डॉ. प्रमोद कुमार
ग्वालियर(देसराग)। मध्य प्रदेश में अतिथि शिक्षकों को स्थाई करने का मामला पिछले डेढ़ दशक से हवा में लटका हुआ है। प्रदेश में 15 साल से मामा शिवराज की सरकार है। बीच में कांग्रेस ने भी 15 महीने की सरकार चलाई लेकिन अतिथि शिक्षकों पर दोनों ही आंख-मिचौनी करती रहीं। हैरानी इस बात को लेकर है कि खुद को बच्चों का मामा कहने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का हृदय भी भांजियों के लिए नहीं पसीज रहा है। आखिर वे राज्य के मुखिया हैं, चाहें तो एक झटके में अतिथि शिक्षकों को स्थाई कर दें। लेकिन वे इस मामले में खुद को दूर किए हुए हैं। बाकी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ हों या केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इनका न तो भांजे-भांजियों से कोई लेना-देना है और न ही अतिथि शिक्षकों से। वरना कभी अतिथि शिक्षकों की लड़ाई सडक़ों पर लडऩे का दावा करने वाले महाराज सिंधिया ने अब तक इन बेचारों की सुध तक नहीं ली।
‘महाराज’ का छतरपुर में दिया गया ओजस्वी भाषण अतिथि शिक्षकों को आज भी जुबानी याद है। तब उन्होंने दुखड़ा रोया था अपनी ही पार्टी की सरकार पर। कहा था- वे पॉवर में नहीं हैं। अगर उनके हाथ में होता तो वे हाल के हाल अतिथि शिक्षकों पर फैसला करवा देते। लेकिन महाराज आज पॉवर में हैं तो अपना वादा याद नहीं है। अब अतिथियों को भला कौन कहे कि सत्ता में आने के बाद नेताओं के मन बदल जाते हैं। फिर भी चुनाव सामने आते देख ये अतिथि शिक्षक अभी भी मामा शिवराज और महाराज से उम्मीद कर रहे हैं कि शायद उन्हें हम पर तरस आ जाए। आखिर इनके संख्या बल को देखें तो 75-80 हजार शिक्षक फिर इनके परिजन और शुभचिंतकों को मिलाकर संख्या एक करोड़ से ऊपर हो जाती है। इतने बड़े वोट बैंक को न तो कांग्रेस और न ही भाजपा नजरअंदाज करना चाहेगी।
समाधान न निकला तो अतिथि शिक्षक बदल सकते हैं पाला
दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं। पिछले महीने दिल्ली और पंजाब में आप सरकार ने अतिथि शिक्षकों को स्थाई कर बेहतर विकल्प दिया है। हाल ही में राजस्थान की गहलोत सरकार ने भी अतिथियों को स्थाई कर उनका वेतन 21 हजार रुपए प्रतिमाह कर दिया है। ऐसे में माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश में अतिथि शिक्षक किसी अन्य विकल्प पर विचार करें। अतिथि शिक्षक संघ सूत्रों का कहना है कि इस बार लड़ाई ‘आर या पार’ की है। सो हम अपनी ताकत का एहसास ‘मामा’ और ‘महाराज’ को करवा देंगे।
दस माह के वेतन से कर लेते हैं संतुष्टि
अतिथि शिक्षकों की वेतन की बात करें तो सत्तावानों को शर्म आ जाए। दस महीने इन्हें अलग-अलग वर्गों के हिसाब से दिए जाते हैं। वर्ग-एक को पढ़ाने वालों को नौ हजार, वर्ग दो के शिक्षकों को सात हजार जबकि वर्ग तीन के शिक्षकों को केवल पांच हजार मिलते हैं। इसी वेतन में इन्हें स्कूल आने-जाने का प्रबंध करना होता है।
स्थाई शिक्षक के आने पर हो जाते हैं दर-बदर
इतना ही नहीं, जब इनके स्थान पर किसी स्थाई शिक्षक को भेज दिया जाता है तो इन्हें घर बैठना पड़ता है। एक साथ इतनी विसंगतियों पर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही सरकार के सुयोग्य शिक्षा मंत्री। आखिर ऐसी आदर्श व्यवस्था पर किसे नाज नहीं होगा? यह तो नए भारत की तस्वीर है, जो कह रही है, देश बदल रहा है।