सोमेश्वर सिंह
बच्चों के मामा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज इतिहास रच दिया। उन्होंने भोपाल के अशोका गार्डन से 3 घंटे तक हाथ ठेला चलाया। लगभग 800 मीटर चले। बच्चों के लिए लगभग 10 ट्रक खिलौना सहित व अन्य सामग्री संग्रहित की। मुख्यमंत्री के इस करतब से प्रभावित होकर फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने एक करोड रुपए दान देने तथा 50 आंगनबाड़ी केंद्रों को गोद में लेने की घोषणा कर दी। इधर रातों-रात मामा मुख्यमंत्री चंदा मामा बन गए। चांद में किसी बच्चे को खिलौना नजर आता है तो किसी को रोटी।
मध्यप्रदेश में तकरीबन 97 हजार आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। जहां बच्चों के लिए पोषण आहार वितरित किया जाता है। उनके टीकाकरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, गर्भवती महिलाओं के सेहत, मृत्यु दर कम करने के लिए अनेक सरकारी योजनाएं हैं। बावजूद इसके भी कुपोषण के मामले में मध्य प्रदेश देश में अग्रणी है। मध्य प्रदेश को भारत का इथोपिया कहा जाता है।
प्रदेश सरकार द्वारा मार्च महीने में विधानसभा में घोषित अधिकृत आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में प्रतिदिन कुपोषण से औसतन 100 बच्चे मर जाते हैं। प्रदेश में 0 से लेकर 5 वर्ष तक के तकरीबन 65 लाख बच्चे हैं। जिनमें 10 लाख बच्चे कुपोषित, 3 लाख ठिगने, 13 लाख कमजोर, 6 लाख कम वजन की बच्चे पाए गए। कुल मिलाकर 67 फ़ीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जनजातीय क्षेत्रों में यह संख्या 80 फ़ीसदी तक है। इन कुपोषित बच्चों के लिए प्राथमिकता पोषण आहार है या फिर खिलौना। इस गणित को समझने की जरूरत है।
दरअसल हम लोग भूलने के आदी हैं। साल दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा को याद करें। उन्होंने गुजरात को खिलौना निर्माण का हब बनाने की घोषणा की थी। और कहा था कि गुजरात में ढाई हजार करोड़ रुपए के लागत का खिलौना पार्क बनेगा। जिसमें 30 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। जो 10 हजार करोड़ रुपए का व्यापार पैदा करेंगे। दुनिया में खिलौने का 120 अरब डॉलर का ग्लोबल मार्केट है। जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी चीन की है। भारत में खिलौना व्यापार का 80 फ़ीसदी हिस्सा चीन से आयात किया जाता है। गुजरात सरकार ने खिलौना उद्योग के लिए 250 एकड़ जमीन उद्योगपतियों को आवंटित कर दी है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार में नोएडा में खिलौना फैक्ट्री के लिए 134 उद्योगपतियों को जमीन आवंटित कर दी। जिसमें 410 करोड़ रुपए का निवेश होना है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलौना संग्रह का यह इवेंट उसी मार्केटिंग का एक हिस्सा है।
लाड़ली लक्ष्मी योजना को याद करें। इस योजना के अंतर्गत पोस्ट ऑफिस में लाड़ली के नाम फिक्स्ड डिपॉजिट किया जाता था। जिसके मैच्योरिटी की गारंटी थी। बाद में उस राशि को एक मुश्त आहरित करके सरकार द्वारा पोषित एक निजी ट्रस्ट या कंपनी के पास अंतरित कर दिया गया। जिसकी परिपक्वता की कोई गारंटी नहीं है। क्योंकि उस राशि का सरकार मनमाना उपयोग कर रही है।
लक्ष्मी बनने से पहले मध्य प्रदेश में लाड़ली की दुर्दशा जगजाहिर है। कुपोषण, बीमारी, अशिक्षा, अंधविश्वास, दहेज, दुष्कृत्य के दानव और दरिंदे मुंह बाये खड़े हैं। लाड़ली बचेंगी तभी तो लक्ष्मी बनेंगी। कोरोना लॉकडाउन अवधि में जब आगनबाडी केंद्र बन्द थे, तब भी हमारे सीधी जिले में करोड़ों रुपए का पोषण आहार कागजों में वितरित कर दिया गया। इससे आप समूचे प्रदेश का अंदाजा लगा सकते हैं। मुख्यमंत्री ने प्रदेश की जनता को खिलौने से ज्यादा और कुछ नहीं समझा। 18 साल से खिलौने की तरह खेल रहे हैं। जब जी आया तोड़ दिया, जब जी आया जोड़़ दिया। लेकिन यह न भूलें कि आदमी मिट्टी का नहीं हाड मांस से बना खिलौना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
previous post