नई दिल्ली/भोपाल(देसराग)। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की मॉडिफिकेशन एप्लीकेशन पर सुनवाई हुई, हालांकि इस दौरान कोई फैसला नहीं लिया जा सका। इस मामले में अब बेंच की उपलब्धता के आधार पर कल या परसों फिर से सुनवाई होगी। इस दौरान राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट का अध्ययन किया जाएगा।
इस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख रहेगा, यह देखना होगा हालांकि यह सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा कि आरक्षण दिया जाए या नहीं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने कोर्ट को सौंपी गई आयोग की रिपोर्ट को रद्दी का पुलिंदा बताया है।
कांग्रेस ने रिपोर्ट पर उठाए सवाल
50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने वाले सैयद जफर ने शिवराज सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका लगाई है, उसमें 946 पेज में से सिर्फ 86 पेज ही थोड़े काम के हैं। बाकी 860 पेज रद्दी की टोकरी में जाने लायक हैं।
सैयद जफर ने ट्वीट में कहा कि पिछड़ा वर्ग को अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रदेश स्तरीय आरक्षण देना संभव नहीं है। अब जनपद वार ओबीसी वर्ग को देना अलग-अलग प्रतिशत में आरक्षण देना होगा। ऐसे में कई जनपद पंचायत में ओबीसी को आरक्षण मिलेगा ही नहीं। जनपदवार आरक्षण की प्रक्रिया में जनपदों को 25 से 30 प्रतिशत तक आरक्षण मिल सकता है।
सिर्फ बयानों में हितैषी बन रही सरकार
याचिकाकर्ता सैयद जफर ने कहा कि जिस जनपद में पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या ज्यादा होगी वहां पिछड़ा वर्ग को ज्यादा आरक्षण मिलेगा, लेकिन प्रदेश सरकार ने 946 पेज के आवेदन में कहीं भी जनपदवार पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या का उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार बयानों में तो पिछड़ा वर्ग की हितैषी बन रही है, लेकिन नियम और कानून में पिछड़ा वर्ग के लिए कोई काम नहीं कर रही। प्रदेश में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण समाप्त होना प्रदेश सरकार की प्रशासनिक चूक या बड़ा षड्यंत्र है।
वहीं भाजपा प्रवक्ता दुर्गेश केशवानी का कहना है कि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिले। इसलिए उसने सुप्रीम कोर्ट में जल्द चुनाव कराने की याचिका लगा दी, लेकिन पिछड़ा वर्ग कांग्रेस को आने वाले चुनावों में सबक सिखा देगा।