भोपाल(देसराग)। मध्य प्रदेश के 827 वनग्रामों के नाम बदले बिना ही अब राजस्व ग्राम जैसी सुविधाएं मिलेंगी। यानी अब वनग्रामों के निवासियों का विस्थापन का दर्द नहीं झेलना पड़ेगा। अब इन वनग्रामों में राजस्व गांवों की तरह विकास कार्यों के लिए रास्ते खुल गए हैं। खासकर पक्के मकान बनाने पर कोई रोकटोक नहीं होगी। अनुमति लेकर नियमानुसार कोई भी मकान बना सकेगा। इस निर्णय से ग्रामीणों को तो लाभ होगा ही, केंद्र और राज्य सरकार को भी फायदा हुआ है। शासन को इन गांवों से ग्रामीणों के विस्थापन के लिए राशि खर्च नहीं करनी पड़ेगी और दूसरी जगह बसाने के लिए भूमि का इंतजाम भी नहीं करना होगा।
गौरतलब है कि मिशन-2023 में आदिवासियों के वोट बैंक पुन: हासिल करने के लिए राज्य सरकार ने वनग्रामों को राजस्व गांव बनाने की घोषणा की है। इस पर अमल करने के लिए कानूनन कई अड़चनें हैं। इसके चलते राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि वन ग्रामों में सुविधाएं राजस्व गांव जैसी मिलेगी पर लीगल स्टेटस वन ग्राम ही रहेगा। वन ग्रामों के आदिवासी उसे न बेच सकेंगे और न ही बेटों के बीच वन भूमि का बंटवारा कर सकेंगे। गौरतलब है कि वन विभाग ने 9 जून 2017 को एक पत्र लिखकर कहा था कि 925 वन ग्रामों के राजस्व ग्रामों की तरह ग्राम का नक्शा बी-1 आदि अभिलेख तैयार किया जाना एक व्यापक कार्य है। इसके लिए वन विभाग को पटवारियों की आवश्यकता होगी। वन विभाग के अंतर्गत पटवारी के पद स्वीकृत करने व वन विभाग के अधिकारियों को राजस्व अधिकारी के अधिकार देने की मांग की गई थी।
सरकार किसी पचड़े में नहीं फंसना चाहती
गत दिनों कैबिनेट के निर्णय के बाद जंगलात महकमे के सीनियर अधिकारियों से चर्चा के बाद यह निष्कर्ष निकला कि 827 वन ग्रामों को राजस्व गांव में बदलने के लिए 240431 हेक्टेयर वन भूमि को डिनोटिफाई करना होगा। डिनोटिफाई करने से पहले राज्य सरकार को इतनी ही राजस्व भूमि वन विभाग को स्थानांतरित करनी होगी। यही नहीं, वन संरक्षण एक्ट के अंतर्गत वन भूमि को डिनोटिफाई करने से पहले राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से अनुमति भी लेनी होगी। वन भूमि को डिनोटिफाई के लिए कई मामले सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। यही कारण है कि मामला 2018 से लंबित है। वन विभाग के प्रशासकीय प्रतिवेदन (2018-19) में उल्लेखित जानकारी के अनुसार 303 वन ग्रामों की सिद्धांतिक स्वीकृति भारत सरकार ने अक्टूबर 2002 से जनवरी 2004 कर दी थी किंतु सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका( क्रमांक/337/1995 की आईए क्रमांक-2 ) दाखिल हुई। इस याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर 2002 को वन ग्राम भूमि को डिनोटिफाई करने पर रोक लगा दी। अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 की धारा-3 (1) (ज) में भी वन ग्रामों को परिवर्तन करने के अधिकार का उल्लेख है। लेकिन विधि विभाग ने 12 दिसंबर 16 को अपना अभिमत दिया कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अंतर्गत बिना भारत सरकार के पूर्व अनुमति के वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अधिनियम में वर्णित प्रावधानों एवं सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश का अनुपालन किया जाना उचित होगा।
वनग्रामों में होंगी राजस्व गांवों जैसी सुविधाएं
कानूनी पेंचीदगियों से बचने के लिए राज्य शासन में वन ग्रामों में ही राजस्व सुविधा उपलब्ध कराने का फैसला लिया है। इसके तहत वन ग्रामों में सड़क, बिजली, पानी जैसी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जा सकेंगी। बस सरकारी दस्तावेज में यह सभी गांव वनग्राम ही कहलाएंगे। अधिकारियों के अनुसार वन भूमि का भूस्वामी आधिपत्य भूमि का नामांतरण नहीं करा पाएगा। यानी वह अपने बेटों के बीच भूमि का बंटवारा नहीं कर सकेगा। भूस्वामी के निधन के बाद उसके बड़े बेटे के नाम ही वन भूमि रहेगी।
previous post