प्रदीप भटनागर
ग्वालियर(देसराग)। मध्यप्रदेश कांग्रेस की सियासत में अब तेजी से बदलाव होते दिखाई दे रहे है। अलबत्ता गुजरे एक सप्ताह में कांग्रेस के अन्दर हुए नवाचारों ने न केवल प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी और उसके क्षत्रपों की नींद उड़ा दी है। बल्कि मध्य प्रदेश की सियासत को यह संदेश भी दे दिया है कि कांग्रेस अब 2023 में सत्ता का रण जीतने के लिए पूरी तरह तैयार है। इसकी बानगी कांग्रेस आलाकमान यानि गांधी परिवार के उस फैसले में दिखाई दी जिसमें मध्य प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष पद से कमलनाथ का इस्तीफा लेते हुए अपने सबसे वरिष्ठ विधायक डॉ.गोविंद सिंह को यह दायित्व सौंपा गया है।
कांग्रेस में इस बदलाव की बयार से अभी मध्य प्रदेश खास तौर पर ग्वालियर-चम्बल अंचल के पार्टी कार्यकर्ता खुश हुए ही थे कि उन्हें जश्न मनाने की एक और वजह मिल गई। यह वजह थी साल 2013 के विधान सभा चुनाव से सियासी मनभेद का शिकार हुए कांग्रेस के दो बड़े क्षत्रपों यानि पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पूर्व मंत्री चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी की गलवाहियां करते हुए सोशलमीडिया के जरिए तस्वीर वायरल होना।
अब चलते हैं कांग्रेस के अन्दर आई बदलाव की इस बयार के आगाज की ओर। दरअसल बीते दिनों में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की मुखिया सोनिया गांधी ने मध्य प्रदेश कांग्रेस की सियासत के उन बड़े चेहरों, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, अजय सिंह राहुल भैया, अरुण यादव शामिल थे, से लम्बी गुफ्तगू कर प्रदेश के सियासी हालातों पर मंथन किया। जिसका लब्बोलुआब यह निकला कि सोनिया गांधी ने कमलनाथ को नेता प्रतिपक्ष के पद से मुक्त होने की सलाह दी और उनसे इस पद के लिए योग्य नाम सुझाने को भी कहा था। इस पर कमलनाथ ने तत्काल अपना इस्तीफा सौंपकर नेता प्रतिपक्ष के लिए डॉ.गोविंद सिंह की अनुशंसा का पत्र सौंप दिया। जिसमें ये भी लिखा था कि वे न केवल कांग्रेस बल्कि पूरे सदन के सबसे वरिष्ठ विधायक है और काफी मुखर भी है।
डॉ.गोविंद सिंह को लेकर कांग्रेस आलाकमान को यह भी समझाया गया कि वे ग्वालियर-चम्बल में कांग्रेस की सरकार गिराने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का विकल्प साबित हो सकते हैं। यह सब फीडबैक कांग्रेस आलाकमान के पास पहले से ही था। इस भेंट के बहत्तर घण्टे बाद सोनिया गांधी ने कमलनाथ का इस्तीफा मंजूर करते हुए डॉ.गोविंद सिंह की नेता प्रतिपक्ष के पद पर नियुक्ति कर दी।
हालांकि सियासी दांव-पेंच के खेल में यह नियुक्ति गुटीय सियासत के अनुसार तो कमलनाथ की पराजय थी, क्योंकि उनके कट्टर समर्थक सज्जन सिंह वर्मा इस पद के सबसे प्रबल दावेदार थे, लेकिन इस पद पर डॉ.गोविंद सिंह की सिफारिश से साफ जाहिर है कि अब कांग्रेस अपने मतभेद भुलाकर अपने तीर को सीधे चिडिया की आँख यानी 2023 के चुनावों पर निशाना साधने की जुगत में है।
गलबहियां करते दिखे अजय-राकेश
इस बदलाव के बाद एक और बड़ा समीकरण बदलता दिखा जब कांग्रेस में एक दूसरे के धुर विरोधी अजय सिंह राहुल भैया और चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी पहली बार गलबहियां करते दिखे। ये दोनों परंपरागत एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे। जब चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने नाटकीय ढंग से सदन में ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने का ऐलान किया था उसकी वजह उन्होंने राहुल भैया को ही बताया था। लेकिन लगता है परिस्थितियों के चलते वैमनस्यता के बादल अब पिघलकर नीचे आने लगे हैं। आज वायरल हो रहा एक फोटो यही कहानी सुना रहा है। इसमे राहुल भैया खुश मुद्रा में चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को मिठाई खिलाते हुए दिख रहे हैं। दोनों की केमिस्ट्री में आया यह बदलाव न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे भविष्य की काँग्रेस की रणनीति की ओर इशारा भी हो रहा है।
राकेश ने दी गोविंद को बधाई
नए नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविंद सिंह भिण्ड जिले से है। उत्तर प्रदेश से सटे होने के कारण यहां की सियासत में “कास्ट फर्स्ट” की प्रमेय ही चलती है, इसके चलते डॉ.गोविंद सिंह और चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी अलग–अलग शिराओं पर ही बैठकर सियासत करते रहे है, लेकिन लगता है अब कांग्रेस अपनी खोई सत्ता वापस पाने के अलावा और कोई मार्ग नही पकड़ना चाहती है। इसका संकेत तब मिला जब ताजपोशी की खबर आते ही चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने बधाई दी। अगर यह दोनो ध्रुव नजदीक आये तो ग्वालियर-चम्बल अंचल में दोनों बड़ी सवर्ण जातियों को क्षत्रप मिल जाएंगे। दलितों के लिए पहले से ही कांग्रेस बसपा के धुरंधर नेता फूल सिंह बरैया को साथ ले आई है। उप चुनाव में वे महज सौ–सवा सौ वोटों से हार गए। पिछड़े वोट पर कांग्रेस पहले ही अच्छा शिकंजा कसे हुए है।
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