भोपाल(देसराग)। अगले महीने होने वाले राज्यसभा के चुनाव में मध्य प्रदेश में भी तीन सीटों पर चुनाव होने हैं, लेकिन इसके लिए प्रत्याशी चयन में भाजपा-कांग्रेस का चला गया पिछड़ा वर्ग आरक्षण का दांव भारी पड़ रहा है। दरअसल अगर दोनों ही दल इस वर्ग के प्रत्याशी का मैदान में नहीं उतारते हैं तो उन पर पिछड़ा वर्ग की उपेक्षा का आरोप लगना तय है, जबकि बीते कई माह से यह दोनों ही दल अपने आपको पिछड़ा वर्ग हितैषी बताने के लिए हर दांव चल रहे हैं।
प्रदेश मे राज्यसभा की तीन सीटें अगले माह रिक्त हो रही हैं। विधानसभा में संख्या बल के हिसाब से इनमें से दो सीटें भाजपा और एक कांग्रेस के खाते में जाना तय है। माना जा रहा है की इन चुनावों के लिए उम्मीदवारों के नामों का चयन कर भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने को पिछड़ा वर्ग हितैषी बताने का प्रयास कर सकती है। दोनों दलों के सामने इसके साथ ही इस वर्ग के प्रत्याशी का चयन करना ही बड़ी चुनौती भी है। अभी इन तीनों सीटों पर कांग्रेस के विवेक तन्खा और भाजपा के एमजे अकबर और संपतिया उइके सांसद हैं। इन तीन सीटों के लिए 31 मई तक नामांकन भरे जाना हैं, जिसकी वजह से इसके पहले ही दोनों दलों को उम्मीदवार का नाम तय करना होगा।
पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने को लेकर कांग्रेस और भाजपा में लंबे अरसे से आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। दोनों ही दल पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की लंबे अरसे से पैरवी करते आ रहे हैं। पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट ने पिछड़ा वर्ग को 35 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही। पंचायत और नगरीय निकाय में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में है। सुप्रीम कोर्ट सरकार के तर्कों से सहमत नहीं हुआ और उसने राज्य में चुनाव बगैर पिछड़ा वर्ग आरक्षण के कराने का फैसला दे दिया। शिवराज सरकार पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का वादा कर रही है।
पिछड़ा वर्ग हितैषी बताने की बड़ी चुनौती है। राज्य में भाजपा के पास पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के अलावा प्रदेश महामंत्री कविता पाटीदार तो कांग्रेस के पास पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव पिछड़ा वर्ग का बड़ा चेहरा हैं। यह बात अलग है की इन दिनों यह दोनों ही नेता अपने अपने दलों में लगभग अलग-थलग दिखाई पड़ रहे हैं। अब देखना होगा कि क्या भाजपा पिछड़ा वर्ग को लुभाने के लिए इस वर्ग से जुड़े व्यक्ति को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाती है या फिर अन्य राजनीतिक गणित के आधार पर उम्मीदवार का चयन करती है। यही स्थिति कांग्रेस में भी बनी हुई है। कांग्रेस यादव को मैदान में उतारकर बड़ा दांव खेल सकती है। फिलहाल प्रत्याशी चयन को लेकर दोनों दलों पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।
2023 के लिहाज से अहम
2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा और कांग्रेस के लिए तीनों सीटों पर उम्मीदवारों का चयन करना अहम माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि इन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस प्रदेश के ही नेताओं को मौका देना चाहते हैं, ताकि विभिन्न समाज वर्गों को साधा जा सके। इन चुनावों में भी आदिवासी, दलित, पिछड़ा वर्ग और ब्राह्मण चेहरे का दबदबा देखने मिल सकता है।