भोपाल(देसराग)। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया कमलनाथ को कांग्रेस का नेतृत्व दिए जाने सम्बन्धी सवाल पर बीते दिनों कांग्रेस के एक बड़े नेता ने यह कहते हुए सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया था कि कमलनाथ को नेतृत्व देना कांग्रेस की मजबूरी है। अर्थात मध्य प्रदेश में कमलनाथ के सिवाए कांग्रेस में एक भी ऐसा क्षत्रप नहीं है जो चुनावी रण में आर्थिक संसाधन और सुविधाएं कांग्रेस के लिए जुटा सके। हालांकि कांग्रेस के इस क्षत्रप ने बाद में संगठन के दबाव में आकर अपने दिए बयान से पल्ला झाड़ लिया था लेकिन सियासी फिजाओं में छोड़े गए सवाल ने यह तो प्रमाणित कर ही दिया कि कमलनाथ कांग्रेस की मजबूरी हैं।
यही वह वजह है कि कांग्रेस ने मप्र में कमलनाथ की अगुवाई में ही अगले विधानसभा चुनाव में जाने का तय किया है। उनके नाम पर हाल ही में पार्टी के सभी प्रदेश के बड़े नेताओं में एक राय बन चुकी है। इसके लिए पार्टी में रायशुमारी भी की जा चुकी है। नाथ के नाम पर एकमत होने की अपनी वजहें भी हैं। वे कांग्रेस की चुनावी कसौटी पर पूरी तरह से फिट बैठते हैं, जिसकी वजह से ही उनके नाम पर ही दांव लगाना पार्टी के लिए मजबूरी भी है और फायदे भरा निर्णय भी।
दरअसल प्रदेश में कांग्रेस के कई क्षत्रप हैं और पार्टी में अलग-अलग गुट हैं जिसकी वजह से पार्टी डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कोई भी रिस्क लेने की स्थिति में नही है। वैसे भी प्रदेश की राजनीति में कमलनाथ सबसे वरिष्ठ नेताओं में शामिल हैं और उनकी दिल्ली दरबार में मजबूत पकड़ के चलते कांग्रेस में इस समय उनके खिलाफ विरोध का झंडा उठाने की हिम्मत किसी में नहीं दिखती है। वे प्रदेशाध्यक्ष के साथ अभी नेता प्रतिपक्ष के पद पर भी हैं। इसकी वजह से वे अब भी कांग्रेस के प्रदेश में सबसे मजबूत और बड़े नेता बने हुए हैं।
इस वजह से भी पार्टी में उनके विरोधी माने जाने वाले नेताओं की चुप रहने की मजबूरी है। इस वजह से न केवल सभी नेता उनकी मर्जी के हिसाब से चलेगें, बल्कि एक भी दिखाई देंगे, जिसका फायदा पार्टी को भी मिलेगा। वैसे भी कमलनाथ ऐसे नेता है, जिनके पास न केवल सत्ता का भरपूर अनुभव है बल्कि जाति के तौर पर भी उनकी छवि न्यूट्रल नेता की भी है। यही नहीं वे ऐसे नेता हैं जिनके पास इस समय चुनावों के लिए संसाधन जुटाने की क्षमता है और आर्थिक मैनेजमेंट में भी पार्टी के पास उनका कोई तोड़ नही है। राजनैतिक पंडित भी मानते हैं कि प्रदेश में भाजपा को सबसे कठिन चुनौती कमलनाथ ही दे सकते हैं। इसकी एक और वजह है उनकी छवि सॉफ्ट हिंदुत्व की होना। इस कारण से भाजपा चुनाव में उन पर हिंदुत्व को लेकर कोई हमला नहीं कर पाएगी। कमलनाथ को प्रदेश में कांग्रेस की बागडोर ऐसे समय दी गई थी जब पार्टी में सभी गुटों को साथ लेकर चलने की चुनौती बनी हुई थी। लगातार डेढ़ दशक से सत्ता से बाहर होने की वजह से उनके सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के खोए हुए जनाधार को वापस लाने की थी। उन्होंने इस मामले में सफलता हासिल करते हुए 2018 के विधानसभा चुनाव में खुद को न केवल खरा साबित किया, बल्कि पार्टी को भी सत्ता में लाने में सफल रहे।
उनकी अगुवाई में ही पार्टी ने भाजपा के बेहद मजबूत किले को तोड़ दिया था। यह बात अलग है कि उनके मुख्यमंत्री रहते ही पार्टी के युवा चेहरे व स्टार प्रचाकर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। और उनकी सरकार गिर गई। इसके बाद भी कमलनाथ ने हार नहीं मानी और लगातार पार्टी को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। यह बात अलग है कि उन पर लोगों से कम मिलने और सड़क मार्ग से दौरे कम करने के आरोप लगते रहते हैं, लेकिन इसकी भरपाई उनकी मजबूत टीम लगातार बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं से संपर्क करने से कर देती है। कमलनाथ का साफ कहना है कि लड़ाई भाजपा के मजबूत संगठन से है। इस कारण बूथ स्तर तक पार्टी को मजबूत किए बिना भाजपा का मुकाबला किया जा सकता। इसी कारण कांग्रेस की टीम पूरी तरह से बूथ स्तर तक कार्यकर्ता खड़ी करने में लगी है।
नाथ ने सबको एकजुट कर संगठन को तैयार किया है। नाथ ने मुख्यमंत्री रहते सरकारी व प्राइवेट सेक्टर में प्रदेश के मूल निवासियों को रोजगार देने में प्राथमिकता देने की बात जोर-शोर से की थी। इससे बेरोजगार युवा उनकी ओर आकर्षित हो सकते हैं। हालांकि भाजपा ने इसका काट के लिए युवाओं को रोजगार देने के लिए नई नीति लेकर आई है। साथ ही हर माह रोजगार मेले लगाए जा रहे हैं।
पहली बार डेढ़ साल पहले चुनावी मोड में
मप्र के इतिहास में यह पहला मौका है जब कांग्रेस डेढ़ साल पहले ही चुनावी मोड में आयी है। अन्यथा कांग्रेस की पुरानी पंरपरा है कि वह चुनाव सिर पर आने के बाद ही सक्रिय होती रही है। मप्र कांग्रेस ने अभी से चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के निवास पर हाल ही में हुई दिग्गज नेताओं की बैठक में उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने के फैसले के बाद नाथ ने सभी नेताओं को साथ लेकर चलने का तय किया है। यही वजह है कि इसके बाद उनके द्वारा वरिष्ठ नेताओं की एक समिति बना दी है, जो सभी तरह के सामूहिक रुप से फैसले लेगी। इस समिति के अध्यक्ष स्वयं कमलनाथ हैं।
हनुमान भक्त की है पहचान
कमलनाथ सभी समुदायों के लिए सर्वमान्य नेता माने जाते हैं। उनकी छवि हनुमान भक्त के रुप में है। छिंदवाड़ा में 101 फीट की हनुमान जी की मूर्ति उनके द्वारा स्थापित करवायी गई है। जिसकी वजह से हिंदू वोटर्स को भी साधना आसान है। हाल ही में पार्टी ने रामनवमी और हनुमान जयंती पर अपने पदाधिकारियों, विधायकों एवं कार्यकर्ताओं को रामलीला, सुंदरकांड एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने के निर्देश दिए हैं। कांग्रेस पार्टी में इस तरह की हिम्मत करना मुश्किल माना जाता है।
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