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Thursday, Dec 7, 2023
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क्या सिंधिया के सामने टिक पाएगी दिग्गी-गोविन्द की जोड़ी?

भोपाल(देसराग)। मध्य प्रदेश की सियासत के केन्द्र में इन दिनों ग्वालियर-चम्बल का इलाका बना हुआ है। इसकी वजह साल 2018 में इस इलाके द्वारा 15 साल से सत्ता का वनवास काट रही कांग्रेस को सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाना मानी गई। यही वह कारण है कि आज भी भाजपा और कांग्रेस में इसी इलाके को फतह करने के लिए सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। इसकी वजह हैं श्रीमंत यानि केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। वे भाजपा में आए तो कांग्रेस से अधिक मजबूत बनकर उभरे, तो वहीं कांग्रेस भी उनसे सरकार गिराने का बदला लेने के पूरे मूड में है।
यही वजह है कि कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष का पद इसी अंचल से आने वाले पार्टी के अजेय विधायक डाक्टर गोविन्द सिंह को सौंप दिया है। अब इन दोनों ही नेताओं की अग्नि परीक्षा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में होना है। यह बात अलग है कि उपचुनाव में सिंधिया अपने समर्थकों की जीत में भारी पड़ चुके हैं, लेकिन वह चुनाव ऐसे समय हुए थे जब इस अंचल में कांग्रेस के पास संगठन से लेकर बड़े नेताओं तक का अभाव पैदा हो गया था। अब कांग्रेस की स्थिति व परिस्थिति भी बदल चुकी है। इस अंचल के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में इस अंचल का प्रतिनिधित्व नरेन्द्र सिंह तोमर के अलावा स्वयं ज्योतिरादित्य सिंधिया कर रहे हैं।
इसी तरह से अगर राज्य की बात की जाए तो प्रदेश में 9 मंत्रियों के अलावा 14 निगम मंडल अध्यक्ष भी इसी अंचल से आते हैं। लगभग यही हाल संगठन में भी है। इसी तरह से अगर कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस सत्ता में नही है, लेकिन अब खुद को भाजपा के मुकाबले में खड़ा करने के लिए इस अंचल पर पूरा फोकस करना शुरू कर दिया गया है। इस वजह से ही नेता प्रतिपक्ष, प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के अलावा कोषाध्यक्ष का पद इस अंचल के खाते में आ चुका है। इसके अलावा कांग्रेस ने इस अंचल का प्रभार भी दिग्विजय सिंह को दिया हुआ है। अब इस अंचल में अगले विधानसभा चुनाव में बेहद रोचक मुकाबला दिख सकता है।
कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरने की वजह दिग्विजय सिंह को माना जा रहा था, यही कारण है कि दिग्विजय सिंह का भी पूरा फोकस इसी इलाके पर बना हुआ है। वे खुद तो दौरे कर ही रहे हैं साथ ही उनके पुत्र और पूर्व मंत्री राजवर्धन सिंह भी इस अंचल में प्रवास कर रहे हैं। अब नेता प्रतिपक्ष का पद भी उनके करीबी गोविंद सिंह के खाते में आने की वजह से अंचल में उनका दबदबा बढ़ गया है। डाक्टर गोविन्द सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने के पीछे कांग्रेस की एक बड़ी रणनीति ज्योतिरादित्य सिंधिया को उन्हीं के गढ़ में घेरने की है। यही वजह है की नेता प्रतिपक्ष बनते ही दूसरे दिन डाक्टर गोविन्द सिंह सीधे ग्वालियर पहुंचे, जहां उन्होंने बिना मौका गवाएं सीधा केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधा। ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ता उत्साहित नजर आए।
