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Thursday, Dec 7, 2023
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तो क्या कमलनाथ को मिल गया नेता प्रतिपक्ष?

प्रदीप भटनागर
भोपाल(देसराग)। गांव देहात में एक कहावत है, ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता गया। यह कहावत इन दिनों मध्यप्रदेश कांग्रेस के हालातों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। कांग्रेस की गुटबाजी और आपसी कलह के कारण ही प्रदेश से कांग्रेस का सफाया हो गया है। आपसी खींचतान व गुटबाजी के कारण ही कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के पतन और ज्योतिरादित्य सिंधिया की विदाई के बाद कांग्रेस संगठन में जो खालीपन आया है उसकी भरपाई करने के लिए प्रदेश कांग्रेस मुखिया कमलनाथ की तमाम कोशिशें हाल फिलहाल तो परवान चढ़ती दिखाई नहीं दे रही हैं। अलबत्ता सियासी गलियारों में इस बावत चर्चा का बाजार गर्म है कि कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाने और साल 2023 के चुनावी संग्राम को फतह करने के लिए कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी छोड़ने का फैसला कर लिया है और इसके लिए उन्होंने कांग्रेस आलाकमान से जल्द दीगर नेता को नेता प्रतिपक्ष की कमान सौंपने का आग्रह किया है।
अब सवाल यह?
अब सवाल यह उठ रहा है कि जब कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी छोड़ना ही चाहते हैं तो पहले ही पार्टी के सबसे वरिष्ठ विधायक डाक्टर गोविन्द सिंह को यह आसंदी क्यों नहीं सौंपी, जबकि नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किए जाने को लेकर डाक्टर गोविन्द सिंह के नाम का पत्र साल 2020 में 25 अप्रैल को ही बनकर तैयार हो चुका था। फिर यह पत्र विधानसभा सचिवालय क्यों नहीं भेजा गया? क्या वजह और परिस्थितियां रहीं कि कमलनाथ द्वारा डाक्टर गोविन्द सिंह को नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किए जाने की सूचना फोन पर देने और तत्काल भोपाल बुलाने के बावजूद डाक्टर गोविन्द सिंह के स्थान पर अपने नाम की अनुशंसा भेज दी?
खुद सेनापति बने रहने की चाहत?
तो इस सवाल का जबाव जानने के लिए दो साल पीछे जाना होगा। जब 20 मार्च 2022 को कमलनाथ सरकार का पतन हुआ और शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में सत्ता की बागडोर संभाली। इसके बाद सदन में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किए जाने की बारी आई तो पहले कमलनाथ द्वारा पार्टी के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी विधायक डाक्टर गोविन्द सिंह को नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किए जाने का निर्णय लिया। इसके पीछे की वजह यह थी कि ग्वालियर-चम्बल अंचल में सिंधिया के भाजपा में जाने से पार्टी पूरी तरह बिखर चुकी थी। या यूं कहें कि मध्य प्रदेश कांग्रेस का सिंधिया की वजह से सर्वाधिक नुक्सान ग्वालियर-चम्बल अंचल में ही हुआ। पार्टी के पुराने नेताओं ने कमलनाथ को सलाह दी कि भविष्य में इस इलाके में कांग्रेस को जिंदा बनाए रखने के लिए डाक्टर गोविन्द सिंह को नेता प्रतिपक्ष का दायित्व सौंप देना चाहिए। इस सुझाव को मानकर कमलनाथ ने तुरत-फुरत डाक्टर गोविन्द सिंह से फोन पर चर्चा की। यह 22 अप्रैल की बात है। कमलनाथ ने डाक्टर गोविन्द सिंह को सारी स्थिति से अवगत कराते हुए नेता प्रतिपक्ष का दायित्व संभालने की बात कही लेकिन उन्होंने इस जिम्मेदारी को लेने से पहले तो इंकार किया परन्तु कमलनाथ के ज्यादा आग्रह पर अपनी सहमति दे दी। कमलनाथ ने डाक्टर गोविन्द सिंह को भोपाल आने को कहा। 25 अप्रैल को डाक्टर सिंह भोपाल पहुंचे। लेकिन यहां आने से पहले ही कमलनाथ की एक कूटरचित योजना ने डॉ.गोविंद सिंह के अरमानों पर पानी फेर दिया। नाथ की यह कूटरचित योजना थी, डॉ.गोविंद सिंह के खास मित्र कांग्रेस विधायक केपी सिंह के जरिए डॉ.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के फैसले का विरोध कराना। इस विरोध के जरिए नाथ ने एक तीर से दो निशाने किए, एक तो नेता प्रतिपक्ष के नाम का ऐलान जो 25 अप्रैल को किया जाना था, टाल दिया गया। दूसरा बिना कहे डॉ.गोविंद सिंह को यह संदेश दे दिया गया कि उनके नेता प्रतिपक्ष न बन पाने के लिए केवल और केवल दिग्विजय सिंह जिम्मेदार हैं। दिग्विजय नहीं चाहते कि वह नेता प्रतिपक्ष बनें।
पचौरी की महत्वपूर्ण भूमिका
नेता प्रतिपक्ष का ऐलान 25 अप्रैल 2020 को नही हो सका इसकी मुख्य वजह पूर्व में सुरेश पचौरी का वीटो लगाना रहा। पचौरी ने ही डॉ.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के विधायक दल के फैसले का पत्र विधानसभा सचिवालय जाने की जानकारी मिलते ही कमलनाथ को डॉ.गोविंद सिंह का नाम भेजने पर अपनी आपत्ति जताते हुआ गुटीय समीकरण समझाया। जिसके बाद ही कमलनाथ ने अपने फैसले को बदल दिया।
अतीत पीछा नहीं छोड़ रहा
