भोपाल(देसराग)। मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस ‘फार्मूले’से प्रदेश के 22 फीसदी आदिवासियों को साधा है, अब भाजपा उस फार्मूले को पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी आजमाएगी। गौरतलब है कि मप्र की तरह ही छग में भी आदिवासी समाज बड़ा वोट बैंक है। इसलिए भाजपा ने रणनीति बनाई है कि मप्र के आदिवासी कल्याण के कार्यक्रमों को प्रचारित और प्रसारित कर आदिवासियों का साधा जाएगा, ताकि 2023 में सरकार में वापसी की राह आसान हो सके।
जानकारों का कहना है कि मप्र में चलाई जा रही आदिवासी विकास के कार्यक्रमों को छग में सराहा जा रहा है। इसलिए भाजपा के रणनीतिकार ऐसी योजना बना रहे हैं कि मिशन 2023 के तहत मप्र की आदिवासी विकास की योजनाओं को मुद्दा बनाया जाए। पार्टी का दावा है कि मप्र में आदिवासी वर्ग के कल्याण की योजनाएं, जिंदगी में बदलाव और सम्मानजक जीवन का संदेश छत्तीसगढ़ भी जाएगा। मप्र भाजपा के वरिष्ठ नेता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐतिहासिक उपलब्धियां दी हैं। निश्चित तौर पर अन्य राज्यों में भी मप्र की भाजपा सरकार का उदाहरण उपलब्धियों के तौर पर बताया जा रहा है।
दोनों राज्यों में आदिवासी वर्ग अहम
अगर राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो मप्र और छग में सत्ता के समीकरण तय करने में आदिवासी वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इसको देखते हुए भाजपा विशेष रणनीति पर काम कर रही है। दोनों राज्यों में राज्यपाल भी आदिवासी वर्ग से ही नियुक्त करने को इसी का हिस्सा माना जा रहा है। भाजपा प्रदेश में आदिवासी कल्याण के कार्यक्रमों को प्रमुखता से लागू कर छग के आदिवासी वर्ग को बड़ा संदेश देना चाहती है। गौरतलब है कि मप्र आदिवासियों को साधने के लिए प्रदेश सरकार लगातार कार्य कर रही है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस की शुरुआत की तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी भोपाल में आयोजित वन समितियों के सम्मेलन में कई सौगातें दी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदिवासी वर्ग से आने वाले विधायकों के साथ डिनर कर चुके हैं। आने वाले दिनों में भी आदिवासी वर्ग पर फोकस करते हुए कई कार्यक्रम और योजनाएं तैयार की जा रही हैं।
इसी रणनीति के तहत छग में हाल ही में हुए खैरागढ़ विधानसभा सीट उपचुनाव के प्रचार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की आदिवासी कल्याण की योजनाओं का उल्लेख किया था। उधर, भाजपा के वरिष्ठ नेता व राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने भी छग के दौरे में इन योजनाओं की जानकारी साझा करते हुए इसके प्रचार-प्रसार की बात कही।
एसटी सीटें बनाती हैं सरकार
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मप्र की तरह की छग में भी एससी और एसटी सीटें सत्ता का भाग्य तय करती हैं। छग की 90 में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इसमें अधिक सीटें अपने खाते में रखने वाले दल को ही सत्ता मिल सकी है। वर्ष 2003 में एसटी के लिए 34 सीटें आरक्षित थीं, तब भाजपा ने 25 सीटें जीती थीं और सत्ता का रास्ता तय हो सका था। 2008 में आरक्षित सीटें घटकर 29 हो गईं और भाजपा के खाते में 19 सीटें आईं। 2013 में 29 में से 11 सीटें मिलने पर पार्टी को इस वर्ग में घटती लोकप्रियता का अंदाजा हो गया, लेकिन कारगर उपाय के अभाव में वर्ष 2018 में भाजपा को 29 सीटों में से महज तीन पर जीत मिल सकी। इस चुनाव में भाजपा को कुल 15 सीटें ही मिलीं। 68 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बनाई।
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