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Tuesday, Sep 26, 2023
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चार गुना महंगे विदेशी कोयले से बनेगी मप्र में बिजली

मप्र के लोगों को लगेगा महंगाई का करंट
भोपाल(देसराग)। कोयले की कमी बताकर विदेश से कोयला खरीदी की तैयारी हो रही है, वह भी चार गुना महंगी कीमत पर। रबी सीजन में बिजली की किल्लत न पैदा हो, इसके लिए यह तैयारी हो रही है। मप्र ऊर्जा विभाग ने कोयला खरीदी के लिए टेंडर भी जारी कर दिया है। इस कोयले पर करीब 1500 करोड़ रुपये खर्च होंगे। विदेशी कोयले से बिजली का उत्पादन भी महंगा होगा। इसका सीधा असर बिजली के दाम पर पड़ेगा।
मप्र पावर जनरेशन कंपनी द्वारा रबी सीजन के लिए छह माह पहले ही कोयले की खरीदी की जा रही है। कंपनी प्रबंधन ने जरूरत के चार प्रतिशत करीब 7.50 लाख मीट्रिक टन कोयला खरीदी का टेंडर निकाला है।
इसकी अनुमानित लागत 15 से 18 हजार रुपये प्रति टन होगी। जबकि भारतीय कोयला 3500-4000 हजार रुपये प्रति टन मिलता है। बिजली ताप गृह में 90 प्रतिशत देसी, 10 प्रतिशत विदेशी कोयला उपयोग किया जाएगा। करीब चार साल पहले भी कोयले की कमी का हवाला देकर मप्र पावर जनरेशन कंपनी ने विदेश से कोयला आयात किया था। टेंडर खोले जाने की आखिरी तारीख 19 मई है। विदेश से 7 लाख 50 हजार मीट्रिक टन कोयला खरीदा जाना है। इसकी अनुमानित लागत अभी 976 करोड़ आंकी गई है। यह लागत बढ़कर 1500 तक पहुंच सकती है।
विदेश से खरीदा जाने वाला यह कोयला भारत की तुलना में कई गुना महंगा पड़ेगा। इससे निश्चित है कि आने वाले समय में बिजली भी महंगी होगी, जिसका खामियाजा बिजली उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ेगा। सूत्र बताते हैं कि किसी बड़ी कंपनी को उपकृत करने और कमीशन के चक्कर में यह खरीदी की जा रही है। इसमें करोड़ों के वारे-न्यारे होंगे। गौरतलब है कि मप्र सहित देशभर में कोयले की कमी के चलते बिजली संकट खड़ा हो गया है। प्रदेश के बिजली घरों को डब्ल्यूसीएल और एसईसीएल से कोल ब्लॉक आवंटित है। सारणी बिजली घर को डब्ल्यूसीएल के पाथाखेड़ा, कान्हा पेंच, नागपुर, चंद्रपुर व वानी से रेल, सड़क व कन्वेयर बेल्ट से कोयले की सप्लाई होती है।
दो रुपए बढ़ेगी लागत
बिजली विशेषज्ञों की मानें तो विदेशी कोयला महंगा आएगा। एक यूनिट बिजली देसी कोयले से करीब तीन से चार रुपये के बीच बन रही है। वहीं 10 प्रतिशत विदेशी कोयले के उपयोग से बिजली की एक यूनिट एक से दो रुपये तक महंगी होगी। गौरतलब है कि बिजली के टैरिफ निर्धारण में उपभोक्ताओं से 30 दिन के कोयला स्टॉक का पैसा लिया जाता है। मतलब, बिजली घरों में उनकी क्षमता के अनुरूप 30 दिन का कोयला रखा जाएगा। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के मानक के अनुसार पिटहेट (प्लांट और कोयला खदान की दूरी 25 किमी से कम) पर 17 दिन का स्टॉक और नान पिटहेड (प्लांट और कोयला खदान की दूरी 25 किमी से अधिक होने पर) 26 दिन का कोयला स्टॉक रखना चाहिए। अमरकंटक को छोड़कर सभी बिजली घरों में 26 दिन का न्यूनतम कोयला स्टॉक होना चाहिए।
सबसे अधिक कोयले से बनती है बिजली
प्रदेश में सबसे अधिक बिजली थर्मल पावर प्लांट्स से मिलती है। प्रदेश को 9200 मेगावाट बिजली कोयला आधारित ताप विद्युत गृह से और 1800 मेगावाट जल, सोलर और विंड सहित अन्य तरीके से उत्पादित बिजली मिल पा रही है। इसमें मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी के अंतर्गत आने वाले जल विद्युत गृहों से 225 मेगावाट बिजली ही मिल पा रही है। 3600 मेगावाट के लगभग प्रदेश के कोयला आधारित प्लांटों से 1300 के लगभग पवन, सोलर आदि माध्यम से बिजली मिल रही है। शेष 5500 से 6 हजार मेगावाट के लगभग बिजली एनटीपीसी से मिल रही है। एनटीपीसी के प्लांट भी कोयला आधारित बिजली बनाते हैं।
मांग गिरते ही आ पाएगा विदेशी कोयला
प्रदेश में 12 हजार मेगावाट बिजली की डिमांड बनी हुई, लेकिन बिजली 10 से 11 हजार मेगावाट ही मिल रही है। इससे अघोषित बिजली कटौती की जा रही है। ऐसे में विदेश से कोयला खरीदने के तैयारी शुरू हो गई है। जानकारों के अनुसार भारत में 1 मीट्रिक टन कोयला खरीदी की लागत ढाई हजार से चार हजार रुपए तक है। विदेश से आने वाला कोयला लगभग 20 हजार मीट्रिक टन में पड़ेगा। वहीं विदेश से आने वाले कोयले में अभी कम से 2 से तीन महीने का समय लग जाएगा। यह कह सकते हैं कि विदेश से खरीदा जाने वाला कोयला मप्र में जुलाई-अगस्त तक ही पहुंच पाएगा। तब प्रदेश में बिजली डिमांड आधी से भी कम रह जाएगी। उस समय जलाशयों में भी पर्याप्त पानी हो जाएगा। इस पानी से बनने वाली बिजली का उत्पादन भी बढ़ जाएगा। ऐसे में उस समय विदेशी कोयले की आवश्यता भी नहीं होगी। बिजली की डिमांड कम होने से वैश्विक स्तर पर कोयले के दाम भी कम हो जाएंगे। इससे कोयला खरीदी पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।

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