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Tuesday, Sep 26, 2023
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विचार

मां से कम नहीं हैं नर्सेज

सोमेश्वर सिंह
आज अंतर्राष्ट्रीय नर्सेज दिवस है। दुनिया के तमाम नर्सों को शुभकामनाएं और उनके अनवरत सेवा के जज्बे को सलाम। मां बच्चों की बचपन मे सेवा करती है। नर्से रोगियों की बचपन से बुढ़ापे के अंतिम सांस तक सेवा करती हैं। रोगी किसी उम्र का हो परंतु उसकी हरकतें बच्चों की तरह ही होती हैं। फिर भी नर्से दिन रात ऐसे रोगियों की सेवा में समर्पित भाव से लगी रहती है। रोगियों के हठ, क्रोध, उपेक्षा, अभद्रता झेलने के बाद भी नर्से मुस्कुराती रहती है। समय पर इंजेक्शन लगाना, दवाई देना, मरहम पट्टी करना, नहलाना धुलाना सभी काम अस्पताल में नर्स की करती हैं। नर्सों की कठिन सेवाओं का मैंने जीवन में स्वत: अनुभव किया है। बड़े अस्पतालों में रोगियों के साथ उनके अटेंडेंट को रात में रुकने नहीं दिया जाता। मेरे पिताजी मुंबई हॉस्पिटल में भर्ती थे। दो महीने से उनका उपचार चल रहा था। प्रोस्टेट का ऑपरेशन होना था। जिस दिन ऑपरेशन की तारीख निश्चित होती। सुबह-सुबह उन्हें पूर्वाभास हो जाता और कोई न कोई तकलीफ हो जाती। ऑपरेशन कैंसिल करना पड़ता ।
किसी तरह उनका ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन के बाद थिएटर से वापस वार्ड में लाया गया। हिले डुले ना ,इसलिए उन्हें बेल्ट के सपोर्ट से स्थिर कर दिया गया। दोनों हाथ में सलाईन लगा था। बीच-बीच में नर्स और भी दवा इंजेक्शन दे रही थी। पिताजी असहज महसूस कर रहे थे। खिसिया गए और बघेली में लगे नर्सों को गरियाने – पदनी..रांड़..छिनार..भोसड़ी हरे..एकठे पीछे..मा घुसेर दे। नर्स गाली की भाषा तो नहीं समझ पायी। परंतु भाव समझ गई थी। लगी हंसने और मुझसे पूछा-” बब्बा क्या कहता है”। मैंने भी मुस्कुरा दिया। बुढ़ापे में रोगी की इतनी सेवा बेटा बहू भी न कर पाते। जितनी सेवा नर्स कर रही थी। जिस दिन पिताजी की अस्पताल से छुट्टी हुई ,वे इतने अभिभूत थे कि रोने लगे। ड्यूटी में तैनात नर्सों को बुलाया। हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगी। और कहा -“बिटिया हरे नाराज ना होये…”। रोग ग्रस्त होकर हम आप जब कभी हॉस्पिटलाइज होते हैं। खुद के जीवन को नर्सों के हवाले कर देते हैं। ऐसे में हम वहां शासक नहीं शासित होते हैं। घर में पत्नी के सामने भीगी बिल्ली बने रहेंगे और अस्पताल में नर्सों के सामने शेर बन जाते हैं।
इसी तरह की एक नर्स 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर में पैदा हुई थी, जिसका नाम “फ्लोरेंस नाइटिंगेल” था। नोबेल नर्सिंग सेवा की शुरुआत करने वाली वह पहली नर्स थी। वे इटली के क्रीमिया युद्ध में घायल सैनिकों का वे दिन रात उपचार करती थी ।रात भर लालटेन लेकर सैनिकों की सेवा करती थी। इसीलिए उन्हें “लेडी इज द लैंप” कहा जाने लगा था। फ्लोरेंस की सेवाओं को देखते हुए तत्कालीन महारानी विक्टोरिया ने उन्हें “रॉयल रेड क्रॉस” के सम्मान से सम्मानित किया था। 90 वर्ष की उम्र में उनका 13 अगस्त 1910 को निधन हो गया। भारत में नर्सिंग सेवाओं के लिए केरल और कर्नाटक अग्रणी राज्य हैं। केरल के नर्सों की सेवाएं अनुकरणीय है ।अभी हाल में कोरोना की दूसरी लहर के चलते केरल में वैक्सीनेशन चल रहा है। नर्सों ने वहां के वैक्सीन की खाली शीशियो को फेंका नहीं। उसमें शेष बची वैक्सीन को संग्रहित कर के 80 हजार अतिरिक्त खुराक बना दी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जनसंख्या के अनुपात में नर्सों की कमी को देखते हुए चिंता व्यक्त की है। एक हजार की आबादी के अनुपात में नर्सों के मामले में जर्मनी अग्रणी है। वहां प्रति हजार संख्या पर नर्सों का अनुपात लगभग 13 फ़ीसदी है। जबकि अमेरिका में 12 फ़ीसदी। इस मामले में भारत सबसे पीछे है जहां का अनुपात सिर्फ डेढ़ फीसदी है। भारत में आज भी 50 लाख नर्सों की कमी है। इसके मुकाबले स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों के हिस्सेदारी की बात करें तो भारत में उनका अनुपात 50 फीसदी है। शेष आधे में डॉक्टर, टेक्नीशियन, वार्ड बॉय, स्वीपर ,पैथोलॉजिस्ट व अन्य स्वास्थ्य कर्मी शामिल हैं। आज के कोरोनावायरस की आपदा में हमारे देश की नर्से अग्रिम मोर्चे की योद्धा हैं। जिनके भरोसे हॉस्पिटल मैं भर्ती संक्रमित रोगियों के सेवा, उपचार का पूरा प्रबंधन है। आज आपातकालीन कालीन परिस्थितियों में नर्से 18 -18 घंटे सेवाएं दे रही हैं।रात -रात भर घर परिवार से दूर रहती हैं। स्पेन में नर्सेज जब हॉस्पिटल से ड्यूटी करके वापस घर लौटती हैं, तब वहां के नागरिक अपने अपने घर के बालकनी में खड़े होकर उन्हें सम्मान देते हैं। हम उन्हें ऐसा सम्मान ना दे सके तो कम से कम उनका अपमान तो न करें।
आज के दिन केईएम हॉस्पिटल मुंबई की नर्स अरूणा शानबाग की शहादत को भी याद किया जाना चाहिए। लगभग 48 साल पहले 27 नवंबर 1973 के रात की बात है। शानबाग नाइट ड्यूटी पर थी। सोहनलाल नाम के वार्ड बॉय के यौन हिंसा का शिकार हो गई। उनके गले को कुत्ते की जंजीर से कस दिया गया था। वे कोमा में चली गई। 42 साल तक कोमा में रहीं। घरवालों ने उन्हें स्वीकार करने से मना कर दिया। शानबाग की सहकर्मी नर्सों ने उनकी सेवा की ।सुप्रीम कोर्ट द्वारा शानबाग की इच्छा मृत्यु की याचिका भी खारिज कर दी गई।अंततः उन्होंने हॉस्पिटल में ही 18 मई 2015 को दम तोड़ दिया। उनकी अंत्येष्टि भी हॉस्पिटल के स्टाफ द्वारा की गई थी। सरकारों को चाहिए की नर्सेज को प्रोत्साहित करने के लिए, उनके बेहतर जीवन पद्धति की जरूरतों को हिसाब से आर्थिक पैकेज दे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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