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Tuesday, Sep 26, 2023
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अपनी सरकार में भी कुठियाला को नहीं मिली राहत!

भोपाल(देसराग)। सरकार के बेहद करीबी माने जाने वाले माखनलाल चतुवेर्दी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बीके कुठियाला की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ना तय है। इसकी वजह है उनके कार्यकाल में हुए घोटाले की जांच करने वाली राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) की ओर से पेश की गई खात्मा रिपोर्ट को अदालत द्वारा नामंजूर कर दिया जाना। इस मामले में अब अदालत ने प्रकरण की जांच नए सिरे से करने के निर्देश दिए हैं।
अदालत ने कहा कि भर्ती के संबंध में दस्तावेजों और नियमों के संबंध में स्पष्ट तौर पर जांच करें। दरअसल ईओडब्ल्यू ने एमसीयू में की गई अवैध नियुक्तियों और अवैधानिक व्यय के मामले में 2019 में एफआईआर दर्ज की थी। घोटाले की शिकायत तत्कालीन मुख्य सचिव से की गई थी।
मुख्य सचिव के पत्र के आधार पर प्रकरण की जांच के लिए 18 जनवरी 2019 को एक समिति बनाई गई थी। समिति में तत्कालीन आईएएस अफसर एम. गोपाल रेड्डी, भूपेंद्र गुप्ता और संदीप दीक्षित को शामिल किया गया था। समिति ने 2019 को अपनी रिपोर्ट एमसीयू के कुल सचिव दीपेंद्र सिंह बघेल को सौंपी थी। एमसीयू ने उस रिपोर्ट को कार्रवाई के लिए ईओडब्ल्यू को भेजा था। ईओडब्ल्यू ने प्रकरण दर्ज कर जांच शुरू की थी। मामले में कुठियाला समेत 20 लोगों को नामजद आरोपी बनाया गया था। जांच समिति ने माना था कि कुठियाला ने शराब पीने तक के बिल का भुगतान एमसीयू से हासिल किया था। कुठियाला 2003 से 2018 तक एमसीयू के कुलपति रहे हैं। कुठियाला से कई बार इस बारे में पूछताछ भी की गई थी।
जांच में यह माना गया था कि कुठियाला ने राशि की बंदरवाट की है। नियमों को दरकिनार कर देशभर के तमाम संस्थानों को राशि आवंटित की थी। एमसीयू में भर्ती करने में भी भारी अनियमितता बरती गई थी। नियुक्तियों और पदोन्नति में यूजीसी के नियमों का पालन नहीं किया गया। एमसीयू में कुल 18 नियुक्तियां की गई थी, जिन्हें जांच में अवैध माना गया था। घोटाले को साबित करने वाले तमाम दस्तावेज भी जुटाए गए थे। खास बात यह कि पूरे दस्तावेज खुद एमसीयू के तत्कालीन अधिकारियों ने दिए थे। उन्हीं दस्तावेजों के आधार पर कुठियाला समेत अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने की तैयारी थी। जांच एजेंसी ने तमाम दस्तावेज तब जुटाए थे, जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। मध्यप्रदेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद जांच एजेंसी के सुर बदल गए। जांच एजेंसी ने जब्त किए गए तमाम साक्ष्यों और दस्तावेजों को झुठलाते हुए कहा कि प्रकरण में पर्याप्त साक्ष्य मौजूद नहीं हैं।
इसी को आधार बनाकर जांच एजेंसी ने अदालत में खात्मा रिपोर्ट पेश कर दी थी। अदालत में खात्मा रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद भूपेंद्र गुप्ता, संदीप दीक्षित, आशुतोष मिश्रा ने अदालत में अर्जी दाखिल कर खात्मा रिपोर्ट पर आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि प्रकरण में पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं और जांच एजेंसी सरकार के दबाव में साक्ष्यों को दरकिनार कर रही है। विशेष न्यायाधीश अमित रंजन समाधिया की अदालत ने जांच एजेंसी के अफसरों और गवाहों की ओर से पेश किए गए तथ्यों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया है।
कुठियाला की ओर से अदालत को यह बताया गया कि हमने एमसीयू की राशि का उपयोग किया था, लेकिन बाद में हमने अपने बैंक खाते से राशि लौटा दी थी। अदालत ने माना कि राशि लौटा देने मात्र से अपराध समाप्त नहीं हो जाता है। अपराध तब कारित हो गया था, जब सरकारी धन का उपयोग किया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि कोई भी लोक सेवक सरकारी लोकधन का दुरुपयोग नहीं कर सकता है। अदालत ने खात्मा रिपोर्ट को अमान्य करते हुए प्रकरण की केस डायरी नए सिरे से जांच करने के लिए ईओडब्ल्यू को सौंप दी है।

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