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Sunday, Sep 24, 2023
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शिवराज सरकार के गले की फांस बना पिछड़ा वर्ग का आरक्षण!

भोपाल(देसराग)। मप्र में पिछड़ा वर्ग आरक्षण का मामला सरकार के लिए गले की फंस बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भले ही सरकार फिर से रिवीजन याचिका लगा चुकी है, लेकिन जो नया प्रस्ताव सौंपा गया है उसके मुताबिक अब अधिकतम आरक्षण बीस फीसदी ही मिल सकेगा। इसकी वजह है सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया है कि किसी भी हाल में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से आगे नहीं जाएगी।
उल्लेखनीय है कि पिछड़ा वर्ग आयोग की ट्रिपल टेस्ट की एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। इसके बाद आनन-फानन में आयोग ने दूसरी रिपोर्ट तैयार कर प्रदेश सरकार को सौंप दी थी, जिसे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया है। निकायवार आबादी के हिसाब से आरक्षण होता है, तो उदाहरण के लिए यदि कहीं अजा-अजजा 15 फीसदी है और पिछड़ा वर्ग 10 फीसदी तो वहां 10 फीसदी के हिसाब से ही पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ दिया जा सकेगा। इसी तरह से जहां पर भी 35 फीसदी पिछड़ा वर्ग है, लेकिन अजा-अजजा भी 30 फीसदी है तो सिर्फ 20 फीसदी ही आरक्षण का लाभ पिछड़ा वर्ग को मिल सकेगा।
पहली रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने निकायवार नहीं मानते हुए उसे खारिज कर दिया था। नई रिपोर्ट को सरकार द्वारा निकायवार होने का दावा किया जा रहा है। इसमें पिछड़ा वर्ग आरक्षण के लिए जो सुझाव दिया गया है उसके मुताबिक अब जो रिपोर्ट और प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में दिया गया है, उसमें आबादी के मान से शून्य से लेकर 35 प्रतिशत तक आरक्षण देने का उल्लेख किया गया है। बहरहाल, 17 मई को दोपहर दो बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। सूत्रों का कहना है कि सरकार कोर्ट से 3 से 4 हफ्ते का समय मांग सकती है। अगर ऐसा होता है तो चुनाव आगे बढ़ेंगे।
गौरतलब है की सुप्रीम कोर्ट ने जया ठाकुर और सैयद जाफर की याचिका पर फैसला सुनाते हुए आदेश दिया था कि राज्य निर्वाचन आयोग 15 दिन के अंदर पंचायत और नगर पालिका के चुनाव की अधिसूचना जारी करे। ओबीसी आरक्षण के मामले में प्रदेश की बीजेपी सरकार की रिपोर्ट को कोर्ट ने अधूरा मानते हुए आदेश दिया कि प्रदेश में ओबीसी वर्ग को चुनाव में आरक्षण नहीं मिलेगा। इसलिए अब स्थानीय चुनाव 36 फीसदी आरक्षण के साथ ही होंगे। इसमें 20 फीसदी आरक्षण एसटी और 16 फीसदी एससी को आरक्षण मिलेगा।
जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक 5 साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सभी निकायों के सदस्यों का चुनाव हो जाना चाहिए। अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि जो राजनीतिक दल ओबीसी आरक्षण की पैरवी कर रहे हैं, उन्हें सामान्य सीटों पर ओबीसी के लोगों को टिकट देने पर विचार करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट से 17 को होगी साफ तस्वीर
मध्य प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत (ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत व जिला पंचायत) और नगरीय निकाय (नगर परिषद, नगर पालिका और नगर निगम) के चुनाव कब होंगे इसको लेकर 17 मई को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से तस्वीर साफ होगी। प्रदेश सरकार ने पिछड़ा वर्ग आरक्षण के बिना चुनाव कराने के संबंध में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार का आवेदन पर सुनवाई 17 मई को तय की गई है। गृह मंत्री डा.नरोत्तम मिश्रा के मुताबिक पुनर्विचार आवेदन के साथ ही मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने ट्रिपल टेस्ट की वार्ड वार रिपोर्ट भी पेश की है। इसमें प्रत्येक निकाय में पिछड़ा वर्ग की स्थिति को लेकर तथ्यात्मक जानकारी दी गई है। खास बात यह है कि 10 मई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव बिना पिछड़ा वर्ग आरक्षण के कराने का आदेश दिए गए थे, जिसकी वजह से राज्य निर्वाचन आयोग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है।
अब स्थितियां काफी बदल गईं
डा.नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट करने के आदेश दिए थे। राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने यह कार्य पूरा कर लिया है। यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की जा चुकी थी लेकिन इसको लेकर कुछ प्रश्न उठाए गए थे। अब निकायवार, वार्डवार पिछड़ा वर्ग की तथ्यात्मक स्थिति की रिपोर्ट पेश कर दी है। आदेश में वर्ष 2019 के परिसीमन का जिक्र है, जबकि स्थितियां अब काफी बदल गई हैं। इससे भ्रम की स्थिति निर्मित हो गई है। इसे दूर करने के लिए दो से तीन सप्ताह का समय सुप्रीम कोर्ट से मांगा गया है।
दोनों दल कर चुके है घोषणा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पिछड़ा वर्ग के हितैषी बनने की होड़ में जहां कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने 27 फीसदी टिकट पिछड़ा वर्ग को घोषित करने की घोषणा कर डाली थी, जिसके तत्काल बाद भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी पत्रकारों से चर्चा में 27 फीसदी से अधिक पिछड़ा वर्ग प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर दी थी। फिलहाल कोर्ट के फैसले के बाद से दोनों ही दलों के नेता इसके लिए एक दूसरे पर आरोप लगाने में लगे हुए हैं।
सरकार यह दे सकती है दलीलें
सरकार की ओर से दलील दी जा सकती है की 6 मई की सुनवाई में आपने कहा था कि 9 मई तक पंचायतों में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी करें। सरकार ने 8 मई को ही यह काम कर लिया। एक अधिसूचना जारी हो गई, लेकिन कोर्ट ने 10 मई के आदेश में फिर परिसीमन करने की बात की, जो हमने कर लिया है। नगर परिषद और ग्राम पंचायतों की संख्या भी बढ़ा गई है। इसलिए 2022 के नए परिसीमन से चुनाव कराने की इजाजत दी जाए। अगर नए सिरे से परिसीमन कराया गया तो फिर आरक्षण करने में दो माह तक का समय लग सकता है। महाराष्ट्र के मामले में कृष्णमूर्ति और विकास राव गवली की पिटीशन पर कोर्ट ने कहा था कि बिना पिछड़ा वर्ग आरक्षण के चुनाव कराएं, क्योंकि ट्रिपल टेस्ट के मायने स्पष्ट नहीं थे। मप्र में हमने जो आयोग की रिपोर्ट दी है, वह पहला कदम है। 12 मई को आयोग की दूसरी रिपोर्ट भी मिल गई, जिसमें निकायवार आरक्षण की अनुशंसा है। 50 फीसदी से अधिक आरक्षण न होने का तीसरा बिंदु भी अहम माना जा रहा है।

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