सोमेश्वर सिंह
इतना सब कुछ होने के बाद भी कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व समझने व सुधरने को तैयार नहीं है। पार्टी द्वारा हालिया लिए गए दो फैसलों से तो ऐसा ही प्रतीत होता है। प्रशांत किशोर कोई मास लीडर है नहीं। वह एक चुनावी रणनीतिकार तथा प्रबंधक हो सकते हैं। यह उनका व्यवसाय है। जो भी राजनीतिक दल ज्यादा दाम देकर खरीद लेगा वह उसी के लिए काम करेंगे। फिर भी कांग्रेस प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने के लिए इतना बेताब क्यों थी। इसके दो ही कारण हो सकते हैं। या तो कांग्रेस पार्टी जनता का विश्वास खो चुकी है या फिर कांग्रेस नेतृत्व के पास करिश्माई व्यक्तित्व नहीं रहा।
कांग्रेस पार्टी आज भी भारत का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। उसकी लोक व्यापकता है। नीति, कार्यक्रम और सिद्धांत है। संसदीय भटकाव के कारण संगठन कमजोर हुआ है। यही वजह है कि लोकस्वीकार्यता में कमी आई है। राज्य दर राज्य कांग्रेस सत्ता से बाहर होती जा रही है। किसी भी राजनीतिक दल के संगठन का महत्व समझ में तब आता है, जब वह दल सत्ता से बाहर होता है। जन संघर्ष को व्यापक और विस्तारित करने के लिए ही संगठन होता है। सत्ता की मानिंद यदि आप उन्ही सत्ता और पदलोलुप नेताओं को संगठन की बागडोर सौंप देंगे तो वे संघर्ष नहीं कर पाएंगे।
सदियों पुरानी कांग्रेस के मूल तत्व को पार्टी भूलती जा रही है। यह सही है कि कांग्रेस एक विचारधारा है। लेकिन उस विचारधारा को जन जन तक पहुंचाने के लिए संगठन की जरूरत पड़ती है। संगठन एक-एक कार्यकर्ता से बनता है। कार्यकर्ता आज निराश, कुंठित, हतोत्साहित हैं। आज कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने की जरूरत है। गांधी-नेहरू इस देश के लिए जितना कुछ कर सकते थे, कर दिया और चले गए। हमने उसे कितना आगे बढ़ाया। यह आत्म चिंतन का विषय है। मुख्यधारा तो वही है। सिर्फ कांग्रेस विचलित हो गई। वक्त आ गया है कि पूरे आत्मविश्वास के साथ कांग्रेस मुख्य धारा पर लौटे। इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। आज कांग्रेस का हाथ जनता की नब्ज से उठ चुका है। प्रशांत किशोर के भरोसे कांग्रेस जनता की उस नब्ज को नहीं पकड़ सकती।
कांग्रेस किसी एक व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं है। और ना ही कांग्रेस की राजनीति कोई व्यवसाय। भारत दुनिया में एक विलक्षण देश है। इसके सनातन परंपरा को समझना पड़ेगा। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और समाज से देश बनता है। राम और कृष्ण मनुष्य के रूप में इस धरती में पैदा हुए थे। वे पैदाइशी घोषित भगवान नहीं थे। जनमानस ने उन्हें उनके त्याग-तपस्या, जनसेवा-जनसंघर्ष के कारण पूज्य बनाया। आज कोई राम-कृष्ण नहीं हो सकता। परंतु उनके बताए रास्ते पर तो चल सकता है। संघ और भाजपा को कोसने से काम नहीं चलेगा। उनकी विचारधारा साफ है। वे अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं। कांग्रेस को किसने रोक रखा है। वह भी अपने विचार धारा और एजेंडे पर काम करे।
अभी हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी गलतियों के कारण पंजाब में सत्ता से बाहर हो गई। पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने आपको छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सत्ता सौंपी थी। कमलनाथ के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में सरकार बनी। वह न सरकार चला पाए। न सरकार संभाल पाए। फिर भी आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व में वापसी की उम्मीद कर रही है? सामूहिक निर्णय और व्यक्तिगत जिम्मेदारी स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा है। जिसका निर्वाह किया जाना चाहिए। कांग्रेस में उल्टा हो रहा है। व्यक्तिगत निर्णय और सामूहिक जिम्मेदारी। ऐसा कैसे और कब तक चलेगा।
कमलनाथ को देर से ही सही दोहरी जिम्मेदारी से मुक्त करके गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह स्वागत योग्य है। गोविंद सिंह एक समझदार, परिपक्व और संघर्षशील विधायक हैं। जिनके पास संसदीय परंपराओं का दीर्घकालीन अनुभव है।चंबल संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया से वही मुकाबला कर सकते हैं। यदि गोविंद सिंह की ऊपर से की गई नियुक्ति के बजाय संसदीय परंपराओं के अनुरूप कांग्रेस विधायक दल की बैठक में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना जाता तो और भी बेहतर होता। भले ही उनके नाम का प्रस्ताव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा निवर्तमान नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ रखते और जीतू पटवारी इसका समर्थन करते। ऐसा क्यों नहीं किया गया यह कांग्रेस जाने।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)ओ