देसराग डेस्क
भारतीय जनता पार्टी के सर्वमान्य नेता नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पिता और पुत्र दोनों को चुनावी राजनीति में शामिल नहीं होने देंगे। स्थिति इससे पहले भी स्पष्ट थी। मध्यप्रदेश में आकाश विजयवर्गीय को टिकट दिलाने के लिए कैलाश विजयवर्गीय को सत्ता छोड़ संगठन की सेवा में जाना पड़ा था। अब सवाल यह है कि क्या 2023 के चुनाव में भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन होगा। अपने पुत्र के लिए कितने नेता कुर्सी छोड़ेंगे।
कैलाश विजयवर्गीय बलिदान दे चुके हैं, लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे परंतु अब संगठन का काम करेंगे। शिवराज सिंह चौहान बलिदान नहीं देंगे, पिछले चुनाव में कार्तिकेय ने त्याग का ऐलान कर दिया था। उन्हें भाजपा में ना तो कोई पद चाहिए और ना ही टिकट। वह अपने पिता और किरार समाज के लिए काम कर रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुत्र महाआर्यमन सिंधिया अपने जन्मदिन के मौके पर कुर्ता पहन चुके हैं। ग्वालियर के महल जयविलास पैलेस से ऐलान हो चुका है। किसी ऐसी सीट की तलाश की जा रही थी, जहां से रिकॉर्ड मतों से युवराज की जीत सुनिश्चित की जा सकती। देखना रोचक होगा कि अब महाराज क्या करेंगे। गोपाल भार्गव का सिर्फ एक ही सपना था। हाथ पकड़ कर अपने बेटे को विधानसभा में ले जाएं। अब तो उम्मीद भी टूट गई है। अभिषेक भार्गव को चुनाव लड़ाया तो हो सकता है विधायक बन जाए, लेकिन मंत्री पद नहीं मिलेगा। 2023 में गोपाल भार्गव को टिकट मिलेगा या नहीं, इसको लेकर भी कंफ्यूजन है।
शिवराज सरकार में गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे नरोत्तम मिश्रा के सम्बन्ध में सियासी गलियारों में चर्चा है कि प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता कि नरोत्तम मिश्रा अपने पुत्र सुकर्ण मिश्रा के लिए सत्ता में अपनी पोजीशन छोड़ दें। वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं। अतः संभावना जताई जा रही है कि चिरंजीव को इस बार भी बैक ऑफिस संभालना पड़ेगा। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अपने बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार कर रहे हैं। जिस दिन पार्टी या फिर परिस्थितियां चुनावी राजनीति से बाहर करेंगी, उस दिन देवेंद्र प्रताप को आगे कर दिया जाएगा।
कमोवेश यही हालात भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रभात झा के साथ हैं। उनके साथ भी पुत्र के लिए बलिदान का प्रश्न ही नहीं उठता, पार्टी ने रिटायर कर दिया है। संगठन का काम कर रहे हैं। अब तो सिर्फ एक मनोकामना है। सुपुत्र तुष्मुल झा के लिए कुछ अच्छा हो जाए। टिकट मिले ना मिले लेकिन पावर मिल जाए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के सिपहसालार और शिवराज सरकार में जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट को भाजपा में अभी आए 5 साल पूरे नहीं हुए। उनके साथ एक सुविधाजनक पहलू यह है कि उनके पुत्र के बारे में टिकट का फैसला महाराज को करना है। दरबार में सिलावट की उपस्थिति बनी रहे इतना ही काफी है। मौका लगा तो इंदौर नगर निगम का दांव खेलेंगे। राज्य सरकार के राजस्व और परिवहन जैसे भारी भरकम विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे गोविंद सिंह राजपूत भी अपने पुत्र को सियासी पिच पर चौक्के-छक्के लगाते देखने का सपना देखते हैं। यहां भी फैसला महाराज को करना है। सुपुत्र आकाश सिंह राजपूत को जनपद पंचायत या जिला पंचायत में अध्यक्ष पद मिल जाए। बस इतनी ही तमन्ना है। 75 पार की तलवार का शिकार हो चुके भाजपा के वरिष्ठ नेता गौरीशंकर शेजवार भी चुनावी युद्ध में शहीद हो चुके हैं। 2018 के चुनाव में कैलाश विजयवर्गीय की तरह इन्होंने भी अपने बेटे मुदित शेजवार को अपने हिस्से का टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया था लेकिन शायद होमवर्क पक्का नहीं था। पहले ही इलेक्शन में मुदित भैया का पॉलीटिकल एनकाउंटर हो गया। अब तो सांची सीट पर डॉक्टर प्रभु राम चौधरी का कब्जा है।
भाजपा नेता गौरीशंकर बिसेन भी अपनी बेटी मौसमी बिसेन के टिकट के लिए लंबे समय से लॉबिंग कर रहे हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में काफी किरकिरी हो गई थी। इस बार भी प्रयास करेंगे। बाकी फैसला पार्टी को करना है।
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