भोपाल(देसराग)। मध्य प्रदेश में बीते दो साल से अटके पंचायत चुनावों के लिए अभी और इंतजार करना पड़ सकता है, जिसकी वजह से सूबे को केन्द्र से ग्रामीण विकास के लिए मिलने वाली अनुदान राशि का नुकसान और उठाना पड़ सकता है। बीते दो साल में मप्र को 45 अरब रुपए का नुकसान हो चुका है। अगर प्रदेश में समय पर पंचायत चुनाव करा लिए जाते तो इतनी बड़ी राशि का नुकसान नहीं होता।
यह वो राशि है जिसे केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाओं के काम कराने के लिए दिया जाता है। इसकी वजह से प्रदेश की 23 हजार पंचायतों में विकास से जुड़े सड़क, पानी, नाली और सामुदायिक भवन के मूलभूत काम भी अटके पड़े हुए हैं। दरअसल पहले कोरोना और फिर ओबीसी आरक्षण की वजह से दो साल से प्रदेश में पंचायत चुनाव अटके रहने से इसका असर पंचायतों के विकास कामों पर पूरी तरह से पड़ा है। इसकी वजह से केन्द्र सरकार ने 15वें वित्त आयोग से मिलने वाली 4500 करोड़ की ग्रांट रोक रखी है। यह बात अलग है की इस मामले में राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि हमने पंचायतों को प्रभार सौंप दिया है लेकिन इसके बाद भी ग्रांट जारी नहीं की गई है।
दरअसल ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग को 15वें वित्त आयोग से हर साल लगभग 3 हजार करोड़ की राशि पंचायतों के विकास के लिए मदद के रुप में दी जाती है। बीते साल कोरोना की अवधि में वर्ष 2021-22 की राशि में से आधी ग्रांट के 1472 करोड़ रुपए की पहली किस्त मिल चुकी थी लेकिन जब दूसरी किस्त की बार आयी तो उसे रोक दिया गया। इसके बाद से लगातार प्रदेश की सरकार रोकी गई ग्रांट की राशि पाने के लिए प्रयासरत रही लेकिन उसे सफलता नहीं मिल सकी। इसके लिए कई बार पत्र भी लिखे गए हैं। अब तक इस वर्ष 2022-23 के लिए भी पंचायत चुनाव न होने की वजह से प्रदेश को इस मद में एक भी रुपया नहीं मिला है।
यह राशि 3 हजार करोड़ है। इसकी वजह से प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कोई काम शुरू नहीं हो पाया है। दरअसल ग्राम पंचायतें ग्राम की स्वच्छता, प्रकाश, सडकों, औषधालयों, कुओं की सफाई और मरम्मत, सार्वजनिक भूमि, पैठ, बाजार तथा मेलों और चरागाहों की व्यवस्था करती हैं, जन्म मृत्यु का लेखा रखती हैं और खेती, उद्योग धंधों एवं व्यवसायों की उन्नति, बीमारियों की रोकथाम, श्मशानों और कब्रिस्तानों की देखभाल का भी काम करती हैं।
वित्त आयोग की एक शर्त पड़ रही है भारी
ग्रांट के लिए तय शर्तों में निश्चित अंतराल में चुनाव कराने की शर्त भी शामिल है। इसके तहत पंचायतों के चुनाव 5 साल में होना जरूरी है। इसमें भी अधिकतम छह माह से अधिक समय में चुनाव कराए जाने का उल्लेख है। शासन द्वारा पंचायतों का निर्वाचन नहीं होने से प्रभार सौंपने के तर्क को भी केंद्र ने मानने से इंकार कर दिया। इसके अलावा दूसरी शर्त पंचायतों में बीते साल के लक्ष्य के 50 फीसदी काम पूरे होने पर राशि देने का प्रावधान है, जिस पर राज्य सरकार खरी उतरी है। पंचायतों का उपयोगिता प्रमाण पत्र ई-ग्राम स्वराज पोर्टल पर डालने और स्टेट फाइनेंस कमीशन का गठन कर उसकी निगरानी में ही काम होने की शर्त भी प्रदेश द्वारा पूरी की जा चुकी है।
राशि नहीं मिलने से गांवों का विकास रुका
पंचायतों के विकास में मिलने वाली राशि के लिए प्रावधान पूरे होना अनिवार्य है। स्वास्थ्य, पानी, शिक्षा, सफाई और भवन जैसे कामों के लिए राशि नहीं मिलने से गांवों के विकास पर असर पड़ा है। पंचायतों को अपनी योजना खुद बनाना पड़ती है। छोटे मूलभत कामों के लिए राशि नहीं मिलने से गांवों का विकास पिछड़ चुका है। इसकी वजह से ग्रामीणों को समय पर सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।
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