भोपाल(देसराग)। मध्य प्रदेश की सियासत में पिछले कई महीनों से खींचतान दिखाई दे रही है। इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दिल्ली में हुई मुलाकात ने इस सियासी घमासान में तड़का लगाने का काम कर दिया है। अलबत्ता राज्य के सियासी गलियारों में कई तरह के कयास फिर लगने शुरू हो गए हैं। इस सियासी घमासान का आरंभ तब हुआ, जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अचानक दिल्ली जाने की खबर मीडिया की सुर्खियां बनी। राजनैतिक विश्लेषकों ने कयास लगाने शुरु कर दिया कि यूं अचानक शिवराज को दिल्ली तलब क्यों किया गया? अमित शाह के दौरे के तुरंत बाद ही आखिर क्यों मोदी ने शिवराज को तलब किया? क्या मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिर्वतन होने वाला है? क्या शिवराज की जगह इस राज्य की बागडोर ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंप दी जाएगी? आदि-आदि तमाम अटकलबाजियां सियासत की फिजाओं में अठखेलियां करने लगी। इन अठखेलियों के बीच मुख्यमंत्री निवास से विधिवत मुख्यमंत्री के दिल्ली प्रवास का विस्तृत कार्यक्रम जारी किया गया कि विकास के मुद्दों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने वाले हैं, शिवराज मध्य प्रदेश के विकास का रोडमैप लेकर मोदी से करीब 45 मिनिट चर्चा करेगें।
वहीं दूसरा धड़ा जो कि मुख्यमंत्री का विरोधी रहा है, वो खबरों को प्लांट करने का काम करता है। सोशल मीडिया पर खबरें शेयर की जाती हैं लेकिन इन मुलाकातों के बीच आपको बताते हैं कि क्या इस मुलाकात के मायने हैं।
पीएम मोदी ने शिवराज सिंह से 45 मिनट मुलाकात की, इसके बाद पीएम मोदी का ट्वीट आता है जिसमें वे लिखते हैं- ” शिवराज जी से मुलाकात हुई, मध्य प्रदेश सरकार के गुड गवर्नेंस के तहत उठाए गए कदमों से आम जन का जीवन बदल रहा है”। इस ट्वीट के बाद जहां शिवराज को राहत मिली तो विरोधी खेमा मायूस जरूर हुआ होगा। इससे साफ लग रहा है कि शिवराज मोदी की गुड बुक में हैं और शायद रहेगें भी। अमित शाह भोपाल आगमन पर जिस तरह से शिवराज सिंह ने भीड़ जुटाकर उनका स्वागत किया, अमित शाह भी गदगद हो गए। केंद्रीय मंत्रियों के सामने शिवराज सरकार की तारीफ की तो, वहीं संगठन को लताड़ लगा गए।
भाजपा में अंदरूनी गुटबाजी में शिवराज के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश जरूर की जा रही है लेकिन मोहन भागवत को भी शिवराज पसंद हैं। संघ के लोगों को खुश करने में शिवराज कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। संघ के कामों में किसी तरह का कोई रोड़ा न आए, इसके लिए सीएम ने ओएसडी नियुक्त कर रखा है। 2018 में भाजपा भले ही हारी, लेकिन शिवराज के बुने जाल में सिंधिया फंस गए और फिर से शिवराज सीएम बने। माना गया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने उनकी प्रशासनिक क्षमता और डिसीज़न मेकिंग के चलते उनका नाम सामने रखा। शिवराज ने जनजातीय सम्मेलन किया, मोदी को बुलाया गया और पूरे देश के आदिवासियों को संदेश दिया कि मोदी सरकार ही आदिवासी हितैषी है। भीड़ देखकर पीएम मोदी खुश हुए और शिवराज की तारीफों के पुल बांधे।
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो- “शिवराज एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने राजनीति की फिलॉसफी को व्यवहारिक रूप में अपनाया है। व्यक्ति को कैसे खुश करना है ये शिवराज को बहुत अच्छे से आता है। मोदी को सुपर ह्यूमन और भगवान का दर्जा देकर खुश कर दिया। हर भाषण में पीएम मोदी का नाम लेते हैं शिवराज और ये संदेश देने की कोशिश करते हैं कि मोदी ही भारत का भविष्य हैं”।
खासतौर से खरगोन में दो पक्षों के विवाद के बाद आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाकर साफ संदेश दे दिया कि जो केंद्र चाहेगा, वैसा ही करेंगे शिवराज। पिछले चुनावों के पहले हमने देखा कि शिवराज हमेशा अपने भाषणों में कहते दिखे कि- “कौन माई का लाल है, जो आरक्षण खत्म कर दे।” नतीजा हुआ कि ग्वालियर-चंबल में भाजपा ने सीटें गवां दीं और सरकार नहीं बन पाई। अब इन संवेदनशील मुद्दों पर शिवराज नहीं बोलते। हार का ठीकरा शिवराज पर फोड़ा गया, टिकट वितरण के लिए भी शिवराज को जिम्मेदार माना गया। लेकिन विपक्ष में रहने के बाद भी लगातार सक्रिय रहे, जिसका नतीजा रहा कि फिर से भाजपा सरकार की वापसी हो गई।
अभी ये कहना फिलहाल संभव नहीं है। सूत्रों की माने तो जैसे पंजाब हो या फिर दूसरे राज्यों में मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा गया, पंजाब हो या फिर अन्य चुनावी राज्य वहां पर भाजपा ने सीएम चेहरा घोषित नहीं किया था, इस फार्मूले से भाजपा को फायदा हुआ। पंजाब को छोड़ दिया जाए तो बाकी जगहों पर भाजपा ने मोदी के नाम पर फिर परचम लहराया।
लगातार बढ़ती मंहगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है। हालांकि, शिवराज सरकार योगी की तर्ज पर मुफ्त राशन और सुशासन की राह पर बढ़ चली है। दूसरा वोटिंग के ध्रुवीकरण का खेल भी शुरू कर दिया गया है। फिर भी शिवराज यदि 2023 में हारते हैं तो महंगाई एक वजह हो सकती है। प्रदेश में शिवराज के खिलाफ एक धड़ा जमकर मुखालिफत कर रहा है, पिछले महीनो में हमने देखा कि केंद्र के मंत्री और संगठन के लोगों ने मीटिंग शुरू कर दी थी। लेकिन हाईकमान की तरफ से संदेश दिया गया कि बंद कमरे में मीटिंगों से प्रदेश का मुखिया बदला नहीं जा सकता। हालांकि, जानकारों के मुताबिक शिवराज की काट ज्योतिरादित्य सिंधिया हो सकते हैं। उनकी सक्रियता और साथ में संघ मुख्यालय के दर पर सिंधिया माथा टेकने जाते हैं और संघ के नेताओं से सतत संपर्क में हैं। संघ भी सिंधिया को पसंद कर रहा है, तो कहा जा सकता है कि शिवराज की काट सिंधिया हो सकते हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा कहते हैं कि- “इस बार थोड़ी मुस्कुराहट जरूर है, लेकिन कुटिलता भरी। बताया जा रहा है कि दिल्ली बुलाकर मामाजी की नवंबर में इन्वेस्टर्स मीट पर पानी फेर दिया है। बता दिया गया कि अब 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मध्य प्रदेश में होगा। अब मामाजी की विदेश यात्राओं का क्या होगा”।
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