जल को तरसे जंगल और जानवर, नौरादेही अभयारण्य में सूखे तालाब और नाले
सागर(देसराग)। मानसून में हुई कम बारिश और भीषण गर्मी के चलते इन दिनों आम आदमी को तो परेशानी हो ही रही है। इसके अलावा जंगली जानवरों को भी पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े नौरादेही अभयारण्य में जल संकट गहराया हुआ है, जिसके तहत करीब 10 से 12 हजार वन्यजीवों वाले अभयारण्य में अप्रैल माह में जल संकट के हालात बन गए हैं। नौरादेही अभयारण्य से गुजरने वाली बरसाती नदियां और नाले सूख गए हैं, अब अभयारण्य प्रबंधन टैंकरों के माध्यम से वन्यजीवों के लिए पानी के इंतजाम कर रहा है, लेकिन ये नाकाफी साबित हो रहे हैं। अब हालात को देखते हुए वन्य प्राणी अभयारण्य से पलायन कर आबादी की तरफ रुख कर सकते हैं।
पानी की तलाश में भटक रहे वन्यजीव
हजारों की संख्या में वन्यजीवों वाला नौरादेही अभयारण्य इन दिनों जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहा है। पिछले बरसात के सीजन में कम बारिश होने और मौजूदा साल में समय के पहले भीषण गर्मी होने के कारण अभ्यारण्य के प्राकृतिक जल स्रोत लगभग सूख गए हैं। अभयारण्य से गुजरने वाली नदियां और नाले ज्यादातर बरसाती हैं, जिनमें अब पानी नहीं बचा है। नौरादेही अभयारण्य से निकलने वाली और वन्य प्राणियों की प्यास बुझाने में अहम भूमिका निभाने वाली बामनेर नदी और व्यारमा नदी सूख गई है। इस स्थिति में वन्यजीवों को अपनी प्यास बुझाने के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। प्यास से व्याकुल वन्यजीव पानी की तलाश में भटकते हुए दिखाई दे रहे हैं।
पानी की कमी से आबादी को भी खतरा
अभयारण्य के अंदर जल संकट की स्थिति बनने के कारण आसपास की आबादी को भी खतरा बढ़ गया है। दरअसल पानी खत्म होने की स्थिति में जंगली जानवर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं और अक्सर आबादी वाले इलाके की तरफ रुख कर देते हैं। नौरादेही अभयारण्य के आसपास करीब 300 गांव हैं, जिनमें आम तौर पर जंगली जानवरों का खतरा रहता ही है, लेकिन गर्मियों के मौसम में ये खतरा काफी बढ़ जाता है। खासकर पानी की तलाश में खतरनाक जंगली जानवर आबादी की तरफ रूख करते हैं और कई बार इंसानों पर हमला भी कर देते हैं, वहीं दूसरी तरफ पानी की तलाश में भटकते हिरण, चीतल और नीलगाय जैसे जानवर शिकारियों के हत्थे भी चढ़ जाते हैं।
प्रबंधन ऐसे कर रहा है पानी के इंतजाम
नौरादेही अभयारण्य के एसडीओ एसआर मलिक का कहना है कि पिछले साल कम बारिश होने के कारण वैसे भी पानी की समस्या थी, वहीं अब गर्मी के चलते ये समस्या और भी ज्यादा बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि इस बार स्थिति ज्यादा चिंताजनक है, अभयारण्य का क्षेत्रफल काफी ज्यादा है और करीब 6 रेंज के भीतर यह अभयारण्य बंटा हुआ है। पानी का इंतजाम करने के लिए अभयारण्य के अंदर कृत्रिम तरीके से गड्ढे तैयार किए गए हैं, जिनमें नियमित रूप से पानी भरवाया जा रहा है। एक रेंज में पानी का इंतजाम करने के लिए 2 दिन का समय लगता है, टैंकरों के माध्यम से अलग-अलग समय पर अलग-अलग रेंज में पानी भिजवाया जा रहा है। मलिक ने कहा कि गड्ढों में पानी भरा जा रहा है, जिससे जंगली जानवरों की प्यास बुझाई जा सके। हमारी कोशिश है कि जानवरों को पानी के लिए भटकना ना पड़े और वह आबादी की तरफ रुख ना करें।
इसलिए खास है नौरादेही अभयारण्य
मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा वन्य जीव अभयारण्य है। अभयारण्य की स्थापना 1975 में की गई थी, यह अभयारण्य सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले के अंतर्गत आता है। 1197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ ये अभयारण्य इसलिए भी खास है क्योकि इसमें करीब 10 से 12 हजार वन्य जीव निवास करते हैं, इसके अलावा नौरादेही अभयारण्य में आठ बाघों का कुनबा भी है। इसके इतर हिरण, बारहसिंघा, नीलगाय, चिंकारा के अलावा सियार, लकड़बग्घा, सांभर और दूसरे अन्य वन्य जीव भी यहां निवास करते हैं। यह अभयारण्य भारतीय भेड़ियों का प्राकृतिक आवास भी माना जाता है।
previous post