भोपाल(देसराग)। पंचायत और निकाय चुनाव को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता और माननीयों में महंगाई को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं। विधायक-सांसद मैदानी फीडबैक से ऐसे हलकान हैं कि उन्हें डर सता रहा है की कहीं महंगाई को लेकर फैले अंडर करंट की वजह से उनके इलाके में विपक्ष उन पर भारी न पड़ जाए। यही वजह है कि वे लगातार सरकार को यह समझाने के प्रयासों में लगे हुए हैं की निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही कराना पार्टी के हित में अधिक मुनासिब है।
उधर भाजपा संगठन भी इन चुनावों को लेकर गाइड लाइन तय करने की मशक्कत में लगा है। माना जा रहा है कि प्रदेश में पंचायत और निकाय चुनाव अगले माह कराए जा सकते हैं। इसके लिए चुनाव आयोग द्वारा अपने स्तर पर लगभग पूरी तैयारियां कर ली गई हैं। आयोग को सिर्फ सरकार के निर्णय का इंतजार है। पार्टी के माननीयों से लेकर संगठन से जुड़े वरिष्ठ नेताओं से सरकार के पास जो फीडबैक पहुंच रहा है उसकी वजह से भी सरकार निकाय चुनाव किस प्रणाली से कराए इसको लेकर संशय की स्थिति में बनी हुई है, जिसकी वजह से इस मामले में फैसला लेने में देरी हो रही है।
सरकार व संगठन निकाय चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से चाहता है, जबकि मैदानी नेता इसे अप्रत्यक्ष प्रणाली से करने के पक्ष में हैं। यही वजह है की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात में विधायकों द्वारा महंगाई को लेकर क्षेत्र में बन रहे नकारात्मक माहौल का ब्यौरा लगातार दिया जा रहा है। दरअसल इन माननीयों को डर सता रहा है कि कहीं निकाय चुनावों के परिणाम उनके मिशन 2023 के लिए मुसीबत न बन जाएं। यह बात अलग है कि सत्ता-संगठन के नेता भले ही सार्वजनिक तौर पर महंगाई के संबंध में कुछ भी न बोलें लेकिन पार्टी की आंतरिक बैठकों में वह अपनी आशंका खुलकर व्यक्त कर चुके हैं। उनका कहना है कि अलग-अलग क्षेत्रों से जो जानकारी सामने आ रही है उनमें सबसे ज्यादा उन्हें महंगाई का डर सता रहा है। समाज के सभी वर्गों में इस मुद्दे पर अंडर करंट है।
यह बात विधायक सीएम से हुई मुलाकातों में तो बता चुके हैं कि निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष रुप से होंगे तो हमारे लिए फायदेमंद रहेंगे,क्योंकि कांग्रेस के पास खोने को कुछ भी नहीं है। लेकिन उसने यदि एक-दो ननि और नगर पालिकाएं जीत लीं तो इससे सीधा नकारात्मक असर विस चुनाव 2023 पर पड़ेगा। यही कारण है कि सत्ता संगठन में कई स्तरों पर इन चुनावों को लेकर विचार मंथन के दौर चल रहे हैं।
भाजपा देगी 27 फीसदी टिकट ओबीसी को
नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी ने जमीनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। पार्टी ने किसी प्राइवेट एजेंसी को दावेदारों के सर्वे का काम सौंपा है। उधर पार्टी ने हर वार्ड से दो-दो ओबीसी वर्ग के कार्यकर्ताओं के नाम मांगे हैं, जिन्हें पार्टी टिकट दे सके। अब पार्षद के टिकट वितरण के समय प्राइवेट एजेंसी की सर्वे रिपोर्ट आदि के साथ इन नामों पर भी विचार होगा। विधायकों और पूर्व विधायकों के अलावा सांसद, पूर्व सांसद, प्रदेश पदाधिकारियों और जिले के ऐसे वरिष्ठ नेता जो अब दावेदार नहीं हैं, उनसे भी नाम जुटाए जा रहे हैं।
भाजपा में टिकट के फॉर्मूले पर माथापच्ची
प्रदेश में निकाय और पंचायत चुनाव जून में होना तय है, जिसके चलते भाजपा और कांग्रेस में टिकट का फॉमूर्ला तय करने की मशक्कत जारी है। कांग्रेस ने तो टिकट के लिए अपनी गाडइलाइन तय कर ली है, तो वहीं भाजपा में अब अगले हफ्ते तक टिकट के फॉर्मूला को लेकर अब भी संशय बना हुआ है। इसकी वजह है अब तक पार्टी द्वारा इसके लिए कोई गाइड लाइन तय नहीं कर पाना। माना जा रहा है कि भाजपा इस बार उम्र के पैमाने के साथ दो पदों का मापदंड भी लागू कर सकती है। 50 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति को भी किसी भी स्तर पर टिकट नहीं दिया जाए, इस पर प्रारंभिक सहमति है। इसी तरह से किसी हारे हुए नेता को भी महापौर पद का टिकट नहीं देने का भी निर्णय कर सकती है। भाजपा संगठन विधायकों को महापौर या अन्य पदों पर चुनाव लड़ाने के पक्ष में नहीं है। इस कारण एक पद एक व्यक्ति का फॉर्मूला इसमें लाया जा सकता है। हालांकि भाजपा द्वारा भी नगरीय निकाय चुनाव के लिए चुनाव संचालन समिति का गठन किया जा चुका है।