ग्वालियर(देसराग)। सोमवार को ग्वालियर की सेंट्रल जेल में बंद एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष से मुलाकात करने पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की इस मुलाकात की गाज तो किसी पर गिरना ही थी और हुआ भी वही, सेंट्रल जेल ग्वालियर के सुपरिंटेंडेंट मनोज साहू आनन-फानन में निलंबित कर दिए गए। दिलचस्प यह है कि इस निलंबन की घोषणा के लिए प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को मीडिया के सामने आना पड़ा।
निलंबन की घोषणा करते वक्त गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने लगे हाथ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी नसीहत दे दी कि वे 10 सालों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं और उन्हें नियमों और प्रक्रियाओं की जानकारी होनी चाहिए थी। जेल अधीक्षक मनोज कुमार साहू इसलिए निलंबित किए गए क्योंकि इस मुलाकात के वीडियो और फोटो जेल से बाहर आ गए। और सरकार ने बगैर देर किए जेल अधीक्षक को निलंबित कर दिया। वैसे इस पूरे मामले में दो बातें साफ हैं। पहली तो यह कि यह जेल अधीक्षक का यह विवेकाधिकार है कि वह जेल में बंद कैदी अथवा विचाराधीन कैदी को जेल में कब और कहां, किससे मुलाकात कराए। दूसरी बात इस मुलाकात के फोटो और वीडियो कैसे बाहर आए, यह जांच का विषय है। इसे लापरवाही माना जा सकता है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम सरकार ने जो तत्परता दिखाई और खुद गृहमंत्री को इसकी घोषणा मीडिया के सामने करनी पड़ी, उससे यह संकेत जाता है कि सरकार ने जो कदम उठाया है वह इरादतन है। जहां तक गृह मंत्री द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री को जो नसीहत दी गई उस पर कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने कहा कि प्रदेश के गृहमंत्री जिस तरह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर निशाना साध रहे हैं वह समझ लें कि वह हमेशा सत्ता में नहीं रहेंगे। उन्होंने इस मुलाकात को जेल मैनुअल के मुताबिक बताया है।
बेहतर होता फोटो और वीडियो वायरल होने की घटना की जांच होती और फिर जेल अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही की जाती लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस घटना को लेकर एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष और उनके साथियों को जेल भेजा गया है। वह घटना विरोध प्रदर्शन के दौरान जलते हुए पुतले की छीना झपटी की थी जिसमें एक पुलिस इंस्पेक्टर झुलस गए थे। इस मामले में पुलिस ने घायल सब इंस्पेक्टर की रिपोर्ट पर एनएसयूआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया है। यह मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है।
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