देसराग डेस्क
मध्यप्रदेश में मायावती के वोट बैंक पर भाजपा और कांग्रेस की नजर है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक उसके हाथों से खिसक गया और भाजपा के साथ ही सपा को इसका फायदा पहुंचा। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने वाली बसपा की उत्तर प्रदेश में हालत खराब होने के बाद अब प्रदेश में मायावती के वोट बैंक पर भाजपा और कांग्रेस ने नजरें गड़ा दी हैं। बसपा के परंपरागत वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है। यही कारण है कि पहले जनजाति गौरव दिवस का आयोजन कर भाजपा ने आदिवासियों को रिझाने के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में दलित और आदिवासियों का एक बड़ा कार्यक्रम करने की तैयारी कर ली है।
दलित और आदिवासी शामिल होंगे
22 अप्रैल को भोपाल में होने वाले तेंदूपत्ता संग्राहकों के बोनस वितरण कार्यक्रम में पार्टी एक लाख से ज्यादा तेंदूपत्ता संग्राहक की भीड़ जुटाने की तैयारी में है। तेंदूपत्ता संग्राहक में दलित और आदिवासी शामिल होंगे और इनकी मौजूदगी में अमित शाह 2023 के चुनाव में एक बड़े वोट बैंक को पार्टी के पक्ष में लाने की कोशिश करेंगे। प्रदेश के मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के परंपरागत वोटर ने मायावती पर भरोसा ना करते हुए भाजपा के पक्ष में फैसला सुनाया है और उसका असर अब मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी नजर आएगा। सरकार के विकास की योजनाओं से दलित और आदिवासी भाजपा के पक्ष में खड़ा नजर आएगा।
कांग्रेस भी रिझाने में जुटी
कांग्रेस भी दलित और आदिवासियों में अपनी पैठ को मजबूत बनाने की कोशिश में है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दलित और आदिवासियों का अच्छा वोट हासिल हुआ था, जिसके कारण सबसे ज्यादा आदिवासी सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी और ऐसे में कमलनाथ अब दलित और आदिवासियों को साधने के लिए रणनीति बनाने का काम कर रहे हैं। पार्टी ने चुनाव के पहले बूथ स्तर तक पहुंच कर एक बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में करने का प्लान तैयार किया है। कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने कहा कि 2018 के चुनावों में भाजपा के झूठ को जनता ने पहचान लिया और कांग्रेस को बहुमत दिलाया। अब फिर 2023 में भाजपा के झूठ का जवाब जनता देगी।
10 फीसदी वोट बैंक बढ़ाने की मशक्कत
उत्तर प्रदेश से लगी मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल विंध्य और बुंदेलखंड की विधानसभा सीटें पर बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव है। भाजपा ने अपना वोट शेयर बढ़ाने बढ़ाते हुए इसे 50 फीसदी के पार ले जाने का लक्ष्य तय किया है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा की नजर दलित वोटरों पर है। 2018 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 5.1 फीसदी वोट हासिल हुए थे और अब बसपा के इसी वोट को अपने खाते में लाने के लिए भाजपा बड़े कार्यक्रमों के सहारे खुद को मजबूत बनाने की तैयारी में लगी है, तो वहीं कांग्रेस भी बसपा के परंपरागत वोट बैंक पर कब्जा जमाने के लिए दम लगा रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद अब मध्य प्रदेश में बसपा का परंपरा का वोट किसके खाते में जाता है, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन यह तय है कि मायावती का वोट जिस पार्टी के खाते में जाएगा 2023 के चुनाव में उस पार्टी का सत्ता में आना तय है।
2018 में बसपा ने 16 सीटों पर निर्णायक वोट हासिल किए
पिछले चुनाव में बसपा को 15 सीटों पर निर्णायक वोट मिले थे। इनमें से दो सीटों पर बसपा प्रदेश में दूसरे नंबर पर रही थी, जबकि 13 सीटें ऐसी थीं, जहां बसपा प्रत्याशियों को 15 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट मिले थे। बसपा ने 2018 में ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों पर निर्णायक वोट हासिल किए थे। बीते छह विधानसभा चुनावों में जिन 24 सीटों पर बसपा जीती है। उनमें 10 इसी इलाके की सीटें रहीं। विंध्य के सात जिलों में कुल 30 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 17 भाजपा, 11 कांग्रेस और 2 बसपा के पास हैं। इस इलाके को जातियों की आबादी के नज़रिए से देखा जाए, तो यहां 29 फीसदी सवर्ण, 14 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 33 फीसदी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और 24 फीसदी और 24 फीसदी अन्य की हिस्सेदारी है। 2003 के चुनाव के बाद से बसपा ने मध्यप्रदेश में 13 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की है। इनमें से नौ गैर-आरक्षित सीटें हैं। यानी उम्मीदवार न तो दलित था और न ही आदिवासी।
अनुसूचित जाति का वोट बैंक भी अहम
अनुसूचित जाति की 47 सीटों में से वर्तमान में 30 पर कांग्रेस का कब्जा है तो 17 पर भाजपा है। भाजपा इस गणित को बदलकर अपने पक्ष में करने में जुटी है। बीते सात महीने में अमित शाह का मध्य प्रदेश का ये दूसरा दौरा है। 2019 के आम चुनावों से पहले पार्टी के समर्थन आधार को मजबूत करने और विस्तार करने के लिए भाजपा प्रमुख के 110 दिवसीय राष्ट्रव्यापी दौरे में भोपाल भी पहुंचे थे। अमित शाह ने 2018 में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने के साथ ही भेल दशहरा मैदान पर करीब 6500 पदाधिकारियों की क्लास भी ली थी।
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