कांग्रेस डाक्टर गोविन्द सिंह को ज्योतिरादित्य सिंधिया का विकल्प करार दे रही है, वहीं सिंधिया पर हुए हमले के बाद सिंधिया के समर्थक मंत्री भी कांग्रेस के खिलाफ लामबंद हो गए, सिंधिया समर्थक मंत्री डाक्टर गोविन्द सिंह को ज्योतिरादित्य सिंधिया के कद के सामने, बेहद बौना और छोटा नेता करार दे रहे हैं। फिलहाल दोनों में से जिस दल को इस अंचल में बढ़त मिलेगी उससे ही ज्योतिरादित्य सिंधिया व डाक्टर गोविन्द सिंह के कद का पता चल सकेगा। यही वजह है कि अगले विस चुनाव को दोनों ही नेताओं के लिए बतौर अग्नि परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है।
ग्वालियर-चम्बल से खुलता है सत्ता रास्ता
डाक्टर गोविन्द सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद अंचल के सियासी मौसम में भी परिवर्तन होता दिखना शुरू हो गया है। इसकी वजह है प्रदेश में सत्ता का रास्ता इसी अंचल से खुलता है। 2018 में ग्वालियर-चम्बल में कांग्रेस का दबदबा रहा और वह सरकार बनाने में कामयाब रही। 2020 में जब कांग्रेस की सरकार गई, उसमें भी इसी अंचल से उसे बेहद महत्वपूर्ण बढ़त मिली थी। यही वजह है कि दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए ग्वालियर-चम्बल संभाग बेहद महत्वपूर्ण है। इसी कारण से कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया को घर में ही घेरने की कोशिश में है, ताकि 2018 के परिणामों को दोहराया जा सके। गौरतलब है कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 34 में से 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
अभी यह है राजनीतिक समीकरण
इस अंचल के अगर राजनीतिक समीकरण को देखें तो अंचल की 34 सीटों में से 17 कांग्रेस के पास तो 16 सीटें भाजपा के पास और एक बसपा के पास है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने की वजह से कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। उपचुनाव में कांग्रेस को इस अंचल में दस सीटों का नुकसान हुआ है। इसी तरह अगर लोकसभा सीटों की बात की जाए तो अंचल की चारों लोकसभा सीटें भाजपा के खाते में है। इसी तरह से भाजपा की एक राज्यसभा सीट भी इसी अंचल के खाते में है।
कांग्रेस को थी चेहरे की तलाश
दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल में दिशाहीन हुई कांग्रेस को लंबे समय से ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह रिक्त हुए स्थान को भरने के लिए एक चेहरे की तलाश थी, कयास लगाए जा रहे थे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह दिग्विजय सिंह या फिर उनके बेटे जयवर्धन सिंह लेंगे, लेकिन इन कयासों के उलट कांग्रेस पार्टी ने दिग्विजय सिंह के सबसे नजदीकी और भरोसेमंद डाक्टर गोविन्द सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाकर ग्वालियर-चम्बल अंचल में उनका कद ज्योतिरादित्य सिंधिया के समकक्ष बनाने की कोशिश की। डाक्टर गोविन्द सिंह भी नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद सिंधिया के खिलाफ ही मुखर दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस के लिए कोई चुनौती ना होना करार दिया। कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने यह दावा किया कि डाक्टर गोविन्द सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद भाजपा के साथ-साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बेहद घबरा गए हैं, हालांकि यह उनका दावा है, जबकि भाजपा दावा कर रही है कि कांग्रेस ने यह स्वीकार कर लिया है कि ग्वालियर-चम्बल में सिंधिया के प्रभाव की बदौलत ही साल 2018 में उसे सत्ता मिली थी और अब कांग्रेस के पास सिंधिया के कद का कोई नेता नहीं है, जो सिंधिया से मुकाबला कर सके तभी तो कांग्रेस ने मिस्टर बंटाढार को कमान सौंपकर अपनी हार मान ली है। क्योंकि वे ज्योतिरादित्य सिंधिया मिस्टर बंटाढार के खिलाफ तब भी मुखर रहते थे जब वह कांग्रेस में थे।

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