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Thursday, Dec 7, 2023
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सिंधिया के मुकाबले कांग्रेस खाली हाथ, नहीं मिला विकल्प

ग्वालियर(देसराग)। साल 2023 में सत्ता के सियासी संग्राम को फतह करने के लिए जहां भाजपा ने अपने सियासी मुहरे फिट करना शुरु कर दिए हैं, तो वहीं कांग्रेस में अभी नेतृत्व के सवाल पर क्षत्रपों के बीच जंग छिड़ी हुई है। हालांकि कांग्रेस एक बार फिर से 2018 विधानसभा चुनाव के परिणामों को दोहराने के लिए जमीनी स्तर पर कमर कस रही है। लेकिन कांग्रेस के सामने बड़ा सवाल यह है कि ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस की तरफ से ऐसा कौन सा चेहरा होगा जो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुकाबला करने का माद्दा रखता है।
मध्यप्रदेश में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। भाजपा और कांग्रेस के नेता चुनावी समर में जनता को रिझाने के लिए हर संभव प्रयास में जुटे हैं लेकिन पूर्व में कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब से कांग्रेस का हांथ छोड़ भाजपा का दामन थामा है तब से ग्वालियर चंबल-अंचल में कांग्रेस लगभग नेतृत्व विहीन हो चुकी है। यही कारण है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सिंधिया का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस किस नेता को सामने करे यह उसके लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है
ग्वालियर-चंबल मतलब सिंधिया!
अब-तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस के स्थापित नेता थे। 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष भी बनाया था। सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल की ज्यादातर सीटें जीती थी। ग्वालियर चंबल संभाग की 34 सीटों में से 2018 के चुनावों में कांग्रेस को 27 सीटों पर विजय हासिल हुई थी लेकिन सिंधिया ने जब कांग्रेस का हाथ छोड़ा तब अंचल के 15 विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं। उपचुनाव में भी 8 सीटों पर भाजपा और 7 सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी।
कांग्रेस बोली, जनता तय करे विकल्प
ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने से बाद कांग्रेस के पास अंचल में अब कोई बड़ा चेहरा नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से सिंधिया की जगह कौन चेहरा होगा? ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस के कद्दावर नेता और विधायक डॉ.गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री लाखन सिंह, पूर्व मंत्री केपी सिंह और युवा चेहरे और दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह ग्वालियर-चंबल संभाग से आते हैं लेकिन कांग्रेस अभी तक इनमें से किसी का नाम तय नहीं कर पाई है। ऐसे में कांग्रेस ने सिंधिया के मुकाबले चुनाव में टिकट देने का फैसला जनता के भरोसे छोड़ दिया है।
सियासत में ग्वालियर-चंबल का मुकाम!
राजनीति के जानकारों की मानें तो मध्य प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर-चंबल का इलाका अहम माना जाता है। यहां 8 जिलों में विधानसभा की 34 सीटें हैं। ऐसे में जो भी राजनीतिक दल इन सीटों में ज्यादा सीटें जीतता है उसकी सरकार बनने के चांस ज्यादा होते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में 34 सीटों में कांग्रेस 26 सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा 7 सीटें ही अपने खाते में डाल पाई थी, जबकि 1 सीट बहुजन समाज पार्टी को मिली थी।

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