐलान ना हुआ हो लेकिन भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज लॉबिंग में जुट गए हैं।
ओबीसी और आदिवासी चेहरे पर नजर
भाजपा की तरफ से कई दावेदार कतार में हैं। भाजपा इस बार आदिवासी और पिछड़ा वर्ग को लेकर राज्यसभा में जा सकती है। हालांकि अनुसूचित जाति को लेकर भी पार्टी के सामने समस्या है। जातिगत समीकरण साधने की कोशिश में पार्टी जुट गई है। भाजपा की पहली प्राथमिकता पिछड़ा वर्ग फिर आदिवासी और इसके बाद दलित चेहरा होगा। चूंकि प्रदेश में सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी किए जाने के बाद विवाद शुरू हो गया है। इसलिए भाजपा और कांग्रेस दोनों के सामने राज्यसभा चुनाव के लिए पिछड़ा वर्ग का चेहरा भेजना मजबूरी हो गया है।
भाजपा से कई दावेदार, कांग्रेस भी पीछे नहीं
भाजपा और कांग्रेस से किसे राज्यसभा भेजा जाएगा। इसको लेकर सियासत गर्म है। इसके पहले ज्यादातर सदस्य प्रदेश के बाहर के ही रहे हैं। भाजपा की ओर से लालसिंह आर्य का नाम मजबूत माना जा रहा है। वह अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ओबीसी चेहरे में बंशीलाल गुर्जर के नाम की चर्चा है। हालांकि इसके साथ ही उमा भारती का दावा भी मजबूत माना जा रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के अलावा ग्वालियर से जयभान पवैया का नाम भी सामने आ रहा है। भाजपा सूत्रों की मानें तो एक महिला उम्मीदवार और एक पिछड़ा वर्ग का चेहरा ही पार्टी राज्यसभा भेजेगी। ऐसे में उमाभारती का दावा मजबूत हो जाता है। वहीं, कांग्रेस की बात करें तो उसके खाते में एक सीट जा रही है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक विवेक तनखा पार्टी का बड़ा चेहरा हैं और सर्वोच्च न्यायालय में भी वह कांग्रेस का पक्ष बेहतर तरीके से रखते हैं। लिहाजा फिर से विवेक तन्खा को रिपीट किया जा सकता है। इसके अलावा कांग्रेस से अजय सिंह और अरुण यादव के नाम भी तेजी से सामने आ रहे हैं।
आलाकमान करेगा फैसला
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा का कहना है कि राज्यसभा सदस्य तय करने की जिम्मेदारी केंद्रीय नेतृत्व की है। भाजपा सबका साथ सबका विकास और सबका प्रयास के मंत्र पर फैसला लेती है। वहीं प्रदेश कांग्रेस के संगठन प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर का कहना है कि राज्यसभा में कौन जाएगा, इसका फैसला केंद्रीय आलाकमान को लेना है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी यानि एआईसीसी में फैसला होगा कि किसे पार्टी राज्यसभा भेजेगी। सबको अपनी दावेदारी करने का हक है।
राज्यसभा में जाने का गणित
राज्यसभा का गणित ऐसा है कि 58 विधायकों पर एक सदस्य का चुनाव होगा। प्रदेश में कुल 230 विधायक हैं। भाजपा के विधायक 127 तो कांग्रेस के पास 96 विधायक हैं। राज्यसभा में प्रदेश की 11 सीटें हैं। इसमें कांग्रेस के राजमणि पटेल और भाजपा से कैलाश सोनी पिछड़ा वर्ग से हैं। वहीं भाजपा से 2 सीटों पर आदिवासी नेता सुमेर सिंह सोलंकी और सम्पत्तियां उइके हैं तो अनुसूचित जाति वर्ग से एल मुरुगन हैं और अल्पसंख्यक वर्ग से एमजे अकबर। बाकी सारे सदस्य सामान्य वर्ग से हैं। पिछड़ा वर्ग के चेहरे को भेजने के लिए भाजपा संगठन पर भी दबाव है, लेकिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पिछड़ा वर्ग से ही आते हैं।
भाजपा से उमाभारती का दावा मजबूत क्यों
भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री के रूप में पहचान रखने वाली उमाभारती पिछड़ा वर्ग की बड़ी लीडर हैं। वे मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। कई बार की सांसद हैं। अटल सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया। 1984 से से सियासी सफर शुरू करने वाली उमाभारती हमेशा महत्वपूर्ण पदों पर रही हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने के बाद उनके राजनीतिक सफर पर प्रश्नचिह्न लग रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस और हिंदूवादी संगठनों से नजदीक का रिश्ता रखने के कारण उन्हें फिर से एडजस्ट करना भाजपा की मजबूरी है। कुछ दिनों से वह मध्यप्रदेश में शराबबंदी को लेकर आक्रामक भूमिका में हैं। शराबबंदी की मांग को लेकर वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए नई समस्या खड़ी कर रही हैं। वह घोषणा भी कर चुकी हैं कि अगला लोकसभा चुनाव वह लड़ेंगी। ऐसे में उमाभारती को राज्यसभा में भाजपा भेज सकती है। महिला, पिछड़ा वर्ग, संघ से करीबी और भाषण देने में महारत हासिल होना कुछ ऐसे बिंदु हैं, जिससे उनका दावा काफी मजबूत माना जा रहा है।
कांग्रेस से अरुण यादव का दावा मजबूत क्यों
यूं तो कांग्रेस के खाते की रिक्त हो रही एक सीट पर वर्तमान राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा का दावा मजबूत है। लेकिन उनके स्थान पर किसी दीगर नेता को राज्यसभा में भेजने के सम्बन्ध में कांग्रेस आलाकमान तभी विचार कर सकता है जबकि सियासी गुणा-गणित में परिस्थितियां कांग्रेस के विपरीत जा रही हों। ऐसे में लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अरुण यादव का दावा कांग्रेस से मजबूत माना जा रहा है। प्रदेश के निमाड़ इलाके में उनका खासा जनाधार है। इसी कारण निमाड़ में कांग्रेस मजबूत है। एक समय निमाड़ से उनके पिता सुभाष यादव कांग्रेस के मजबूत स्तंभ रहे हैं। सुभाष यादव प्रदेश के उप मुख्यमंत्री भी रहे हैं। सहकारिता आंदोलन में सुभाष यादव सबसे आगे रहे थे। अरुण यादव लोकसभा सदस्य रहे हैं और केंद्रीय राज्यमंत्री भी रहे। दो बार लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस में अरुण यादव अहम नेता हैं। हाल ही में उनकी सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें राज्यसभा भेजा जा सकता है। उनका नाम नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी चल रहा है।
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