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Sunday, Sep 24, 2023
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क्या शीर्ष अदालत का निर्णय बदलेगा राज्य के सियासी समीकरण?

भोपाल(देसराग)। मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर् आरक्षण के मुद्दे को लेकर भाजपा-कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोपों के दौर के बाद अब शीर्ष अदालत (सुप्रीम कोर्ट) के 17 मई को होने वाले फैसले का राज्य के राजनीतिक हलकों में बड़ी बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है।
पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले पर लम्बे समय से कांग्रेस और भाजपा के बीच श्रेय लेने की होड़ मची है जिसको लेकर ही दोनों एक दूसरे पर परस्पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। आनन-फानन में मध्यप्रदेश अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करते हुए उसे अदालत में पेश कर दिया गया है जिस पर निर्णय सुरक्षित है तथा 17 मई को इस पर फैसला आयेगा। इस पर शीर्ष अदालत ने कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं। कमलनाथ सरकार ने इस वर्ग को मिलने वाला आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था, जिसे बाद में न्यायालय में इसे चुनौती दी गयी और मामला वहीं से उलझता गया। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सरकार सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गयी। इस मामले में अदालत का निर्णय आने के बाद उसके परिप्रेक्ष्य में भाजपा और कांग्रेस अपनी-अपनी रणनीति बनायेंगे और उसके बाद फिर एक बार आरोप-प्रत्यारोप का दौर आरम्भ हो सकता है, लेकिन फिलहाल तो इंतजार अदालती फैसले और उसके बाद रंग लाती ओबीसी राजनीति का रहेगा।
मध्यप्रदेश में 15 साल बाद बनी कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था। अदालत ने इस आरक्षण के तहत होने वाली कुछ परीक्षाओं पर रोक लगा दी तब भाजपा का यह आरोप था कि अदालत में कमलनाथ सरकार ने मजबूती से अपना पक्ष नहीं रखा जबकि कांग्रेस का भी यही आरोप था कि शिवराज सरकार ने मजबूती से सरकारी पक्ष नहीं रखा। इस प्रकार दोनों पार्टियों में इसका श्रेय लेने की होड़ लग गई कि कौन सबसे बड़ा अन्य पिछड़ा वर्ग का हितैषी है।
इसी बीच पंचायत चुनाव में 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर अदालत ने रोक लगा दी तो सरकार ने उस रोक को हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और पंचायत चुनाव को टाल दिया। अब इस बात का इंतजार है कि सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय सुनाती है क्योंकि उसके बाद ही पंचायत चुनावों में क्या होगा यह परिदृश्य स्पष्ट हो सकेगा। सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश सरकार ने अब 35 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की मांग करते हुए मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट अदालत में पेश की, जिस पर कोर्ट ने तीन गंभीर सवाल उठाते हुए यह जानना चाहा कि आपने ग्रिवयांस सेल बनाई थी या नहीं, लोगों को आपके काम पर आपत्ति दर्ज कराने का मौका दिया था या नहीं और क्या राज्य स्तर पर अनुशंसा की गयी, चुनाव क्षेत्र के अनुसार अनुशंसा क्यों नहीं की गयीं। इससे अभी तक 27 प्रतिशत आरक्षण की बात थी अब 35 प्रतिशत आरक्षण की नई मांग कर दी गयी है जिससे मामला कुछ अधिक पेचीदा हो सकता है। यदि अदालत अपने फैसले में 27 प्रतिशत आरक्षण को हरी झंडी देती है तो यह निश्चित तौर पर शिवराज सरकार की बहुत बड़ी जीत होगी और सरकार निकाय व पंचायत चुनाव की तैयारी कर सकती है। यदि कोर्ट इस पर सहमत नहीं होती तो फिर 14 प्रतिशत आरक्षण पर ही चुनाव कराने को कह सकती है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को मिलाकर 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण न होना ही ट्रिपल टेस्ट में है और यही 27 प्रतिशत आरक्षण में बाधा है। चूंकि सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का वायदा किया है इसीलिए चुनाव स्थगित किए गए हैं तो वह इस फैसले के विरुद्ध डबल बेंच में अपील करने पर विचार कर सकती है। 06 मई को मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने शीर्ष कोर्ट में रख दिया जिसमें 35 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण देने की दलील दी गयी। इस रिपोर्ट पर कुछ गंभीर सवाल उठाते हुए अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा है कि अब कोर्ट के फैसले के आधार पर ही कदम उठाये जायेंगे। सरकार ने आरक्षण को लेकर आगे उठाये जाने वाले कदमों पर भी विचार मंथन प्रारंभ कर दिया है। ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को लेकर मंत्री भूपेन्द्र सिंह का यह भी कहना था कि आयोग की 600 पृष्ठों से अधिक की विस्तृत रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि आयोग के अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया, निखिल जैन और सालीसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी ओर से पर्याप्त तर्क व आंकडों के साथ मजबूती से पक्ष रखा है। उनके अनुसार आयोग की रिपोर्ट में प्रत्येक जिले व निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति का अध्ययन कर प्रदेश में 46 फीसदी मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति को रखा है। हमने त्रिस्तरीय ग्रामीण व शहरी निकाय चुनावों में 35 फीसदी आरक्षण मांगा है।

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