प्रदेश में कभी अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, सुभाष यादव के गुट के साथ कमलनाथ व माधवराव सिंधिया की जोड़ी में गुटबाजी हुआ करती थी। अर्जुनसिंह का स्थान दिग्विजय सिंह ने लिया और उसके बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक अलग गुट हुआ करता था, लेकिन विधानसभा चुनावों में कमलनाथ को सीएम बनाने में दिग्विजय सिंह ने सहयोग दिया तो कमलनाथ ने सिंधिया का साथ छोड़ दिया। लेकिन कमलनाथ सरकार के पतन की वजह बने दिग्विजय सिंह सरकार गिर जाने और सिंधिया के कांग्रेस को अलविदा कहते ही प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में दो ही धड़े रह गए हैं, एक कमलनाथ और दूसरा दिग्विजय सिंह और अब सत्ता की लड़ाई में कमलनाथ औऱ दिग्विजय सिंह आमने-सामने आ गए हैं। इन दोनो गुटों के बीच आपसी खींचतान इस कदर बढ़ गई है कि इनकी लड़ाई अब सड़क पर आ गई है।
अगली पीढ़ी है इस तकरार का कारण
कांग्रेस में सिंधिया के रहते कमलनाथ-दिग्विजय एक साथ दिख रहे थे। सिंधिया के रहते इनके बेटे प्रदेश में आगे नहीं बढ़ सकते थे। लेकिन अब सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम लिया तो अब कांग्रेस में कमलनाथ व दिग्विजय सिंह ही बचे जो अपने बेटों को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इन दोनों के बीच प्रतिस्पर्द्धा चल रही है। एक ओर दिग्गी अजय सिंह को दरकिनार कर बेटे जयवर्द्धन के लिए प्रदेश कांग्रेस में वर्चस्व कायम करने के लिए तैयार है। वहीं कमलनाथ भी अपने बेटे व छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ को प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते हैं।
तो अब आगे क्या?
माना जा रहा है कि प्रदेश को जल्द ही नया नेता प्रतिपक्ष मिल सकता है। इसकी वजह मानी जा रही है की पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जल्द ही इस पद से इस्तीफा देने वाले हैं। माना जा रहा है कि वे सिर्फ इस पद के लिए नया नाम तय होने का इंतजार कर रहे हैं। इस पद के लिए सुगबुगाहट शुरू होते ही अब कांग्रेस में सियासी सरगर्मियां तेजी से बढ़ने लगी हैं। हालांकि यह तय है कि नया नेता प्रतिपक्ष का नाम नाथ की पंसद से तय किया जाएगा। इसकी वजह से अब इस पद के दावदारों की सक्रियता भी भोपाल से लेकर दिल्ली तक बढ़ना शुरू हो गई है। गौरतलब है कि इसके पहले भी कमलनाथ कह चुके हैं कि पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष को उन्होंने नया नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बारे में बता दिया है, अब फैसला उनको ही करना है। इधर, कमलनाथ द्वारा सोमवार को अपने भोपाल स्थित आवास पर अपनी सरकार में मंत्री रहे नेताओं की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक का उद्देश्य क्या है, यह तो अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि इसमें नए नेता Omprakash के बारे में चर्चा की जा सकती है
गोविन्द या सज्जन “नेता प्रतिपक्ष” कौन?
सूबे में नया नेता प्रतिपक्ष कौन होगा? फिलहाल अभी यह तय नही है, लेकिन इस पद के लिए करीब आधा दर्जन नेताओं की दावेदारी मानी जा रही है। इनमें पार्टी के वरिष्ठ विधायकों में शामिल डॉ.गोविंद सिंह, सज्जन सिंह वर्मा और विजयलक्ष्मी साधौ के नाम तो शामिल हैं ही साथ ही कहा जा रहा है कि संभव है की पार्टी डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में जातिगत समीकरण साधने के लिए इस पद पर किसी आदिवासी या पिछड़ा वर्ग से आने वाले युवा विधायक को भी कमान दी जा सकती है। इनमें जीतू पटवारी का नाम मुख्य रूप से लिया जा रहा है।
गोविंद की मजबूत दावेदारी की वजह
डॉ. गोविंद सिंह अभी मप्र विधानसभा में पार्टी के सचेतक हैं। वे लगातार सातवीं बार विधायक निर्वाचित होने वाले एकमात्र कांग्रेस के विधायक हैं। उनके बाद छह बार जीतने वाले केपी सिंह हैं, हालांकि केपी सिंह नाथ सरकार में मंत्री नहीं बन सके थे। डॉ.गोविंद सिंह को विधानसभा में सरकार पर तीखे हमलों के लिए जाना जाता है। उनकी ग्वालियर-चंबल अंचल में मजबूत पकड़ मानी जाती है। यह वो अंचल है जिसमें कांग्रेस को एक ऐसे ही जनाधार वाले नेता की तलाश कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा में शामिल हुए केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के विकल्प के रुप में बनी हुई है। इस अंचल में कांग्रेस के पास उनके अलावा कोई अन्य बड़ा प्रभावशाली नेता भी नही है।
मैं संत नहीं
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने सम्बन्धी बयान पर नेता प्रतिपक्ष पद के प्रबल दावेदार और पूर्व मंत्री डॉ.गोविंद सिंह ने कहा कि पार्टी मुझे जो जिम्मेदारी देगी मैं तैयार हूं। मैं संत नहीं हूं, अगर होता, तो हिमालय पर होता। मैं अपनी किस्मत और मेहनत पर विश्वास करता हूं। डॉ.गोविंद सिंह ने कहा कि पार्टी में कोई मतभेद नहीं है। दिग्विजय सिंह, अरुण यादव, अजय सिंह राहुल अब एक हैं। कांग्रेस पार्टी में अपने विचार रखने की आजादी है।

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